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अपने असली हीरो को पहचानिए.जिन्होंने ना इंसाफ़ी की आवाज़ को बिना जाति धर्म के भेदभाव को बुलंद किया है !ये हैं संदीप पांडेय

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अपने असली हीरो को पहचानिए.जिन्होंने ना इंसाफ़ी की आवाज़ को बिना जाति धर्म के भेदभाव को बुलंद किया है ! ये हैं संदीप पांडेय  संदीप भाई आईआईटी बीएचयू से पढ़े इंजीनियर हैं. उन्होंने अमेरिका की जानीमानी यूनिवर्सिटी ऑफ़ बर्कले से अप्लाइढ फ़िज़िक्स में पीएचडी की है. उन्होंने विज्ञान की किताबें लिखी हैं. उनकी रिसर्च की लोग आज भी दाद देते हैं. वो चाहते तो अमेरिका में रह कर आज बड़ी से बड़ी नौकरी कर रहे होते और करोड़ों डॉलर हर साल कमा रहे होते. लेकिन पच्चीस साल पहले संदीप भाई ने अमेरिका त्याग दिया. खादी पहनाना शुरू किया और भारत लौट कर गाँव गाँव जाकर समाज सेवा का काम शुरू किया. संदीप भाई को मैंने तीन साल पहले अमेरिकी संसद में भाषण देने बुलाया था. जब एयरपोर्ट पर लेने पहुँचा तो वो हवाई चप्पल और खादी का कुर्ता-पायजामा पहन कर ही अमेरिका आए. और उसी लिबास में अमेरिका की संसद में तक़रीर की. कल गुजरात के गोधरा में पुलिस ने उनको हिरासत में ले लिया. लेकिन वो निडर हैं. वो गोधरा गए हैं बिल्किस बानो के समर्थन में पदयात्रा करने. अपने असली हीरो पहचानिए. मज़लूम के हक़ की लड़ाई लड़ने वाला ही असली हीरो है. पर्दे प

MANUU awards PhD to Shaneha Tarannum

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September 22, 2022 MANUU awards PhD to Shaneha Tarannum Hyderabad: Maulana Azad National Urdu University (MANUU) has declared Ms. Shaneha Tarannum, D/o Mr. Md. Warish Ansari qualified in Doctor of Philosophy in Social Work. She has worked on the topic “Effects of Gulf Migration on Muslim Families: A Study of Gopalganj District, Bihar” under the supervision of Prof. Md. Shahid Raza, Department of Social Work, MANUU. The Viva-Voce was conducted on 14-09-2022.  (Abid Abdul Wasay) Public Relations Officer

बाबरी मस्जिद मामले में हम तआगूती अदलिया के सामने इतना भी नहीं कह सके कि देखिये आपका लिबरल निज़ाम है, आपके पास ताकत है, आप जो चाहें फैसला दे सकते हैं

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बाबरी मस्जिद मामले में हम तआगूती अदलिया के सामने इतना भी नहीं कह सके कि देखिये आपका लिबरल निज़ाम है, आपके पास ताकत है, आप जो चाहें फैसला दे सकते हैं… लेकिन हमारा दीनी नज़रिया है और यही नज़रिया हम अपने आने वाली पीढ़ी को बताते रहेंगे कि जो जगह मस्जिद के लिए वक़्फ़ कर दी गयी वो क़यामत की सुबह तक मस्जिद ही रहेगी, उस जगह को किसी भी सूरत में बुतखाना में तब्दील नहीं किया जा सकता… लेकिन हमने ऐसा बिल्कुल भी नहीं कहा बल्कि इसके उलट हमने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला होगा हमें मंजूर है और फिर बुतखाना बनाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया… हिजाब के मामले में भी हमने ये कभी नहीं कहा कि आपका ये निज़ाम इस्लामी निज़ाम नहीं है, लिबरल निज़ाम है, आपके पास ताकत है, आप जो चाहें फैसला दे सकते हैं… लेकिन हम अपने पीढ़ी दर पीढ़ी ये बताते रहेंगे कि हमने तुमको इसलिए स्कूल नहीं भेज सके क्योंकि लिबरल निज़ाम को तुम्हारे हिजाब से दिक्कत थी, बैन लगा दिया था… मुझे नहीं लगता कि न्यायाधीश व लिबरल सिस्टम को ये मैसेज देने में किसी प्रकार का कोई खतरा था… लेकिन हमने ऐसा नहीं किया बल्कि हमने कहा कि कोर्ट का जो भी फैसला होगा हमें म

अस्‍पताल के डेंगू वार्ड में जेठवारा प्रतापगढ़ की 40 वर्षीय एक महिला भर्ती है।

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मरीज़ भर्ती हो तो हर वो व्यक्ति जो आस्तिक है अस्पताल में ही अपने प्रिय के लिये पूजा, मनौती करने लगता है। लेकिन इलाहाबाद के तेज बहादुर सप्रू चिकित्‍सालय (बेली) में महिला के नमाज पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद अस्‍पताल प्रशासन ने इस मामले में जांच बैठाई है। आखिर महिला को रोकने के लिए अस्‍पताल कर्मियों ने कवायद क्‍यों नहीं की। आगे से ऐसा न हो इस पर भी सख्‍ती बरती जा रही है। अस्‍पताल के डेंगू वार्ड में जेठवारा प्रतापगढ़ की 40 वर्षीय एक महिला भर्ती है। उसकी एक तीमारदार पलंग से कुछ दूर जाकर नमाज पढ़ने लगी। वह करीब 12 मिनट तक नमाज पढ़ती रही। वहीं मौजूद कुछ तीमारदारों ने विरोध भी जताया। किसी एक ने मोबाइल फोन से उसकी वीडियो बना ली। उसे वायरल कर दिया तो जानकारी चिकित्साधीक्षक तक भी पहुंची। बेली अस्पताल के अधीक्षक डा. एमके अखौरी ने बताया कि सूचना मिलने पर वहां गए। नमाज पढ़ने वाली महिला को चेतावनी दी। साथ ही इसकी अनदेखी करने वाली वार्ड प्रभारी शबनम राय को भी चेतावनी दी गई। बताया कि मामले की जांच के आदेश दिए गए हैं। हद है सांप्रदायिक सत्ता और प्रशासन की धर्मिक संकीर्णता की.

