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अपनी गन्दी निगाह किसी औरत पर मत डालो more

एक आदमी था जिसने कभी अपने जीवन में कोई गैर औरत को नहीं देखा था, एक बार फिर उस आदमी के घर के हालत बोहत खराब हो गए थे । नौबत यहां तक ​​पहुंची कि घर में फाके हो गए ।  उस आदमी की एक जवान बेटी भी थी ,,, जब फाके हद से बढ़ गए तो वह लड़की अपने छोटे बहन भाई की हालत देखकर गलत कदम उठाने पर मजबूर हो गई, दिल में इरादा करके घर से निकली कि मैं अपना श"रीर बे"चू"गी और कुछ खाना खरीदूगी !! वे घर से बाजार जा पहुंची जिस्म बे"चने लड़की वहां गई और आकर्षक लोगों को आकर्षित करना शुरू कर दिया, लोगों को आकर्षित किया, लेकिन किसी ने भी उस पर ध्यान नहीं दिया। ध्यान तो दूर किसी ने उसकी ओर निगाह तक उठा कर नहीं देखा, लोग आते और उसकी ओर नज़र उठाए बिना निकल जाते , इसी तरह खड़े खड़े लड़की को शाम हो गई, वह परेशान होकर घर की ओर कदम बढ़ाने लग गई ! जब घर पहुंची तो अपने पिता को परेशानी में देखा दरवाज़े पर बाप ने बेटी को देखा और पुछा "बेटी कहाँ गई थी?" लड़की अपने पिता की बात सुन कर उनके पेरो में गिर कर रोने लगी और माफ़ी मांगने लगी और फिर रो रो कर सारा माजरा बयान किया कि पापा .....

हर साल की तरह इस साल भी #The_Royal_Islamic_Strategic_Studies_Centre, #Jordan की तरफ से 500 #प्रतिभाशाली #मुस्लिम की लिस्ट

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हर साल की तरह इस साल भी The Royal Islamic Strategic Studies Centre, Jordan की तरफ से 500 प्रतिभाशाली मुस्लिम की लिस्ट तैयार किया गया है। जिसमें पूरी मुस्लिम दुनिया की आबादी 1.8 billion में से सिर्फ 500 को चुना जाता है। चुनें गए मुसलमानो मे वो शख्स होता है जो कि अपने समाज,धर्म, मईश्त, पालिटिक्स वगैरह में जबरदस्त पकड़ रखता है। इस लिस्ट को तैयार करने के लिए लगभग पूरी दुनिया के मुस्लिम इंटलेक्चुअल से राब्ता किया जाता है, फिर उनके कामों को देखा जाता है। जिसके लिए एक बड़ी टीम तैयार किया गया है।  13 ऐसे फील्ड है जिसके बिना पर ये दुनिया भर के प्रतिभाशाली मुस्लिम को चुना जाता है। Scholarly • Political • Administration of Religious Affairs • Preachers and Spiritual Guides • Philanthropy/Charity and Development • Social Issues • Business • Science and Technology • Arts and Culture • Qur’an Reciters • Media • Celebrities and Sports Stars • Extremists लिस्ट के पहले 50 शख्सियतों को रेंक दिया जाता है और बाकी के 450 को कोई रेंक नहीं दिया जाता है। सिर्फ उनको लिस्ट में शामिल किया जाता है। इस साल यानी कि

एक तीतर की छोटी सी कहानी... !! #कौम_के_दलालों_के_नाम !!

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एक तीतर की छोटी सी कहानी...  !! #कौम_के_दलालों_के_नाम !! बाजार में एक चिड़ीमार तीतर बेच रहा था... उसके पास एक बड़ी सी जाली वाली बक्से में बहुत सारे तीतर थे, और एक छोटे से पिंजरे में सिर्फ एक तीतर. एक ग्राहक ने उससे पूँछा तीतर कितने का है... तो उसने जवाब दिया: एक तीतर की कीमत 60 रूपये है... ग्राहक ने दूसरे पिंजरे में जो तन्हा तीतर था, उसकी कीमत पूछी तो तीतर वाले ने जवाब दिया: "अव्वल तो मैं इसे बेचना ही नहीं चाहूंगा, लेकिन अगर आप लेने की जिद करोगे तो इसकी कीमत 1000 रूपये होगी!" ग्राहक ने बड़ी हैरत से पूछा: इसकी कीमत 1000 रुपया क्यों? इसपे तीतर वाले का जवाब था: ये मेरा अपना पालतू सदाया (ट्रेंड) तीतर है, दूसरे तीतरो को जाल में फसाने का काम करता है, और दूसरे सभी फंसे/पकड़े हुए जंगली तीतर है. ये चीख पुकार करके दूसरे तीतरो को बुलाता है, और दूसरे तीतर बिना सोचे समझे आ जाते हैं और मैं आसानी से शिकार कर पाता हूँ.... इसके बाद फंसाने वाले अपने पालतू तीतर को उसके मन पसंद की खुराक दे देता हूँ, जिससे ये खुश हो जाता है बस इस वजह से इसकी कीमत ज्यादा है!" ग्राहक ने उस तीतर वाले को 1000 रू

सूद लेना और देना, दोनो हराम और नाजायज हैं। सूद के बारे में आया

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सूद लेना और देना, दोनो हराम और नाजायज हैं। सूद के बारे में आया कि अल्लाह के खिलाफ एलान ए जंग है। क्या हाजी नमाजी आज हर कोई सूद में मुब्तला हैं। आम इंसान की तो गिनती ही छोड़ दिजीये बल्कि मेरी आँखों देखी कई आलीम, हुफ्फज इस काम मे लगे हुवे हैं। कुछ दुनिया की हवस में तो कोई मजबूरी में इस लानती सूद में मुल्लवीस है। मैं बहुत से ऐसे लोगो को जानता हूं। जिन्होंने बहुत मजबूरी में आकर आखिर कार लोन लिया और आज सूद ब्याज के चक्कर मे उनका जीना मुश्किल हो गया है। मैं खुद सिर्फ अल्लाह के डर की वजह से इससे अब तक बचा हुवा हु। (अल्हम्दु लिल्लाह) अल्लाह ऐसे सख्त तरीन गुनाह से हम सबको बचाये। हमारे माशरे में देखने को बारहा मिलता है कि लोग मजबूरी में इस लानत मु मुब्तला हो जाते हैं । फिर लोग अपने को पारसा बताते हुवे उसे बड़ा फतवा लगाएंगे की ये हराम है, नाजायज है। सूद ब्याज के चक्कर मे नही पड़ना चाहिए। हत्ता की बन्दे को इतना ट्रोल किया जाता है कि बन्दा डिप्रेशन में चला जाता है। हम आम मुसलमान तो किताब पढ़ते नही हमे तो जोड़- जलसे, और मेम्बर से ही ये सब बातें मालूम होती हैं। लेकिन क्या आपकी इतनी ही जिम्मेदा

