आसिफ़ इक़बाल के वक़्त पाकिस्तान की क्रिकेट के टीम के खिलाड़ी इंग्लिश में बात करते थे....

आसिफ़ इक़बाल के वक़्त पाकिस्तान की क्रिकेट के टीम के खिलाड़ी इंग्लिश में बात करते थे....

उनके आधे प्लेयर तो इंग्लिश काउंटी ही खेला करते थे। उनकी क्रिकेट टीम वाक़ई बहुत अच्छी थी

उस वक़्त हमारे देश के ज़्यादातर प्लेयर इंग्लिश नही बोल पाते थे।

जिन्हें हॉकी की समझ है वो जानते है पाकिस्तान में हॉकी के कितने बेहतरीन प्लेयर्स हुए है

सेंटर फॉरवर्ड हसन सरदार हो या कलीमुल्लाह, शहबाज़ हो या शहनाज़ 

उस वक़्त उनकी टीम हालैंड जर्मनी के बराबर समझी जाती थी

उनके पास जहांगीर जैसा दुनिया का सबसे बेहतरीन स्क़वैश प्लेयर था।

अब्दुस सलाम जैसे भौतिकविद जिन्हें फिजिक्स के लिए नोबेल पुरस्कार तक मिलता है।

अमजद अल्वी बासित अल्वी सबसे पहले ब्रेन (कम्यूटर वायरस) की खोज करते है

बेनज़ीर भुट्टो जैसी महिला दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला प्रधानमंत्री बनती है

एसिड अटैक की गई लड़कियों के रोज़गार के लिए सबसे पहले ब्यूटी पार्लर की शुरुवात होती है। 

दुनिया भर में सबसे पहले प्राइवेट एम्बुलेंस की फ्री सेवा पूरे देशभर में शुरू होती है

एशिया में सबसे तेज़ तरक्की करने वाली कंट्री बन रही थी, 

ये एक ऐसा देश था जहाँ कभी भुखमरी नही आई।

फिर उनके यहाँ कट्टरपंथ धर्म फिरके को लेकर अंधभक्ति शुरू हुई। धर्म जिसने खेल संस्कृति से लेकर हर चीज़ पे असर डाला। मुट्ठी भर शिया अहमदिया उनके लिए दुश्मन हो गए। 

कम्युनिस्ट उनके लिए देशद्रोही हो गए, लाहौर यूनिवर्सिटी में कम्युनिस्टों का बोलबाला था, वहां बहुत सी औरतें साड़ी पहनती थी

नतीजा क्या हुआ उनके यहाँ खेल निचले से निचले पायदान पर आ गया। 

हॉकी का ये हाल हुआ कि बड़े टूर्नामेंट में भी क्वालिफाई नही कर पाई।

खेल तो पूरी तरह से तबाह हुआ ही साथ में शिक्षा स्वास्थ आदि पर भी प्रभाव पड़ा, फ़िल्म इंडस्ट्री बर्बाद हुई

हालांकि इन सबके लिए पूरी तरह से अंध धार्मिकता को ही कुसूरवार नही ठहरा सकते लेकिन ये जगज़ाहिर है कि हमारी वैज्ञानिक और आधुनिक सोच, हमारी मूलभूत समस्याओं पर चर्चा हमारे भविष्य की योजनाओं से भी कहीं ज़्यादा धर्म से जुड़ी चीज़ों को महत्व दिया गया। 

धर्म या धर्म से जुड़ी चीज़ो को खत्म करना भी तानाशाही है, हर इंसान को अपना धर्म अपना मज़हब मनाने का अधिकार है, यहाँ तक किसी भी तरह के कपड़े पहनने, खाना खाने की छूट।

पर बुरा तब होता है जब चीज़े थोपी जाती है,

जबकि इधर हमारे देश ने दिन रात तरक्की की। खेल से लेकर शिक्षा, फ़िल्मो, नाटकों, आदि में विश्वपटल पे धाक जमा ली।

आज ओलंपिक में हमारे बहुत से खिलाड़ी ठीक प्रदर्शन कर रहे है गोल्ड जीत रहे इसके अलावा बहुत से खेलो में अच्छी भागीदारी के साथ मौजूदगी दर्ज करा रहे है

उधर पाकिस्तान दिन ब दिन अपनी साख खोता जा रहा था।

दुनिया के नाकाम मुल्कों में उसकी गिनती होने लगी हालांकि कुछ सालों से उनके यहाँ कट्टरता कम हुई है,

आम जनता को भी समझ आने लगा है की जिस नफरत को वो दूसरो के लिए इस्तेमाल कर रहे थे असल मे उनके लिए ही सबसे खतरनाक थी।

ये सच है किसी भी धर्म का सबसे ज़्यादा नुकसान उसी धर्म का कट्टरपंथी करता है। 

जिस कपड़े को पहनकर आप नफरत फैलाएंगे, जिस नारों का उदघोष आप नफ़रत के लिए करेंगे, जिस खुदा ईश्वर भगवान के नाम पर दहशत को बढ़ावा देंगे लोग उन कपड़ों, नारों और उन ईश्वरो से असहज महसूस करेंगे।
  

बहरहाल कुछ सालों से हमारे देश मे भी धर्म को लेकर अंधभक्ति शुरू हो गई। 

खेल से लेकर फ़िल्मो तक इसका असर दिखने लगा है। अब तो संसद भी अछूता नही रहा,

खैर नतीजा ये हुआ कि कुपोषण में हम नंबर वन, सुखी जीवन मे निचले पायदान पर पहुंच गए। 

बेरोज़गारी में 45 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। बच्ची भात भात कहती मर गई, मुज़फ़्फ़रपुर में सौ के ऊपर बच्चो की जान चली गई लेकिन हम नेताओं को तो चार्टर्ड प्लेन से इलाज के लिए अमेरिका तक भेज सकते है लेकिन बेहतर इलाज के लिए इन बच्चो को दिल्ली तक नही भेज पाए।

भुखमरी में हम नेपाल पाकिस्तान बंग्लादेश से भी पीछे हो गए, स्वतंत्र पत्रकारिता में रैंक गिर गई, 

न्यायपालिका की निष्पक्षता में पिछड़ गए, मानवाधिकार की रैंक में गिरावट आ गई।

हाल यही रहा तो हम भविष्य में पाकिस्तान बन जाएंगे या उससे भी बुरे।

(फ़ायक इन मूड)


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