#russia #ukrain

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अमेरिका में डॉलर की कीमत गिरने से बचाने के लिए फेडरल बैंक ने ब्याज़ दर भारी मात्रा में बढ़ा दी, मगर महगाई चरम पर है जो बढ़ती जायेगी  ब्याज दर बढ़ने से सोने की कीमत में कुछ कमी आई मगर और फिर ऊंचाई छू लेगा अमेरिका नहीं रोक पाएगा!  ब्रिटेन में पोंड की स्थिति बहुत खराब हो चुकी है  40 साल के सबसे निचले स्तर पर है महंगाई 50 साल की चरम सीमा को पार कर गई है हर चौथा ब्रिटिश अपना बिजली का बिल पे करने में असमर्थ हो चुका है! जर्मनी फ्रांस महंगाई से त्रस्त है जनता में उबाल आ रहा है ऑस्ट्रेलिया में महंगाई को लेकर भारी ही प्रदर्शन हुए हैं!  इसके विपरीत रूस में न कोई प्रदर्शन है ना महंगाई की चर्चा, ना रूबल डीवैल्यू हुआ  न खाद्यान्न वस्तुओं में कमी आई , पहले हफ्ते में ही एयर स्ट्राइक करके यूक्रेन पर कब्जा जमाने वाला रूस अब जमीन पर यूक्रेन में डिमिलिटराइजेशन डी नव नाज़ी सफलता कर रहा है!  डीपीआर एलपीआर राज्य अलग बना चुका है अगर रोज यही युद्ध विराम की घोषणा भी कर दे तो भी जीत रूस की ही होगी, क्योंकि युद्ध करके रूस ने बहुत कुछ पाया है अमेरिका यूरोप और यूक्रेन ने बहुत कुछ गवाया है! आप सभी यह बात अच्छे से जा

स्वतंत्र भारत अपनी आज़ादी का पचहत्तरवाँ साल गिरह मना रहा है

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कई बार इतिहास अपनी पीछे लौटने की गति पर हंसता है । स्वतंत्र भारत अपनी आज़ादी का पचहत्तरवाँ साल गिरह मना रहा है । जिसने अंग्रेज़ी साम्राज्य से लड़ कर देश को आज़ादी “ दी “ आज उसे ही देश निकाला के उपक्रम में डाला जा रहा है । यहाँ हमने “ दिलाई “   नहीं , “ दी “ लिखा है । “दी “ और “दिलाई “ में बहुत लम्बा फासला है । 1947 में अंग्रेज़ी हुकूमत भारत को दो टुकड़े में बाँट कर देश को आज़ाद घोषित कर दिया ।  इतिहास यहाँ से चुप्पी में चला जाता है , क्यों की इतिहास लिखनेवाले अधिकतर वामपंथी थे , उन्होंने बड़ी चतुरायी से “ अंग्रेज के बाद का भारत “ का हिस्सा ही अंधेरे में डाल दिया । भारत और पाकिस्तान दो मुल्क बने । भारत में कांग्रेस और पाकिस्तान में मुस्लिम लीग के हाथ सत्ता आयी । अब भारत में कांग्रेस को तय करना था की देश को किस तंत्र से चलाया जाय ? यह मुकम्मिल तौर पर कांग्रेस के हाथ था , इस आज़ादी में कांग्रेस के अलावा किसी दूसरे का हाथ नहीं था । संघ और सावरकर की हिंदू महा सभा खुल्लम खुल्ला अंग्रेज़ी हुकूमत के साथ था । साम्यवादी अपने “ अंतराष्ट्रीय “ जुड़ाव के चलते अंग्रेजों का

रूह अफज़ा 1907 में दिल्ली में लाल कुँए में स्थित हमदर्द दवाखाने में ईजाद हुआ. #rooh_afzah #रूहअफ्जा

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आज खबर में है कि देहली हाईकोर्ट ने अमेज़न इंडिया को पाकिस्तान मेड रूह अफज़ा (चित्र में प्रदर्शित) को अपनी लिस्ट से हटाने के लिये कहा है, भारत की हमदर्द कम्पनी ने ही इन रूह अफज़ा को हटाने की मांग की है... उधर रेडिट के फेसबुक पेज पर इंडियन और पाकिस्तानी इस ख़बर की वजह जाने बग़ैर लड़ मर रहे हैं 😊😊 ....ख़ैर छड्डो ... हम रूह अफज़ा की तारीख़ की बात करते हैं ... . .... #रूह_अफज़ा_के_बारे_में . रूह अफज़ा 1907 में दिल्ली में लाल कुँए में स्थित हमदर्द दवाखाने में ईजाद हुआ. . इसके ईजाद होने की कहानी ये है . पीलीभीत में पैदा होने वाले हाफिज़ अब्दुल मजीद साहब दिल्ली में आ कर बस गए. यहां हकीम अजमल खां के मशहूर हिंदुस्तानी दवाखाने में मुलाज़िम हो गए. बाद में मुलाज़मत छोड़ कर अपना "हमदर्द दवाखाना" खोल लिया. हकीम साहब को जड़ी बूटियों से खास लगाव था. इसलिए जल्द ही उनकी पहचान में माहिर हो गए. हमदर्द दवाखाने में बनने वाली सब से पहली दवाई 'हब्बे मुक़व्वी ए मैदा" थी. . उस ज़माने में अलग अलग फूलों, फलों और बूटियों के शर्बत दसतियाब थे. मसलन गुलाब का शर्बत, अनार का शर्बत वगैरह वगैरह.  . हमदर्द दवाख