यह दो तस्वीरें इंदौरी मित्र DrAvanish Jain से प्राप्त हुई है। दोनों तस्वीरें उस #इंदौर शहर की हैं, जहां का मैं मूल निवासी हूँ, जो #indore #vip

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यह दो तस्वीरें इंदौरी मित्र DrAvanish Jain से प्राप्त हुई है। दोनों तस्वीरें उस इंदौर शहर की हैं, जहां का मैं मूल निवासी हूँ, जो वास्तविक रूप में न सही मगर आधिकारिक तौर पर स्वच्छता के मामले में देश का नंबर वन शहर कहलाता है। एक तस्वीर शहर के महापौर के वाहन की है, जिस पर उनके पदनाम के साईनबोर्ड ने वाहन की नंबर प्लेट को ढंक रखा है। चूंकि कथित वीआईपी वाहन है, लिहाजा कुछ नहीं होगा। हालांकि एक महामानव ने कुछ समय पहले चीखते-चिंघाड़ते हुए दावा (बकवास) किया था कि उसने देश में वीआईपी कल्चर खत्म कर दिया है।  दूसरी तस्वीर में एक वाहन पर न्यायाधीश के पदनाम का बोर्ड लगा है, हालांकि जिनके नाम पर गाड़ी का रजिस्ट्रेशन है, वे सज्जन न्यायिक सेवा से रिटायर हो चुके हैं। चूंकि रिटायर होने के बाद भी उन्होंने अपनी गाड़ी पर न्यायाधीश का बोर्ड लगा रखा है, इसलिए सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे कितने हूनरमंद न्यायाधीश रहे होंगे और किस तरह के फैसले दिए होंगे। और जब वे हूनरमंद रहे होंगे तो जाहिर है कि उनकी कमाई पर पले-बढ़े उनके साहबजादे किस मिजाज के होंगे! जिस समय इस गाड़ी की तस्वीर ली गई उस समय गा

अमेरिका का एक मशहूर तरीन रिसर्चर-डॉक्टर 'माइकेल हार्ट' जो मज़हबी ऐतबार से ईसाई था उसने सन 1978 में दुनियाभर से जानकारी इकट्ठी करके एक किताब लिखी "द-100 अ रैंकिंग ऑफ द मोस्ट इंफ्लूएंसल पर्सन इन हिस्ट्री"

#अमेरिका का एक मशहूर तरीन #रिसर्चर-डॉक्टर 'माइकेल हार्ट' जो #मज़हबी ऐतबार से ईसाई था उसने सन 1978 में दुनियाभर से जानकारी इकट्ठी करके एक किताब लिखी "द-100 अ रैंकिंग ऑफ द मोस्ट इंफ्लूएंसल पर्सन इन हिस्ट्री" हैरत की बात है जो खुद ईसाई था उसने ईसा मसीह को इस रैंकिंग में तीसरे स्थान पर रखा, और रैंकिंग में उसने फर्स्ट नम्बर पर रखा मुहम्मद (#सल्लल्लाहू_अलैहि_वसल्लम) को! लोगों ने सवाल किया तो उसने जवाब दिया कि जब मैंने मुहम्मद की पूरी लाइफ को पढ़ा तो मैंने पाया कि दुनियावी पहलू के हर एतबार से मुहम्मद ने एक कामयाब तरीन शख्स बन कर दिखा दिया! एक बेहतरीन ताजिर, एक बेहतरीन शौहर, बेहतरीन बाप, बेहतरीन दोस्त, बेहतरीन साथी, बेहतरीन कमांडर, बेहतरीन लीडर, सादिक, इंसाफ पसंद और भी बहुत कुछ, एक जवाब में माइकल हार्ट ने कहा: 'मुहम्मद वाज़ सुप्रीमली सक्सेसफुल इन बोथ रिलिजियस एंड सेक्युलर टर्म्स'! चाहे वो रेवोलुशन की बात हो, चाहे वो समाजी हो, मआशी हो, पोलिटिकल हो, सोशल हो, इकनॉमिकल हो, हर मुहाज पर मुहम्मद ने एक कामयाब शख्स की हैसियत हासिल की, और दुनिया मे इस्लाम का निज़ाम कायम करके दिखा द

मकान मालकिन की छोटी लड़की ने महाशय क से पूछा– अगर शार्क आदमी होते तो क्या छोटी मछलियों के साथ उनका व्यवहार सभ्य-शालीन होता?

मकान मालकिन की छोटी लड़की ने महाशय क से पूछा–  अगर शार्क आदमी होते तो क्या छोटी मछलियों के साथ उनका व्यवहार सभ्य-शालीन होता? उन्होंने कहा- निश्चय ही, अगर शार्क आदमी होते तो वे छोटी मछलियों के लिए समुद्र में विशाल बक्से बनवाते, जिसके भीतर हर तरह के भोजन होते, तरकारी और मांस दोनों ही।  वे इस बात का ध्यान रखते कि बक्सों में साफ पानी रहे और आम तौर पर वे हर तरह की स्वच्छता का इंतजाम करते।  उदाहरण के लिए अगर किसी छोटी मछली का पंख चोटिल हो जाता तो तुरन्त उसकी पट्टी की जाती, ताकि वह मर न जाये और समय से पहले वह शार्क के लिए गायब न हो जाये।  छोटी मछलियाँ उदास न हों इसलिए समय-समय पर विराट जल महोत्सव होता, क्योंकि प्रसन्नचित्त मछलियाँ उदास मछलियों से ज्यादा स्वादिष्ट होती हैं। निश्चय ही, बड़े बक्सों में स्कूल भी होते। उन स्कूलों में छोटी मछलियाँ यह सिखतीं कि शार्क के जबड़ों में कैसे तैरा जाता है।  भूगोल जानना भी जरूरी होता, ताकि उदहारण के लिए, वे उन बड़े शार्कों को खोज सकें जो किसी जगह सुस्त पड़े हों।  छोटी मछलियों के लिए प्रमुख विषय निश्चय ही नैतिक शिक्षा होता।  उनको सिखाया जाता की दुनिया में यह सबसे

ये तस्वीरें आज फेसबुक पर टहल रही हैं, यूँ तो इसमें कुछ ख़ास नही है लेकिन जब आपको पता चलता है ये तस्वीरे सऊदी अरब की राजधानी रियाद की है तो ख़ास बन जाती है

