बाबरी मस्जिद मामले में हम तआगूती अदलिया के सामने इतना भी नहीं कह सके कि देखिये आपका लिबरल निज़ाम है, आपके पास ताकत है, आप जो चाहें फैसला दे सकते हैं

बाबरी मस्जिद मामले में हम तआगूती अदलिया के सामने इतना भी नहीं कह सके कि देखिये आपका लिबरल निज़ाम है, आपके पास ताकत है, आप जो चाहें फैसला दे सकते हैं…

लेकिन हमारा दीनी नज़रिया है और यही नज़रिया हम अपने आने वाली पीढ़ी को बताते रहेंगे कि जो जगह मस्जिद के लिए वक़्फ़ कर दी गयी वो क़यामत की सुबह तक मस्जिद ही रहेगी, उस जगह को किसी भी सूरत में बुतखाना में तब्दील नहीं किया जा सकता…

लेकिन हमने ऐसा बिल्कुल भी नहीं कहा बल्कि इसके उलट हमने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला होगा हमें मंजूर है और फिर बुतखाना बनाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया…

हिजाब के मामले में भी हमने ये कभी नहीं कहा कि आपका ये निज़ाम इस्लामी निज़ाम नहीं है, लिबरल निज़ाम है, आपके पास ताकत है, आप जो चाहें फैसला दे सकते हैं…

लेकिन हम अपने पीढ़ी दर पीढ़ी ये बताते रहेंगे कि हमने तुमको इसलिए स्कूल नहीं भेज सके क्योंकि लिबरल निज़ाम को तुम्हारे हिजाब से दिक्कत थी, बैन लगा दिया था…

मुझे नहीं लगता कि न्यायाधीश व लिबरल सिस्टम को ये मैसेज देने में किसी प्रकार का कोई खतरा था…

लेकिन हमने ऐसा नहीं किया बल्कि हमने कहा कि कोर्ट का जो भी फैसला होगा हमें मंजूर है, ऐसा कहते ही हमने 50% हार एक्सेप्ट कर लिया और दूसरी तरफ वो कहते रहे कि फैसला चाहे कुछ भी हो हम तो मंदिर वहीं बनाएंगे…

अगर न्यायाधीश व लिबरल सिस्टम को ये मैसेज देने में हम कामयाब हो जाते कि ये हमारा सिस्टम तो बिल्कुल नहीं है, हम तो तुम्हारे सामने केस इसलिए लाये थे कि तुम कहते नहीं थकते कि तुम्हारे लिबरल सिस्टम में सब बराबर हैं, कोई धार्मिक भेदभाव नहीं, लेकिन हम देख रहे हैं कि तुम्हारा लिबरल सिस्टम लगातार मुसलमानों के साथ अन्यायपूर्ण भेदभाव कर रहा है, 
आपको जो फैसला करना है कीजिये लेकिन ये बातें हम अपने पीढ़ी दर पीढ़ी बताएंगे कि लिबरल निज़ाम मुसलमानों के साथ इंसाफ कर ही नहीं सकता बल्कि लिबरल निज़ाम मुसलमानों के साथ अन्याय ही करता है…

ऐसा करने से कम से कम न्यायाधीश समेत निज़ामे बातिला को हम ये तो बताने में कामयाब हो ही जाते कि मुसलमान (लगभग 20-25% आबादी) इस नाइंसाफी वाले सिस्टम से खुद को अलग कर लिया है…

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