तीन हज़ार ब्राहमणों ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि टीपू उन्हें ज़बरदस्ती मुसलमान बनाना चाहता था।’’

2018 की पोस्ट  प्रो. बी. एन. पाण्डेय का लेख ‘‘तीन हज़ार ब्राहमणों ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि टीपू उन्हें ज़बरदस्ती मुसलमान बनाना चाहता था।’’ इतिहास के साथ यह अन्याय!! प्रो. बी. एन. पाण्डेय–:भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा एवं इतिहासकार उडीसा के भूतपूर्व राज्यपाल, राज्यसभा के सदस्य और इतिहासकार प्रो. विश्म्भरनाथ पाण्डेय ने अपने अभिभाषण और लेखन में उन ऐतिहासिक तथ्यों और वृतांतों को उजागर किया है, जिनसे भली-भांति स्पष्ट हो जाता है कि इतिहास को मनमाने ढंग से तोडा-मरोडा गया है। ‘अब में कुछ ऐसे उदाहरण पेश करतहा हूं, जिनसे यह स्पष्ट हो जायेगा कि ऐतिहासिक तथ्यों को कैसे विकृत किया जाता है। जब में इलाहाबाद में 1928 ई. में टीपु सुलतान के सम्बन्ध में रिसर्च कर रहा था, तो ऐंग्लो-बंगाली कालेज के छात्र-संगठन के कुछ पदाधिकारी मेरे पास आए और अपने ‘हिस्ट्री-ऐसोसिएशन‘ का उद्घाटन करने के लिए मुझको आमंत्रित किया। ये लोग कालेज से सीधे मेरे पास आए थे। उनके हाथों में कोर्स की किताबें भी थीं, संयोगवश मेरी निगाह उनकी इतिहास की किताब पर पडी। मैंने टीपु सुलतान से संबंधित अध्याय खोला तो मुझे जिस वाक्य ने बहुत ज्यादा आश्

#भारत जोड़ो यात्रा bharat jodo yattra

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भारत जोड़ो यात्रा और भारत का विचार -राम पुनियानी भारत जोड़ो यात्रा एक राजनैतिक दल का उपक्रम है परन्तु करीब 200 सामाजिक कार्यकर्ताओं, जिनका चुनावी राजनीति से कोई प्रत्यक्ष लेनादेना नहीं है, भी इसमें भागीदारी कर रहे हैं। जानेमाने सामाजिक कार्यकर्ता और स्वराज इंडिया के मुखिया योगेन्द्र यादव से सामाजिक संस्थाओं से यात्रा में भागीदारी करने की अपील की है. इस अपील में उन्होंने इस यात्रा की आवश्यकता का अत्यंत सारगर्भित वर्णन किया है. उनके अनुसार:   - इससे पहले हमारे गणतंत्र के मूल्यों पर कभी उतना नृशंस हमला नहीं हुआ, जितना कि पिछले कुछ समय से हो रहा है. -इससे पहले कभी नफरत, विघटन और बहिष्करण के भाव देश पर उस तरह से नहीं लादे गए जिस तरह से इन दिनों लादे जा रहे हैं. -इससे पहले कभी हम पर उस तरह से निगाहें नहीं रखी गईं और हमें उस स्तर के प्रचार और दुष्प्रचार का सामना नहीं करना पड़ा, जितना कि अब करना पड़ रहा है. -इससे पहले हमने कभी ऐसी निष्ठुर सरकार नहीं देखी जिसे अर्थव्यवस्था के बर्बाद होने और लोगों के हालात की कोई परवाह ही नहीं है और जो केवल अपने कुछ चमचों की सेवा में लगी है. -इससे पहले कभी वास्तविक

आज आचार्य विनोबा भावे का जन्म दिवस हैविनोबा भावे ने आज़ादी के बाद भूमि समस्या के कारण तेलंगाना में किसानों और ज़मींदारों के बीच हिंसा शुरू होने पर भूदान आन्दोलन शुरू किया .

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आज आचार्य विनोबा भावे का जन्म दिवस है विनोबा भावे ने आज़ादी के बाद भूमि समस्या के कारण तेलंगाना में किसानों और ज़मींदारों के बीच हिंसा शुरू होने पर भूदान आन्दोलन शुरू किया . विनोबा कहते थे कि क्रांति तीन तरीकों से होती है , कानून - करुणा या क़त्ल से . विनोबा कहते थे कानून का असर दिल पर नहीं होता इसलिए कानून से समाज नहीं बदलता . इसलिए करुणा और समझदारी से समाज को बदलना चाहिए . लेकिन अगर समाज की समझदारी नहीं जागेगी तो फिर लोग अन्याय मिटाने के लिए हथियार उठा लेंगे , फिर क़त्ल का रास्ता लोग अपना लेंगे. इसलिए मैं समाज की समझदारी जगाने के लिए काम करूंगा . फिर विनोबा ने अस्सी हज़ार किलोमीटर पैदल यात्रा करी . विनोबा को पैंतालीस लाख एकड़ ज़मीन दान में मिली जिसमे से तैंतीस लाख एकड़ ज़मीन भूमिहीनों बाँट दी गयी थी . विनोबा कहते थे कि या तो अपने गाँव के लोगों को प्रेम से ज़मीन दे दो नहीं तो गरीब अपना हक़ आपकी गर्दन काट कर ले लेगा . विनोबा कहते थे मैं आपसे भीख नहीं मांग रहा हूँ मैं असल में आपकी जान बचा रहा हूँ . उत्तर प्रदेश में हमीरपुर जिले के मंगरौठ गाँव के लोगों ने पूरी गाँव की ज़मीन विनोबा को दान दे दी . ये