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ये तस्वीरें आज फेसबुक पर टहल रही हैं, यूँ तो इसमें कुछ ख़ास नही है लेकिन जब आपको पता चलता है ये तस्वीरे सऊदी अरब की राजधानी रियाद की है तो ख़ास बन जाती है। लोग आलोचना कर रहे हैं कि अरब के लोग भी अब ये शिर्क के काम करने लगे, दरअसल आपने अपनी ज़ाती ज़िन्दगी में जो बदलाव किए है वो वक़्त की माँग समझते है लेकिन अरब को ऐसा करते देखना आपको हैरत करता है। आख़िर वो बर्थडे धूमधाम से मना रहे है, म्यूज़िक कंसर्ट हो रहा, तो इसे भी एक्सेप्ट करिये औऱ अरबियों को भी अपनी तरह इंसान समझिये। दरअसल ये हैलोवीन त्योहार है, मेरी पर्सलन दिक्कत सिर्फ ये है कि बड़े लोगों का त्योहार बनता जा रहा है, जबकि ये गाँव किसानों गरीबो का त्योहार था अधिकांश त्योहारो के मूल में जाकर देखिए तो वो खेती और किसानी से जुड़ा होता है फिर वो हैलोवीन ही क्यो न हो। जहाँ तक भारत की बात करूं तो इसे हीरो हिरोइन मना रही। फिर वो डांडिया हो या मकर संक्रांति लोहिड़ी हो या बिहू या फिर और भी त्योहार हो, सब बड़े लोगो के लिए मनोरंजन का दिन बनते जा रहे है और अपने मूल से दूर होते जा रहे। किसान मरे जीये, खेत बर्बाद हो पानी मिले या न मिले, क्या फ़र्क़ पड़ता है। गजक

सुल्तान जलालुद्दीन ख़िलजी के क़त्ल के कुछ ही महीनों बाद अलाउद्दीन दिल्ली के सुल्तान बने। सुल्तान बनने से पहले अलाउद्दीन कौशांबी के आस-पास के इलाकों के सूबेदार हुआ करते थे यहीं से पूरे अवध का संचालन होता था। #history

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सुल्तान जलालुद्दीन ख़िलजी के क़त्ल के कुछ ही महीनों बाद अलाउद्दीन दिल्ली के सुल्तान बने। सुल्तान बनने से पहले अलाउद्दीन कौशांबी के आस-पास के इलाकों के सूबेदार हुआ करते थे यहीं से पूरे अवध का संचालन होता था। सुल्तान बनते ही अलाउद्दीन ने दिल्ली का रुख किया तब दिल्ली में महरौली का इलाका ही दिल्ली का मुख्य शहर हुआ करता था  सुल्तान बनते ही अलाउद्दीन खिलजी ने सबसे पहले टैक्स सिस्टम को सुधारा उन्होंने सिस्टम से बिचौलियों को हटाकर सीधे आम आदमी से जोड़ा बिचौलियों के हटने किसानों और गरीबो को बहुत फायदा हुआ। इस टैक्स सिस्टम को शेर शाह सूरी से लेकर मुग़लों तक ने इस्तेमाल किया। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की किताब "The Cambridge Economic History of India" में इस बात का ज़िक़्र है, की ख़िलजी का टैक्स सिस्टम हिंदुस्तान का सबसे अच्छा टैक्स सिस्टम था जो अंग्रेजों के आने तक चला। अलाउद्दीन खिलजी ने सुल्तान बनते ही बड़ी तेजी से अपनी सल्तनत को फैलाया रणथम्भौर, चित्तौड़, मालवा, सिवान, जालोर, देवगिरी, वरंगल, जैसी सारी रियासतें सुल्तान के झोली में आ गिरीं। ख़िलजी ने अपनी जिंदगी की कोई भी जंग नहीं हारी लेकिन एक ब

ससैक्स यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड

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ससैक्स यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड में शाम एक कार्यक्रम का आयोजन था. यहां झारखंड के सिमडेगा जिले में जन्मी खड़िया समुदाय की एक शोधार्थी संध्या केरकेट्टा ने कार्यक्रम के आयोजन की सारी ज़िम्मेदारी ली थी.   इस दौरान भारत के भिन्न-भिन्न आदिवासी समुदाय और नॉर्थ ईस्ट के कुछ ट्राइबल इलाकों का अध्ययन कर रहे इस यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने अपना अध्ययन रखा. भारत से भी कुछ आदिवासी शोधार्थी अपने अध्ययन के साथ ऑनलाइन जुड़े थे. पहले प्रो. विनीता दामोदरन, प्रो. फिलिक्स पडेल, प्रो. मेनन गांगुली ने अपनी बातें रखी. इस कार्यक्रम को सुनने के लिए यूके, इटली, भारत व अन्य देशों से लोग ऑनलाइन जुड़े थे. शोधार्थियों ने अलग-अलग सवाल का जवाब दिया.  एक सवाल था. क्या अफ्रीका, नेटिव अमेरिका के देशज लोगों की तरह भारत के आदिवासियों/ ट्राइबल्स का भी अपना इतिहास है, आस्था है या वे शुरू से हिन्दू हैं?   नहीं. आदिवासी शुरू से हिन्दू नहीं हैं. उनकी अपनी भाषा, संस्कृति है. धर्म जैसे शब्द का बहुत बाद में संगठित धर्म के साथ ही वहां प्रवेश हुआ है. वहां "धर्म" जीवन शैली में अलग तरीके से है, जिसका ज़िक्र वाचिक परंपरा में

जयपाल सिंह मुंडा झारखंड के खूंटी जिले में जन्मे थे. ( 3 जनवरी 1903 – 20 मार्च 1970). वे एक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद् और 1925 में ‘ऑक्सफर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी

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आज ऑक्सफर्ड, इंग्लैंड में सेंट जॉन्स कॉलेज जाना हुआ. यहीं मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ने पढ़ाई की थी. पिछले दिनों मैंने उनके जीवन से जुड़ी किताबें और संविधान सभा में उनका वक्तव्य सबकुछ दोबारा पढ़कर ख़त्म किया था. पर किताब ख़त्म करते ही ऑक्सफोर्ड आकर उनके कॉलेज में उन कमरों को, उन जगहों को देखते हुए नए जीवंत अध्याय को फिर से छूकर पढ़ना हो सकेगा, यह नहीं सोचा था.  मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा भारत के आदिवासियों और झारखंड आंदोलन के सबसे बडे़ अगुआ थे. उन्होंने जिस वृहत झारखंड का सपना देखा था और आदिवासियों ने एक लंबी लड़ाई लड़ी थी, वह मध्य भारत के सभी आदिवासियों को एक क्षेत्र में लाने की मांग को लेकर थी. ताकि अपनी भाषा-संस्कृति, जीवन-दर्शन के साथ लोग अपनी तरह से सशक्त हो सकें. लेकिन आज़ादी के बाद भी आदिवासियों और उनके इलाकों का औपनिवेशिक दोहन जारी रखने के लिए उन्हें अलग-अलग बांटकर टुकड़ों में रखा गया. वह दोहन आज भी देशहित के नाम पर जारी है.  जयपाल सिंह मुंडा झारखंड के खूंटी जिले में जन्मे थे. ( 3 जनवरी 1903 – 20 मार्च 1970). वे एक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद् और