#Ladies #ओरत #मुसलमान #Musalman #Islam

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औरत अगर बिवी के रुप में थी तो रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया" खदीजा अगर तुम मेरी जिल्द (चमड़ी) भी मांगती तो मैं उतार कर दे देता, जब औरत बेटी के रूप में थी तो आप ﷺ ने हमेशा खुद खड़े हो कर इस्तकबाल किया और फरमाया "फातिमा मेरी जिगर का टुकड़ा है" औरत जब बहन के रूप में थी तो आप ﷺ ने फरमाया बहन खुद आने की ज़हमत क्यूँ की तुम पैगाम भिजवा देती मैं सारे कैदी छोड़ देता और जब औरत माँ के रूप में आयी तो कदमों में जन्नत डाल दी गई और हसरत भरी सदा भी तारीख़ ने महफ़ूज किया कि फरमाया गया ऐ सहाबा-ए-कराम..!!  काश "मेरी माँ ज़िंदा होती मैं नमाज़-ए-इशा पढ़ रहा होता मेरी माँ " मोहम्मद पुकारती, मैं नमाज़ छोड़ कर माँ की बात सुनता "औरत की तकलीफ़ का इतना एहसास फरमाया गया कि दौरान-ए-नमाज़ बच्चे के रोने की आवाज़ सुनते ही किरात मुख़्तसर कर दी  ऐ उम्मत-ए- मोहम्मदी की बेटियों तुम बहुत अज़मत वाली हो की तुम्हें अल्लाह के रसूल ने इज़्ज़त दी है!

#ब्रह्मराष्ट्रएकम #भारत #भारतमाताकीजय #अमरशहीद #वीरसावरकर #भाईसचिनमिश्र #sachinmishra #teamsachinmishra #bhaisachinmishra

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#इतिहास_के_गलियारों_का_सच  🇮🇳45 साल के महात्मा गाँधी 1915 में भारत आते हैं, 2 दशक से भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में बिता कर। इससे 4 साल पहले 28 वर्ष का एक युवक अंडमान में एक कालकोठरी में बन्द होता है। अंग्रेज उससे दिन भर कोल्हू में बैल की जगह हाँकते हुए तेल पेरवाते हैं, रस्सी बटवाते हैं और छिलके कूटवाते हैं। वो तमाम कैदियों को शिक्षित कर रहा होता है, उनमें राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ प्रगाढ़ कर रहा होता है और साथ ही दीवालों कर कील, काँटों और नाखून से साहित्य की रचना कर रहा होता है।  उसका नाम था- विनायक दामोदर सावरकर।  वीर सावरकर। उन्हें आत्महत्या के ख्याल आते। उस खिड़की की ओर एकटक देखते रहते थे, जहाँ से अन्य कैदियों ने पहले आत्महत्या की थी। पीड़ा असह्य हो रही थी। यातनाओं की सीमा पार हो रही थी। अंधेरा उन कोठरियों में ही नहीं, दिलोदिमाग पर भी छाया हुआ था। दिन भर बैल की जगह खटो, रात को करवट बदलते रहो। 11 साल ऐसे ही बीते। कैदी उनकी इतनी इज्जत करते थे कि मना करने पर भी उनके बर्तन, कपड़े वगैरह धो देते थे, उनके काम में मदद करते थे। सावरकर से अँग्रेज बाकी कैदियों को दूर रखने की कोशिश करते थे। अंत में

सुप्रीम कोर्ट से सिद्दीक़ कप्पन को बेल मिल गई है

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सुप्रीम कोर्ट से सिद्दीक़ कप्पन को बेल मिल गई है. ये बहुत अच्छी और सुकून देने वाली बात है. सिद्दीक़ कप्पन से मैं कई साल पहले मिला था. वो बेहद ईमानदार और ख़ुद्दार इंसान हैं. उनको जेल भेजना अपने आप में अपराध था और है. योगी आदित्यनाथ की सरकार क़ानून को दरकिनार कर पूरी तरह मुसलमानों से नफ़रत में लिप्त है.  लेकिन कप्पन को अचानक ये बेल क्यों मिल गई है? क़रीब एक महीने पहले वाशिंगटन डीसी के एक रेस्तराँ में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के दो अधिकारी मुझसे मिलने आए. खाना खाते हुए हमारे बीच भारत में मानवाधिकार पर बात होने लगी. लगभग हर बात पर हम एक-राय थे सिवाय न्यायपालिका को लेकर. मैंने उनको तमाम उदाहरण देकर बताया कि किस तरह भारत की अदालतें संघी हो चुकी हैं और उनका हर फ़ैसला जन-विरोधी है, और किस तरह उन फ़ैसलों से साफ़ दिखता है कि ऊपर से नीचे तक भारत के जज मुसलमानों से नफ़रत करते हैं और सरकार के विरोधियों को देश का दुश्मन मानने लगे हैं. बहस करते हुए उनमें से एक अमेरिकी अधिकारी ने मुझसे कहा, "अगर ऐसा है तो मुहम्मद ज़ुबैर को बेल कैसे मिल गई?" मैंने जवाब दिया, "इसलिए कि आप यहाँ ब

#dhoni #Virat # rohit

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धोनी ने विराट में ऐसा क्या देखा, जो उसे अपने बाद टीम इंडिया का कप्तान बना दिया? यहां तक कि कोहली की जगह रोहित शर्मा को 2011 वर्ल्ड कप टीम में शामिल भी नहीं किया। ये सवाल वर्षों से उठते रहे हैं। इस बीच हिटमैन ने 5 आईपीएल ट्रॉफी जीत लीं तो बीसीसीआई और चयनकर्ताओं ने साजिश करना शुरू किया। विराट को टीम इंडिया की कप्तानी से हटा दिया। माहौल ऐसा बनाया गया कि रोहित आएगा और भारत की किस्मत बदल जाएगी। बड़े टूर्नामेंट में जीत टीम इंडिया के हिस्से आएगी।  बात फरवरी 2019 की है। किंग कोहली के बाद नए कप्तान रोहित की कप्तानी में भुवनेश्वर कुमार वेस्टइंडीज के खिलाफ दूसरा T-20 मुकाबला खेल रहे थे। अपनी ही गेंद पर भुवी एक आसान सा कैच नहीं पकड़ सके। रोहित ने गुस्से में भुवनेश्वर की तरफ बॉल पर जोरदार लात मारी। रोहित का यह अवतार देखकर दंग रह गई थी दुनिया सारी। उसी वक्त समझ आ गया था कि विराट हमेशा विरोधी टीमों के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाता है। पर रोहित अपने बिहेवियर से साथी खिलाड़ियों को ही डराता है।  पाकिस्तान के खिलाफ एशिया कप 2022 में अर्शदीप से कैच छूटने पर हिटमैन रोहित गुस्से से चिल्ला उठा। यह नजारा करोड़ों

दुःखद मौत साइरस मिस्त्री..

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मौत का कोई समय नहीं होता वो जब आती है तो कोई मौका नहीं देतीं....इसलिए जो लम्हा जीवन में मिलता है उसे खुलकर.. हंसी ख़ुशी अपनों के साथ जी लीजिए क्या पता कल हो न हो ...!!            दुःखद मौत साइरस मिस्त्री..                             😌 रविवार, तारीख कल 4 सितंबर 2022, दोपहर करीब सवा तीन बजे का समय और मुंबई-अहमदाबाद नेशनल हाइवे, महाराष्ट्र के पालघर के पास अचानक से लक्जरी कार डिवाइडर से टकराती है और देखते ही देखते कार में सवार चार लोगों में से दो की मौत की खबर आती है. इस सड़क दुर्घटना में मरने वाला एक व्यक्ति कोई आम शख्स नहीं बल्कि देश की सबसे बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी में से एक शापूरजी पालोनजी ग्रुप से जुड़ा साइरस मिस्त्री था, जो एक समय में टाटा ग्रुप का चेयरमैन भी था. वहीं दूसरा शख्स उनका करीबी दोस्त जहांगीर दिनशॉ पंडोले था. कौन कर रहा था कार ड्राइव? जब ये दुर्घटना हुई तो ये मर्सडीज कार (MH 47 AB 6705) गुजरात से मुंबई की ओर जा रही थी. जैसे ही ये सूर्या नदी के पुल पर पहुंची तो चरोटी के पास डिवाइडर से टकरा गई. कार को ड्राइव जहांगीर दिनशॉ पंडोले की पत्नी अनाहिता पंडोले कर रही थीं. वो इस दुर्घ

जी हाँ ! वह असाधारण शख्स कोई और नही "डॉ विश्वेश्वरैया" थे।

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#प्रेरकप्रसंग  एक ट्रेन द्रुत गति से दौड़ रही थी। ट्रेन अंग्रेजों से भरी हुई थी। उसी ट्रेन के एक डिब्बे में अंग्रेजों के साथ एक भारतीय भी बैठा हुआ था। डिब्बा अंग्रेजों से खचाखच भरा हुआ था। वे सभी उस भारतीय का मजाक उड़ाते जा रहे थे। कोई कह रहा था, देखो कौन नमूना ट्रेन में बैठ गया, तो कोई उनकी वेश-भूषा देखकर उन्हें गंवार कहकर हँस रहा था।कोई तो इतने गुस्से में था कि ट्रेन को कोसकर चिल्ला रहा था, एक भारतीय को ट्रेन मे चढ़ने क्यों दिया ? इसे डिब्बे से उतारो। किँतु उस धोती-कुर्ता, काला कोट एवं सिर पर पगड़ी पहने शख्स पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ा।वह शांत गम्भीर भाव लिये बैठा था, मानो किसी उधेड़-बुन मे लगा हो। ट्रेन द्रुत गति से दौड़े जा रही थी औऱ अंग्रेजों का उस भारतीय का उपहास, अपमान भी उसी गति से जारी था।किन्तु यकायक वह शख्स सीट से उठा और जोर से चिल्लाया "ट्रेन रोको"।कोई कुछ समझ पाता उसके पूर्व ही उसने ट्रेन की जंजीर खींच दी।ट्रेन रुक गईं। अब तो जैसे अंग्रेजों का गुस्सा फूट पड़ा।सभी उसको गालियां दे रहे थे।गंवार, जाहिल जितने भी शब्द शब्दकोश मे थे, बौछार कर रहे थे।किंतु वह शख्स गम्भीर मुद्रा