#सोनपपड़ी #sonpapdi

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*सोनपापड़ी*   जिसे हरा न सको उसे यशहीन कर दो। उसका उपहास करो।  उसकी छवि मलिन कर दो।  बस ऐसा ही कुछ हुआ है इस सुंदर मिठाई के संग में भी। आपने इधर सोनपापड़ी जोक्स और मीम्स भारी संख्या में देखे होंगे। निर्दोष भाव से उन पर हँस भी दिए होंगे। पर अगली बार उस बाज़ार को समझिए जो मिठाई से लेकर दवाई तक और कपड़ों से लेकर संस्कृति तक में अपने नाखून गड़ाये बैठा है।         एक ऐसी मिठाई जिसे एक स्थानीय कारीगर न्यूनतम संसाधनों में बना बेच लेता हो। जिसमें सिंथेटिक मावे की मिलावट न हो। जो अपनी शानदार पैकेजिंग और लंबी शेल्फ लाइफ के चलते आवश्यकता से अधिक मात्रा में उपलब्ध होने पर बिना दूषित हुए किसी और को दी जा सके, खोये की मिठाई की तरह सड़कर कूड़ेदान में न जा गिरे। आश्चर्य, बिल्कुल एक सुंदर, भरोसेमंद मनुष्य की तरह जिस सहजता के लिए इसका सम्मान होना चाहिए, इसे हेय किया जा रहा है।         एक काम कीजिये डायबिटिक न हों तो घर में रखे सोनपापड़ी के डिब्बों में से एक को खोलिए। नायाब कारीगरी का नमूना गुदगुदी परतों वाला सोनपापड़ी का एक सुनहरा, सुगंधित टुकड़ा मुँह में रखिये। भीतर जाने से पहले होंठों पर ही न घुल जाये तो बनानेव

ये एक ब्लू #व्हेल का दिल है जो 6 फीट लंबा और 440 पाउंड (200 Kg.) का है

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ये एक ब्लू व्हेल का दिल है जो 6 फीट लंबा और 440 पाउंड (200 Kg.) का है ये व्हेल वाकई में काफी हैरतंगेज है क्या आप जानते है ? हमारे इस प्लैनेट पर "ब्लू व्हेल" ही एक ऐसा जानदार है जिसका सबसे बड़ा आकार (100 feet aprx ) और वजन (4 लाख पाउंड) तक होता है। खास तौर से एक ब्लू व्हेल के सिर्फ दिल का वजन 1,000 पाउंड से ज्यादा हो जाता है और इसका दिल हर धड़कन के साथ लगभग 60 गैलन (227 liter) खून पंप करता है। इसके बरअक्स एक इंसानी दिल हर धड़कन के साथ महज़ 70ml. खून ही पंप करता है। ब्लू व्हेल के दिल की शहरग (धमनी) इतनी बड़ी होती है कि एक इंसान उसमें से रेंग सकता है!  तो अब आप इस पर गौर करते हुए ख्याल करें के वो अल्लाह जो "Al Kabir" है वो अपनी शान में कितना बड़ा और जबरदस्त होगा एक ईमान वाले को चाहिए के जब नमाज़ में "अल्लाहु अकबर" कहे तो अल्लाह की इस शान और कुदरत को दिल में रखकर सजदा करते हुए बढ़ाई व किब्रियाई बयां करे। मगर हक़ीक़त ये है की इनसान अपने रब का बड़ा नाशुक्रा है Qur'an 100.6 इन लोगों ने अल्लाह की क़द्र ही न की जैसा कि उसकी क़द्र करने का हक़ है Qur'an 39.7

तुर्क लोगों का ये मानना है कि शेर जैसा खूंखार होने से बेहतर है भेड़िया जैसा नसली होना ••••

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भेड़िया वाहिद ऐसा जानवर है जो अपने वालिद का इंतिहाई वफ़ादार होता है, भेड़िया एक ग़ैरत मंद जानवर होता है जो अपने वालदैन की ख़िदमत भी करता,इसलिए (तुर्क) लोग अपनी औलाद को शेर के बजाय भेड़िए की तशबिय देते हैं. भेड़िया वाहिद ऐसा जानवर है जो अपनी आज़ादी पर कभी भी समझौता नहीं करता, और किसी का ग़ुलाम नहीं बनता बल्कि जिस दिन पकड़ा जाता है उस वक़्त से ख़ुराक लेना बंद कर देता है, इसलिए इसको कभी भी आप चिड़ियाघर या सर्कस में नहीं देख पाते, इसके मुक़ाबले में शेर,चीता,मगरमच्छ और हाथी समेत हर जानवर को ग़ुलाम बनाया जा सकता है मगर 99% भेड़िये ग़ुलाम नहीं बनते और ना ही भेड़िया कभी मुर्दार खाता है. भेड़िये के बारे मे पढ़ने से ये भी पता चला की बाक़ी जानवरों के मुक़ाबले भेड़िये बिल्कुल अलग है,जैसे कि वाल्दा,बहन, को सोहबत की निगाह से देखता तक नहीं. ये भेड़िये अपनी शरीक़ ए हयात का इतना वफ़ादार होता है कि इसके अलावा किसी और से उस निसबत ताल्लुक नही रखता और आख़िरी तक पूरी तरह से वफ़ादारी निभाता है. भेड़िया अपनी औलाद को पहचानता है क्योंकि इनके मां-बाप एक ही होतें है, जोड़े में से अगर कोई एक मर जाए तो दूसरा मरने व

बहादुरशाह जफर सच्चे देशभक्त ही नहीं, अपने वक्त के नामवर शायर भी थे। उन्होंने गालिब, दाग, मोमिन, जौक जैसे उर्दू शायरों को हौसला दिया

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बहादुरशाह जफर  --------------------- बहादुरशाह जफर सच्चे देशभक्त ही नहीं, अपने वक्त के नामवर शायर भी थे। उन्होंने गालिब, दाग, मोमिन, जौक जैसे उर्दू शायरों को हौसला दिया। गालिब तो उनके दरबार में शायरी करते ही थे। उन दिनों उर्दू शायरी अपनी बुलंदियों पर थी।  जफर की मौत के बाद उनकी शायरी कुल्लियात-ए-जफर के नाम से संकलित हुई।  वर्ष 1857 में बहादुर शाह जफर एक ऐसी शख्सियत थे, जिनका बादशाह के तौर पर ही नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के रूप में भी सम्मान था। मेरठ से विद्रोह कर जो सैनिक दिल्ली पहुंचे उन्होंने सबसे पहले बहादुर शाह जफर को अपना बादशाह माना।  बहादुर शाह जफर ने अंग्रेजों की कैद में रहते हुए भी गजलें लिखना नहीं रोका। वे जली हुई तिल्लियों से जेल की दीवारों पर ग़ज़लें लिखते थे। देश से बाहर रंगून में भी उनकी उर्दू कविताओं का जलवा रहा। उनका जन्म 24 अक्तूबर, 1775 में हुआ था। पिता अकबर शाह द्वितीय की मृत्यु के बाद उनको 18 सितंबर, 1837 में मुगल बादशाह बनाया गया। यह दीगर बात थी कि उस समय तक दिल्ली की सल्तनत बेहद कमजोर हो गई थी और मुगल बादशाह नाममात्र का सम्राट रह गया था। बहादुर शाह जफर को

#Virat #kohli #विराट #कोहली

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धोनी ने विराट में ऐसा क्या देखा, जो उसे अपने बाद टीम इंडिया का कप्तान बना दिया? यहां तक कि कोहली की जगह रोहित शर्मा को 2011 के वर्ल्ड कप टीम में शामिल भी नहीं किया। ये सवाल वर्षों से उठते रहे हैं। इस बीच हिटमैन ने 5 आईपीएल ट्रॉफी जीत लीं तो बीसीसीआई और चयनकर्ताओं ने साजिश करना शुरू किया। विराट को टीम इंडिया की कप्तानी से हटा दिया। माहौल ऐसा बनाया गया कि रोहित आएगा और भारत की किस्मत बदल जाएगी। बड़े टूर्नामेंट में जीत टीम इंडिया के हिस्से आएगी।  बात फरवरी 2019 की है। किंग कोहली के बाद नए कप्तान रोहित की कप्तानी में भुवनेश्वर कुमार वेस्टइंडीज के खिलाफ दूसरा T-20 मुकाबला खेल रहे थे। अपनी ही गेंद पर भुवी एक आसान सा कैच नहीं पकड़ सके। रोहित ने गुस्से में भुवनेश्वर की तरफ बॉल पर जोरदार लात मारी। रोहित का यह अवतार देखकर दंग रह गई थी दुनिया सारी। उसी वक्त समझ आ गया था कि विराट हमेशा विरोधी टीमों के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाता है। पर रोहित अपने बिहेवियर से साथी खिलाड़ियों को ही डराता है।  पाकिस्तान के खिलाफ एशिया कप 2022 में अर्शदीप से कैच छूटने पर हिटमैन रोहित गुस्से से चिल्ला उठा। य

विराट कोहली virat kohli

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पिता...! हर मासूम बच्चे का बड़ा सा आसमान। जिसके लिए कोई भी बच्चा हर हद से गुजर सकता है। साल था 2006 और विराट की उम्र थी 18 वर्ष...! दिल्ली की टीम रणजी में कर्नाटक का सामना कर रही थी। कर्नाटक ने पहली पारी में 446 रन बोर्ड पर टांग दिए थे। दूसरे दिन दिल्ली की टीम भारी संकट में थी। उसके 5 विकेट गिर चुके थे। दिन की समाप्ति तक विराट और विकेटकीपर पुनीत बिष्ट की पारियों की बदौलत दिल्ली का स्कोर 103 रन था। कोहली 40 पर नाबाद लौटे थे।  उसी रात ब्रेन स्ट्रोक की वजह से कोहली के पिता गुजर गए। खबर ड्रेसिंग रूम तक आ गई। 19 दिसंबर 2006 की उस मनहूस रात सबको लगा कि अब अगले दिन विराट बल्लेबाजी नहीं करेंगे। कोहली के बदले कोच ने दूसरे खिलाड़ी को तैयार रहने के लिए कह दिया। आशंकाओं के विपरीत अगले दिन कोहली मैदान पर उतरे और 90 रनों की संघर्षपूर्ण पारी खेलकर दिल्ली को फॉलोऑन से बचाया। आउट होने के बाद कोहली ड्रेसिंग रूम आए और स्क्रीन पर देखा कि आखिर वह कैसे आउट हो गए? इसके बाद पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने घर चले गए।  जिस यंग विराट ने खेल के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए आंसू भरकर बल्लेबाजी की थी, वह व

मुझे सबसे ज़्यादा हँसी आती है जब लोग कहते है क्रिकेट एक व्यवसायिक गेम है।

मुझे सबसे ज़्यादा हँसी आती है जब लोग कहते है क्रिकेट एक व्यवसायिक गेम है। अरे फिर फुटबॉल, बास्केटबॉल, गोल्फ़ वगैरह क्या है??? कहते है क्रिकेट की वजह से दूसरे खेल नज़रंदाज़ होते है, अरे तो दुनिया भर में फुटबॉल की वजह से भी ऐसा होता है, इंग्लैंड जैसे देश जहाँ से क्रिकेट की शुरुआत हुई वहाँ भी क्रिकेट फुटबॉल से ज़्यादा फेमस नही है। अरब देशों में जहाँ अलग अलग खेल उनकी पहचान थे वहाँ भी अब फुटबॉल ही फेमस है।। कोई क्रिकेटर कभी फुटबॉल की लोकप्रियता से परेशान नही होता। बाकी बचपन में जो आई स्पाइ, लूडो, चिड़िया उड़, वगैरह खेलते आएं है वो तो क्रिकेट की बुराई करेंगे ही, सीधी सी बात है, क्रिकेट खेलने के लिए आपको घर से बाहर निकलना पड़ता है, अब घर में रहने वाले लड़के इस खेल से महरूम रहते है तो जवानी में फ्रस्टेशन निकालते है।। रही बात व्यावसाय की तो फेसबुक, फ़िल्मे, रजनीति सब व्यवसाय ही है, दूसरे खेलो से मोह है तो उनकी बात करिये,  मैंने इसी फेसबुक पर सैंकड़ो लड़कियों को देखा नीरज चोपड़ा को क्रश बताते हुए, ज़्यादातर लड़कियाँ उसपर पागलों को तरह फ़िदा थी  ध्यान दीजिए यहाँ भी जेवलिन से प्यार नही था, एक व्यक्ति से प्यार था

आसिफ़ इक़बाल के वक़्त पाकिस्तान की क्रिकेट के टीम के खिलाड़ी इंग्लिश में बात करते थे....

आसिफ़ इक़बाल के वक़्त पाकिस्तान की क्रिकेट के टीम के खिलाड़ी इंग्लिश में बात करते थे.... उनके आधे प्लेयर तो इंग्लिश काउंटी ही खेला करते थे। उनकी क्रिकेट टीम वाक़ई बहुत अच्छी थी उस वक़्त हमारे देश के ज़्यादातर प्लेयर इंग्लिश नही बोल पाते थे। जिन्हें हॉकी की समझ है वो जानते है पाकिस्तान में हॉकी के कितने बेहतरीन प्लेयर्स हुए है सेंटर फॉरवर्ड हसन सरदार हो या कलीमुल्लाह, शहबाज़ हो या शहनाज़  उस वक़्त उनकी टीम हालैंड जर्मनी के बराबर समझी जाती थी उनके पास जहांगीर जैसा दुनिया का सबसे बेहतरीन स्क़वैश प्लेयर था। अब्दुस सलाम जैसे भौतिकविद जिन्हें फिजिक्स के लिए नोबेल पुरस्कार तक मिलता है। अमजद अल्वी बासित अल्वी सबसे पहले ब्रेन (कम्यूटर वायरस) की खोज करते है बेनज़ीर भुट्टो जैसी महिला दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला प्रधानमंत्री बनती है एसिड अटैक की गई लड़कियों के रोज़गार के लिए सबसे पहले ब्यूटी पार्लर की शुरुवात होती है।  दुनिया भर में सबसे पहले प्राइवेट एम्बुलेंस की फ्री सेवा पूरे देशभर में शुरू होती है एशिया में सबसे तेज़ तरक्की करने वाली कंट्री बन रही थी,  ये एक ऐसा देश था जहाँ कभी भुखमरी नही आई। फिर उनके यह