भाजपा शासित राज्यों में मदरसों को निशाना बनाया जा रहा है। जब मैंने इसकी मुख़ालिफ़त की तो मुझ पर झूटा इल्ज़ाम लगा दिया गया कि मैं मदरसों के आधुनिकरण के ख़िलाफ़ हूं। जबकि सच्चाई कुछ और है।

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भाजपा शासित राज्यों में मदरसों को निशाना बनाया जा रहा है। जब मैंने इसकी मुख़ालिफ़त की तो मुझ पर झूटा इल्ज़ाम लगा दिया गया कि मैं मदरसों के आधुनिकरण के ख़िलाफ़ हूं। जबकि सच्चाई कुछ और है। मोदी सरकार के मदरसों के आधुनिकरण की योजना के तहत सिर्फ़ UP में 50,000 शिक्षकों की कुल ₹750 करोड़ तनख़्वाह बाक़ी है। संसद भवन में मैंने ही सवाल उठाया था और पूर्व अल्पसंख्यक कार्य मंत्री ने इस सवाल पर मुझे आश्वासन दिया था कि फंड जल्द तक़सीम कर दिए जायेंगे। टीचरों की ऐसे म'अशी हालात का क्या ज़िम्मेदार मैं हूँ? बाक़ी फंड देने के लिए सरकार को कौन से सर्वे की ज़रूरत है? आधुनिकरण के बहाने मदरसों को निशाना बनाया जा रहा है। केंद्र सरकार के UDISE सर्वे में देश-भर के तमाम स्कूलों के रिकॉर्ड हर साल अपडेट होतें हैं, जिसमें मान्यता प्राप्त (recognised) और गैर-मान्यता प्राप्त (unrecognised) मदरसों की गिनती भी होती है। अलग से सर्वे करने का कोई मतलब ही नहीं है। सरकारी आंकड़े ये बताते हैं कि मुसलमान अपने बच्चों को पढ़ाना चाहता है लेकिन ग़ुरबत की वजह से पढ़ा नहीं पाता। 2011 से मेरा मुतालबा रहा है कि स्कॉलरशिप को 'Demand driv

वही रूसी पनडुब्बियां हैं,जिन्होंने 1971की जंग में अमेरिका के विरुद्ध ढाल बनकर भारतीय नोसेना की रक्षा की थी😯

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ये वही रूसी पनडुब्बियां हैं,जिन्होंने 1971की जंग में अमेरिका के विरुद्ध ढाल बनकर भारतीय नोसेना की रक्षा की थी😯 50 साल पहले 1971 में अमेरिका ने भारत को 1971 के युद्ध को रोकने की धमकी दी थी। चिंतित भारत ने सोवियत संघ को एक एसओएस भेजा। एक ऐसी कहानी जिसे भारतीय इतिहास की किताबों से लगभग मिटा दिया गया है।  जब 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की हार आसान लग रही थी, तो किसिंजर ने निक्सन को बंगाल की खाड़ी में परमाणु-संचालित विमानवाहक पोत यूएसएस एंटरप्राइज के नेतृत्व में यूएस 7वीं फ्लीट टास्क फोर्स भेजने के लिए प्रेरित किया।  यूएसएस एंटरप्राइज, 75,000 टन, 1970 के दशक में 70 से अधिक लड़ाकू विमानों के साथ दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु-संचालित विमानवाहक पोत था। समुद्र की सतह पर एक चलता-फिरता राक्षस । भारतीय नौसेना के बेड़े का नेतृत्व 20,000 टन के विमानवाहक पोत विक्रांत ने किया, जिसमें 20 हल्के लड़ाकू विमान थे।  अधिकारिक तौर पर यूएसएस एंटरप्राइज को खाड़ी बंगाल में भेजे जाने का कारण बांग्लादेश में अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा करने के लिए भेजा जाना बताया गया था, जबकि अनौपचारिक रूप से यह भारतीय सेना को ध

Waterfall Implosion या Controlled Demolition कहा जाता है जिसमें Explosives और Detonators की मदद से महज चंद seconds में ही बड़ी से बड़ी इमारत

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मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता कि क्या NOIDA स्थित ये Twin Tower क्यूँ गिरा दिया गया l  आज पोस्ट करने के पीछे का मक़सद आपको यह बताना है कि किस तरह से एक 100 मीटर ऊँची इमारत महज 9 सेकंड में ज़मींदोज़ हो जाती है l  इसे अंग्रेज़ी में Waterfall Implosion या Controlled Demolition कहा जाता है जिसमें Explosives और Detonators की मदद से महज चंद seconds में ही बड़ी से बड़ी इमारत गिराये जाते हैं l  Supertech Builders की 32 Storey Apex और 28 मंजिला Ceyane को उपरोक्त तकनीक से ही कुछ पलों में जमींदोज कर दिया गया l इसमें 3700 Kg Explosives का इस्तेमाल किया गया l लेकिन मैं आपको ये सब क्यूँ बता रहा हूँ l  ज़रा अपने दिमाग पर ज़ोर डालिए और याद कीजिए कि 11th September 2001 को भी इसी प्रकार से एक 110 मंजिला इमारत को कुछ पलों में जमींदोज कर दिया गया था l नहीं नहीं! उसे तो ओसामा बिन लादेन के लोगों ने 2 हवाई जहाजों की मदद से उड़ाया था l  अमेरिका स्थित 110 मंजिला World Trade Centre जो कि एक Twin Tower की शक्ल में था, 9/11 को कथित तौर पर ओसामा बिन लादेन के लोगों ने हवाई जहाज़ को बिल्डिंग से टकराकर महज चंद सेकं