सितम्बर का महीना था और 1946 का साल था। मुज़फ़्फ़रपुर के बेनीबाग़ और अंधना मे औरतों के नाम पर मुस्लिम विरोधी दंगा होता

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कलेजा थाम लो, रुदाद ए ग़म हमको सुनाने दो, तुम्हे दुखा हुआ दिल हम दिखाते हैं, दिखाने दो. सितम्बर का महीना था और 1946 का साल था। मुज़फ़्फ़रपुर के बेनीबाग़ और अंधना मे औरतों के नाम पर मुस्लिम विरोधी दंगा होता है। मुसलमानो के 200 घर लहका दिए गए और सरकारी आंकड़े के हिसाब से 15 लोग मारे भी गए, जो मुसलमान थे। मामला शांत हो गया पर अंदर ही अंदर आग दहक रही थी; मुसलमानो के ख़िलाफ़ माहौल बन रहा था, बस ज़रुरत थी एक चिंगारी की।  15 अगस्त, 1946 को जिन्ना के ‘‘डायरेक्ट एक्शन’’ (सीधी कार्रवाई) के फ़रमान का असर तो बिहार मे कुछ ख़ास नही दिखा पर कलकत्ता जल उठा और ये हुआ हिंदू महासभा के ‘‘निग्रह-मोर्चा’’ और "मुसलिम लीग" के रज़ाकारो टकराओ के बाद.. हज़ारो की तादाद मे लोग मारे गए जिसमे दोनो तरफ़ के लोग थे पर जबतक कलकत्ता शांत होता ‘‘जल उठा नोआखाली’’ और यहां हमवतन हिन्दुओं को एक तरफ़ा मुसलिम लीग के रज़ाकारो के हमले का शिकार होना पड़ा जिसमे सैंकड़ो हिन्दु क़तल कर दिए गए... नोआखाली और बंगाल तो गांधी की मेहनत के वजह कर शांत हो गया लेकिन बिहार के कांग्रेसीयों और अख़बार व प्रेस वालों ने आग मे

भारतीय इतिहास का सबसे ताक़तवर शासक #अलाउद्दीन खिलजी, बड़ी दिलचस्प है इनकी दास्तान

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भारत पर मंगोलों का हमला नाकाम करने वाला सुल्तान भारतीय इतिहास का सबसे ताक़तवर शासक अलाउद्दीन खिलजी, बड़ी दिलचस्प है इनकी दास्तान अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास बड़ा ही दिलचस्प रहा है अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली के सुल्तान थे और वह खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी के भतीजे और दामाद थे इतिहासकारों के अनुसार यह माना जाता है अलाउद्दीन खिलजी खिलजी साम्राज्य का सबसे अधिक शक्तिशाली शासक रहा थे और उसने सुल्तान बनने के पहले इलाहाबाद के पास कड़ा नाम की जागीर दी गई थी जिसे उन्होंने संभाला था । अलाउद्दीन खिलजी के बचपन का नाम गुरु शासक था अलाउद्दीन खिलजी के तख्त पर बैठने के बाद अमीरे उन्हें अमीर ए तुजुक से भी नवाजा गया.दुनियाँ की बड़ी बड़ी सल्तनत जब मंगोलो के ख़ौफ़ से थर थर कांप रही थी, तब उस वक़्त हिन्दुस्तान में एक ऐसा बहादुर और दिलेर शहंशाह हुकुमत कर रहा था जिनसे मंगोलो को एक बार नही बल्कि पांच बार युद्ध में शिकस्त दिया बुरी तरह हार का सामना कर रहे मंगोलो मे अलाउद्दीन ख़िलजी के नाम का ख़ौफ़ तारी हो गया था. अलाउद्दीन ख़िलजी दुनिया के ऐसे चंद शासकों में भी शामिल थे जिन्होंने मंगोल आक्रमणों को नाकाम किय

ये कब्रिस्तान हरियाणा की झज्जर रियासत के उन बीस सैनिकों का है जिनको 15 अक्टूबर 1857 को गुडियानी गाँव में अंग्रेज़ो द्वारा गोली मारकर शहीद कर दिया गया था।

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ये कब्रिस्तान हरियाणा की झज्जर रियासत के उन बीस सैनिकों का है जिनको 15 अक्टूबर 1857 को गुडियानी गाँव में अंग्रेज़ो द्वारा गोली मारकर शहीद कर दिया गया था। अंग्रेजों के दिल्ली पर कब्ज़े के बाद झज्जर नवाब को पकड़ने के लिए ब्रिगेडियर Shower को भेजा गया था। लेकिन वो गुड़गांव, रिवाड़ी, जटुसाना, गुडियानी, चरखी दादरी, छुच्छकवास और फिर झज्जर होते वहां पहुंचा।  Shower को लग रहा था की अगर वह सीधे दिल्ली से झज्जर गया तो लड़ाई बहुत जबरदस्त होगी। क्योंकि उस समय झज्जर छावनी में झज्जर रियासत की एक तैयार सेना थी। इस ब्रिटिश टुकड़ी ने दादरी जाते समय झज्जर नवाब के 20 घुड़सवारों को से गोली मा'र दी थी।  लेकिन झज्जर के आखिरी नवाब ने अभी तक अंग्रेजों से लड़ने का फैसला नहीं किया था, यहां तक ​​कि दिल्ली रिज पर भी। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों की मदद के लिए मई 1857 में केवल 200 पुरुषों की एक छोटी घुड़सवार सेना को दिल्ली भेजा था।  एक छोटी सी पहाड़ी के पास गुड़ियानी गांव में झज्जर सैनिकों की याद में 1990 के आसपास एक शिलालेख बनाया गया था। लेकिन बदकिस्मती से वहां के लोग ही इन शहीदों की शहादत को भूल गए। संकलित

#bcci #Kohli #ganguli 2021 में विराट को कप्तानी से हटाया गया। आज 2022 में सौरव गांगुली से

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2021 में विराट को कप्तानी से हटाया गया। आज 2022 में सौरव गांगुली से बीसीसीआई अध्यक्ष पद छीना जा रहा है। कर्मा इस दुनिया की सबसे बड़ी हकीकत है। ऊपरवाले के घर देर है, अंधेर नहीं...! 2021 में विराट बीसीसीआई के दबाव के कारण T-20 इंटरनेशनल की कप्तानी छोड़ने के बावजूद वनडे क्रिकेट में कप्तानी करना चाहते थे। तब उन्हें बिना बताए रोहित शर्मा को वनडे की कमान सौंप दी गई। पूछने पर सौरव गांगुली ने कहा था कि हम वाइट बॉल क्रिकेट में एक ही कप्तान चाहते थे, इसलिए चयनकर्ताओं ने यह फैसला लिया। 2022 में सौरव गांगुली बीसीसीआई के अध्यक्ष बने रहना चाहते हैं लेकिन उनकी मर्जी के खिलाफ रोजर बिन्नी को अध्यक्ष बनाया जा रहा है। दादा को बोर्ड अध्यक्ष के पद से हटाया जा रहा है। कौन भुला सकता है वह दौर जब 2021 T-20 वर्ल्ड कप से पहले गांगुली ने बयान दिया कि हमने विराट को भारतीय T-20 टीम की कप्तानी ना छोड़ने के लिए बहुत समझाया लेकिन वह नहीं माने। इसलिए हमें मजबूरी में उनसे वनडे कप्तानी भी छीननी पड़ी।  इतने बड़े झूठ के बाद तब किंग कोहली सामने आए थे। उन्होंने बताया था कि मेरे T-20 टीम की कप्तानी छोड़ने के निर्णय को बीसीसीआई

पंडित जी #पंडित #ज्योतिष

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मेरा एक मित्र है।उनकी एक शादीसुदा बहन है।नोटबन्दी के कारण उसके जीजाजी का धंधा चौपट हो गया और बाद में लॉकडाउन के कारण कोई दूसरा धंधा शुरू नहीं कर पाए। घर चलाना, बच्चों की स्कूल की फीस भरना व भविष्य को लेकर चिंतित रहने लगे।जाहिर सी बात है आदमी चिंता में रहेगा तो सोचता ज्यादा व बोलता कम है। बहन को गलतफहमी होने लगी मेरा आदमी आजकल बातचीत कम करने क्यों लगा है।बहन मायके आई तो चेहरे की शिकन बता रही थी कुछ गड़बड़ है और सबसे पहले मां ही बेटी को नोटिस करती है। माँ ने एक पंडित से टीपना दिखवाया तो पंडित जी ने काल सर्प योग बताया और पति के भटकने की बात की।मां ने दोस्त की इच्छा के खिलाफ पंडित जी से कर्मकांड करवाये। यह बात बेटी के दिमाग मे घर कर गई कि मेरा पति रास्ता भटक गया है और अब घर मे सतत खटपट चालू हो गई है।दोस्त को रोज समझाता हूँ और वो भी समाधान की पूरी कोशिश कर रहा है लेकिन माँ मानने को तैयार नहीं है कि पंडित जी गलत हो सकते है! दो बार कर्मकांड किये जा चुके है रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंचाया जा चुका है।आगे के कर्मकांडों के नए-नए मेनू थमाए जा रहे है। इन पंडितों को देख-देखकर गांवों में भोपे तैयार हो

टोकना कहां तक सही है

दर्द को गुजरने दीजिए ————————— बहुत पुरानी याद है। मेरी साली देर से घर आई थी। मैं वहीं ससुराल में बैठा था। मां चिंतित तो थी कि बेटी सहेली के घर गई है अब तक नहीं आई, लेकिन चेहरा शांत था। तब मोबाइल फोन क्या घर-घर लैंड लाइन वाले फोन भी नहीं थे। प्रश्न था कि किससे पता करें कि वो कहां है?  उत्तर भारत में लड़कियां घर से निकलती हैं तो घर वालों के मस्तिष्क में चिंता की गहरी लकीरें उभरने लगती हैं। बेटी कॉलेज से आई, कह कर गई कि सहेली से मिलने जा रही है जल्दी लौट आएगी। फिर आई क्यों नहीं?  चिंतित सब थे, कह कोई कुछ नहीं रहा था। अचानक दरवाजे की घंटी बजी। साली सामने थी। खुश।  सास जैसे ही घंटी बजी, रसोई में चली गईं। चाय, नाश्ता बना। सब साथ बैठे। लेकिन मां ने एक बार भी बेटी को नहीं टोका। नहीं पूछा कि तुम्हें आने में देर क्यों हुई? मैंने ही साली को टोका कि देर क्यों हुई, सब परेशान थे तो उनसे कहा कि आते हुए ऑटो रिक्शा नहीं मिल रहा था।  संजय सिन्हा ने टोका था, बेटी की मां ने नहीं। न टोका, न पूछा। हालांकि वो परेशान थीं लेकिन परेशानी जाहिर नहीं कर रही थीं।  बाद में संजय सिन्हा ने एक दिन सास से पूछा कि आपने

National Award for MANUU Alumnus

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October 07, 2022 National Award for MANUU Alumnus Hyderabad: Mr. Mohd Jabir, an Alumnus of Maulana Azad National Urdu University (MANUU), Directorate of Distance Education (DDE),  has been awarded ‘National Award for Teachers, 2022’ by the President of India, Smt. Droupadi Murmu at a function held at New Delhi on the occasion of Teachers Day 2022.  The award was conferred to 46 exceptional teachers from across India.The winners are honoured with a certificate of merit, a cash reward  and a silver medal. According to Prof. Mohammed Razaullah Khan, Director, DDE, Mohd Jabir passed MA English through distance mode in 2010 and is currently a Teacher of English and Environmental Studies in Government Middle School Karith, Kargil, Ladakh.  Prof. Syed Ainul Hasan, Vice-Chancellor congratulated Mr. Jabir on his achievement and appreciated his efforts of learning and proving his ability to achieve a National level honour.    Prof Razaullah Khan described it as a proud moment for MAN

1 अक्टूबर, 1918: आज ही के दिन अरब और ब्रिटेन की संयुक्त सेना ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सल्तनत ए उस्मानिया यानी तुर्कों से दमिश्क (Damascus syria) छीन पर कब्जा कर लिया था

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1 अक्टूबर, 1918: आज ही के दिन अरब और ब्रिटेन की संयुक्त सेना ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सल्तनत ए उस्मानिया यानी तुर्कों से दमिश्क (Damascus syria) छीन पर कब्जा कर लिया था,इसे हिजाज़ यानी अरब की सल्तनत उस्मानिया से मिली आज़ादी कहा गया। इस अभियान में अरब और अंग्रेज़ों की संयुक्त का कमांडर था T.E Lawrence जिसे लॉरेंस ऑफ अरेबिया भी कहा जाता है जो की एक मश्हूर ब्रिटिश सैनिक था।  1914, मिस्र में ब्रिटिश खुफिया अधिकारी के पद पर लॉरेंस की भर्ती हुई इस दौरान उसने काहिरा में एक साल से ज़्यादा वक़्त बिताया और यहां से खूफिया जानकारियां इकठ्ठा की, 1916 में उसे एक ब्रिटिश राजनयिक के साथ अरब भेजा गया जहां अमीर ए मक्का हुसैन इब्ने अली ने सल्तनत ए उस्मानिया के खिलाफ़ बगावत का ऐलान किया हुआ था। तुर्क और अरबों की आपसी फूट का फायदा अंग्रेज़ों ने उठाया और इस बगावत में आग में घी डालने के लिए लॉरेंस ने अपने अंग्रेज़ अफसरों को मना लिया और लॉरेंस को अमीर ए मक्का के बेटे फैसल की अरब सेना में एक संपर्क अधिकारी के रूप में शामिल होने के लिए भेज दिया गया। लॉरेंस ऑफ अरेबिया की कमांड में, अरबों ने तुर्की रेलवे ला