लाल सिंह चड्डा, थ्री इडियट्स, तारे जमीं पर, पीके सरीखी फ़िल्म तो नहीं कही जा सकती है

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लंबे समय से बॉलीवुड में पड़े सूखे को आमिर खान निर्मित लाल सिंह चड्डा फ़िल्म के रिलीज़ से होने से राहत मिल गयी है। साथ यह भी प्रूव हो गया कि बायकॉट गैंग, नफरती गैंग इत्यादि की कोई नहीं सुनता, यदि सब्जेक्ट और उसका प्रजेंटेशन बेहतरीन तरीके से हो।  लाल सिंह चड्डा, थ्री इडियट्स, तारे जमीं पर, पीके सरीखी फ़िल्म तो नहीं कही जा सकती है लेकिन वन टाईम वॉचेबल मूवी जरूर है। आमिर खान और मोना सिंह की एक्टिंग बहुत इम्प्रेसिव है। फ़िल्म इमोशनल भी है और मैसेज डिलीवर भी करती है।  फ़िल्म रियल घटनाओं जैसे भारत में इमरजेंसी हटने के साथ, क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतना, ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या, सिख दंगे, मंडल कमीशन, अयोध्या रथ यात्रा, अटल बिहारी जी की सरकार, अन्ना आंदोलन और मोदी सरकार तक की झलकियां है। हालांकि इन झलकियों से कोई निष्कर्ष नहीं निकलता है बस इतना है कि साम्प्रदायिक दंगों को एक नाम दिया गया "मलेरिया फैलना" इसलिए लाल सिंह चड्डा धर्म और धार्मिक पहचान से दूरी रखता है हालांकि अंत में आमिर का सरदार बनना भी एक ट्विस्ट है। किसी का केवल अंधा समर्थन करने या अंधा विरोध करने से फ़िल्म को कुछ नह

एक #मोटी_राखी हुआ करती थी, बडी सी #फोम वाली

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एक #मोटी_राखी हुआ करती थी, बडी सी #फोम वाली... उपर शुभ लाभ बैठे होते थे.. दो_रूपये से लेकर पाँच रूपये तक की मोटी सी बडी़ राखी #गांव की दुकानों में मिला करती थी.. वो दुकानें जो प्रतिबिंब हुआ करती थी सादगी की... बहनें तब #रोड़वेज बस से आया करती थी.. जैसे ही बस, बस अड्डे पर आती..हम भाग लिया करते थे...एक पुराना झोला..जिसमें #बताशे_गुड़, नारियल हुई करती थे...और खुशकिस्मती से बहन अगर, किसी बड़े से #कस्बे में ब्याही है तो फिर फल के नाम पर हुआ करते थे दर्जन भर #केले... ये वो #दौर था जब राखी बंधवाने का इतना #शौक की जब तक #कलाई_से_कोहनी तक सब कुछ धागों से भर ना जाता तब तक चैन नहीं पड़ता था... मुंह में घुमते उस गुड़ की मिठास आजकल के डिब्बे वाली मिठाई से हजार गुना बेहतर लगती थी। फिर जेब से एक मुड़ा तुड़ा ग्रामीण पृष्ठभुमि को परिलक्षित करता हुआ, #ट्रैक्टर_छाप पाँच #रूपये का कागज का नोट पाकर बहन इतनी खुश हो जाया करती थी कि जैसे उन्हे कुबेर का #खजाना मिल गया हो... #शाम को घर में #खीर_पूडी़ का दौर चलता.. राखी का धागा इतना #पवित्र माना जाता कि आस #पडौ़स की लड़कियों से भी राखी बंधवाने में कोई परहेज नहीं

world_Indigenous_peoples_day

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उक्त तस्वीरों में केवल लोकतंत्र ही देखना। तब आपको यहां दिखाई पड़ेगा सभी का समान हिस्सा और समझ आयेगा कि यही होता असली लोकतंत्र और असली लोकतंत्र आदिवासियों, मूलनिवासीयों की देन है। विश्वभर में आज मूलनिवासी दिवस #world_Indigenous_peoples_day मनाया जाता है। भारत में इसी दिवस को आदिवासी दिवस भी कहा जाता है। धरती के आदिवासी ही मूलनिवासी हैं। तमाम धातु से लेकर दवा, दारू तक आदिवासियों की सम्पत्ति और खोज है।  आज भी भारत के जितने भी पेटेंट दर्ज है यकीन कीजिए 90 प्रतिशत फर्जी है क्योंकि वह उक्त व्यक्ति का मूल अध्ययन, खोज या विषय नहीं है। उसने बस पेटेंट अपने नाम किया है। भले ही आज राष्ट्रपति एक आदिवासी महिला हो मगर वास्तविकता यही है कि आज भी मूलनिवासी, आदिवासी सबसे वंचित और उपेक्षित है। देश के साधन, संसाधनों पर उनका रत्तीभर का भी हिस्सा नहीं है। इसकी चिंता हम सबको मिलकर करनी है।  वैश्विक पटल पर मूलनिवासियों के मानवाधिकारों को लागू करने और उनके संरक्षण के लिए 1982 में UNO (संयुक्त राष्ट्र संघ) ने एक कार्यदल UNWGIP (United Nations Working Group on Indigenous Populations) के उप

आज तमन्ना का जन्मदिन है , केवल एक पिता होने की कारण ही नहीं , एक अच्छी इंसान होने के कारण मुझे लगता है कि तमन्ना मौजूदा दौर में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के रूप में अपने भूमिका निभा रही है .