2 अक्टूबर 1187 आज ही के दिन फ़ातेह बैतुल मुक़द्दस सुल्तान सलाह उद्दीन अय्यूबी ने बैतुल मुक़द्दस को सलीबियों से आज़ाद करवाया था।#SalahUddinTheGreat

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फ़ातेह बैतुल मुक़द्दस सुल्तान सलाह उद्दीन अय्यूबी र.अ जिनका खौफ़ और एहतराम आज भी सलीबियों के दिलों में मौजूद है जिसकी पहली बानगी FV601 Saladin नाम की एक बख्तरबंद टैंक नुमा घातक और मा'रक हथि'यार है। जिसको 1954 में ब्रिटेन में तैयार किया गया था। और इसका नाम सुल्तान सलाह उद्दीन अय्यूबी के नाम पर FV601 Saladin रखा गया अंग्रेज अपने तलफ्फ़ुज़ में सलाह उद्दीन को 'सलाडिन' कहते हैं और ये जानकारी विकीपीडिया पर भी मौजूद है। दूसरी बानगी Kingdom Of Heaven नाम की हाॅलिवुड मूवी में देखने को मिली जिसमें की फिल्म कार ने सुल्तान सलाह उद्दीन अय्यूबी को नकारात्मक किरदार में दिखाने के बावजूद भी उनके किरदार से पूरा इंसाफ किया असल में ये फेअल सुल्तान की खूबी और इस्लामी तालीमात के रूप में मौजूद थीं। इस फिल्म के आखिर में जब ईसाई फौज सुल्तान सलाह उद्दीन की फौजों से हार जाती है यरूशलम पर मुसलमानों का कब्ज़ा होने लगता है तब सलाह उद्दीन उस ईसाई सिपह सालार के पास आकर बोलते है की तुम्हारे सारे एहलकारों,औरतों और बच्चों को इस्लामी फौंजे अपनी अमान में आपके इलाकों तक छोड़ कर आएंगी। तब सुल्तान सलाह उद्दीन

अपने असली हीरो को पहचानिए.जिन्होंने ना इंसाफ़ी की आवाज़ को बिना जाति धर्म के भेदभाव को बुलंद किया है !ये हैं संदीप पांडेय

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अपने असली हीरो को पहचानिए.जिन्होंने ना इंसाफ़ी की आवाज़ को बिना जाति धर्म के भेदभाव को बुलंद किया है ! ये हैं संदीप पांडेय  संदीप भाई आईआईटी बीएचयू से पढ़े इंजीनियर हैं. उन्होंने अमेरिका की जानीमानी यूनिवर्सिटी ऑफ़ बर्कले से अप्लाइढ फ़िज़िक्स में पीएचडी की है. उन्होंने विज्ञान की किताबें लिखी हैं. उनकी रिसर्च की लोग आज भी दाद देते हैं. वो चाहते तो अमेरिका में रह कर आज बड़ी से बड़ी नौकरी कर रहे होते और करोड़ों डॉलर हर साल कमा रहे होते. लेकिन पच्चीस साल पहले संदीप भाई ने अमेरिका त्याग दिया. खादी पहनाना शुरू किया और भारत लौट कर गाँव गाँव जाकर समाज सेवा का काम शुरू किया. संदीप भाई को मैंने तीन साल पहले अमेरिकी संसद में भाषण देने बुलाया था. जब एयरपोर्ट पर लेने पहुँचा तो वो हवाई चप्पल और खादी का कुर्ता-पायजामा पहन कर ही अमेरिका आए. और उसी लिबास में अमेरिका की संसद में तक़रीर की. कल गुजरात के गोधरा में पुलिस ने उनको हिरासत में ले लिया. लेकिन वो निडर हैं. वो गोधरा गए हैं बिल्किस बानो के समर्थन में पदयात्रा करने. अपने असली हीरो पहचानिए. मज़लूम के हक़ की लड़ाई लड़ने वाला ही असली हीरो है. पर्दे प

MANUU awards PhD to Shaneha Tarannum

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September 22, 2022 MANUU awards PhD to Shaneha Tarannum Hyderabad: Maulana Azad National Urdu University (MANUU) has declared Ms. Shaneha Tarannum, D/o Mr. Md. Warish Ansari qualified in Doctor of Philosophy in Social Work. She has worked on the topic “Effects of Gulf Migration on Muslim Families: A Study of Gopalganj District, Bihar” under the supervision of Prof. Md. Shahid Raza, Department of Social Work, MANUU. The Viva-Voce was conducted on 14-09-2022.  (Abid Abdul Wasay) Public Relations Officer

बाबरी मस्जिद मामले में हम तआगूती अदलिया के सामने इतना भी नहीं कह सके कि देखिये आपका लिबरल निज़ाम है, आपके पास ताकत है, आप जो चाहें फैसला दे सकते हैं

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बाबरी मस्जिद मामले में हम तआगूती अदलिया के सामने इतना भी नहीं कह सके कि देखिये आपका लिबरल निज़ाम है, आपके पास ताकत है, आप जो चाहें फैसला दे सकते हैं… लेकिन हमारा दीनी नज़रिया है और यही नज़रिया हम अपने आने वाली पीढ़ी को बताते रहेंगे कि जो जगह मस्जिद के लिए वक़्फ़ कर दी गयी वो क़यामत की सुबह तक मस्जिद ही रहेगी, उस जगह को किसी भी सूरत में बुतखाना में तब्दील नहीं किया जा सकता… लेकिन हमने ऐसा बिल्कुल भी नहीं कहा बल्कि इसके उलट हमने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला होगा हमें मंजूर है और फिर बुतखाना बनाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया… हिजाब के मामले में भी हमने ये कभी नहीं कहा कि आपका ये निज़ाम इस्लामी निज़ाम नहीं है, लिबरल निज़ाम है, आपके पास ताकत है, आप जो चाहें फैसला दे सकते हैं… लेकिन हम अपने पीढ़ी दर पीढ़ी ये बताते रहेंगे कि हमने तुमको इसलिए स्कूल नहीं भेज सके क्योंकि लिबरल निज़ाम को तुम्हारे हिजाब से दिक्कत थी, बैन लगा दिया था… मुझे नहीं लगता कि न्यायाधीश व लिबरल सिस्टम को ये मैसेज देने में किसी प्रकार का कोई खतरा था… लेकिन हमने ऐसा नहीं किया बल्कि हमने कहा कि कोर्ट का जो भी फैसला होगा हमें म