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आज तमन्ना का जन्मदिन है , केवल एक पिता होने की कारण ही नहीं , एक अच्छी इंसान होने के कारण मुझे लगता है कि तमन्ना मौजूदा दौर में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के रूप में अपने भूमिका निभा रही है . अमिति से बहुत अच्छे नम्बर के साथ एल एल एम् करने के बाद उसने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह न तो कोई सरकारी सेवा करेगी न कोर्पोरेट में नोकरी .  शुरुआत सुश्री मोहिनी गिरी के साथ कर तमन्ना ने सी ए ए आन्दोलन में भागीदारी के कारण पुलिस द्वारा फर्जी मुक़दमों में फंसाए गये लोगों के लिए काम करना शुरू किया -- न केवल लीगल मदद. बल्कि किसी का मकामन किराया तो किसी के स्कूल की फीस तक --  पंजाब के २३ साल के लवप्रीत को दिल्ली पुलिस ने यूं ए पी ए में गिरफ्तार किया - वह तीन महीने एक जोड़ी कपड़ों में जेल में सड रहा था, तमन्ना ने उसकी जमानत हाई कोर्ट से करवा दी . जब यूपी में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह को धर्मांध भीड़ ने शहीद कर दिया तो उनके घर पहुँच कर उनके परिवार को हर संभव क़ानूनी मदद के लिए भी वह आगे रही -- अभी जहांगीरपुरी हिंसा में पुलिस ने एक किशोर को मास्टर मंद बता कर गिरफ्तार किया और उसकी निर्मम पिटाई की --

कुरान शरीफ की सुरतों का नाम और उनका मतलब

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कुरान शरीफ की सुरतों का नाम और उनका मतलब उतआपने अक्सर कुरआन शरीफ की सुरतों का नाम तो सुना या पढ़ा ही होगा लेकिन क्या आपको इसका मतलब भी मालूम है? तो आइये देखते है 👇 1-सूरह फातेहा = शुरू करना 2- सूरह बकराह= गाय 3- सूरह आले इमरान= हजरत इमरान अलेहिस्सलाम की औलाद  4- सूरह निसा = औरतें 5- सूरह मायदा= दस्तरख्वान 6- सूरह अन्आम = जानवर,मवेशी  उत7- सूरह आराफ = बुलंदीयाँ 8- सूरह अनफाल = माले गनीमत 9- सूरह तौबा= माफी 10- सूरह युनुस = एक नबी का नाम 11- सूरह हुद = एक नबी का नाम 12- सूरह यूसुफ = एक नबी का नाम 13- सूरह राअद =बादल की गरज 14- सूरह इब्राहीम = एक नबी का नाम 15- सूरह हिज्र = एक जगह का नाम 16- सूरह नहल = मधुमक्खी 17- सूरह इस्राईल = हज़रत याक़ूब अलेहिस्सालाम की औलाद  18- सूरह कहफ = गार,गुफा 19- सूरह मरयम = हजरत इसा अलेहिस्सलाम की वालदा मोहतरमा का नाम 20- सूरह ताहा = हुरूफे मुकत्तआत के दो हुरूफ 21- सूरह अंबिया = अल्लाह के तमाम पैगंबर,नबी की जमा (बहुवचन) 22- सूरह हज = जियारत 23- सूरह मुअमीनून = ईमान वाले लोग 24- सूरह नूर = रौशनी 25- सुरह फुरकान = सही और गलत में फर्क करने वाली चीज

अमरीकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान की धरती पर उतर गईं हैं। पेलोसी कांग्रेस के सांसदों के दल का नेतृत्व कर रही हैं।

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अमरीकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान की धरती पर उतर गईं हैं। पेलोसी कांग्रेस के सांसदों के दल का नेतृत्व कर रही हैं। चीन इसे अपनी चुनौती के रूप में देख रहा है।82 साल की उम्र में ताइवान की धरती पर उतर कर चीन को आँख दिखा देना कोई साधारण घटना नहीं है। इस बार अमरीका ने अपनी तरफ़ से कदम बढ़ा दिया है। अब बारी चीन की है। चीन वेबसाइट हैक करेगा, कुछ धमाका करेगा या इस चुनौती को स्वीकार कर अमरीका से युद्ध करेगा, अभी इन सवालों के साथ आप इस पूरे खेल को प्यादे की तरह देखिए। इस खेल में हम सब प्यादे हैं। यूक्रेन अच्छा भला देश था। अमरीका के चक्कर में बर्बाद हो गया। प्रतिबंधों से रूस को ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा। यूरोप की ऐसी हालत हो गई है कि जर्मनी जैसा देश जिसने कोयला से बिजली उत्पादन बंद कर दिया था, रिटायर हो चुके कर्मचारियों को खोज रहा है कि वे बंद पड़ी फ़ैक्ट्री को चालू करें और कोयले से बिजली पैदा करें। इस सर्दी में यूरोप थर-थर काँपेगा। रूस का ख़ास नहीं बिगड़ा है। हालत यह हो गई कि उसी रूस से समझौता कर यूक्रेन ने मक्के की खेप निकलवानी पड़ी है ताकि दुनिया को भूखमरी से बचाया जा सके।  क्या ताइवान दूसर

1 सितंबर, 1900 को, सुल्तान अब्दुलहमीद द्वितीय के आदेश पर,खिलाफत ए उस्मानिया अधिकारियों ने मदीना मुनव्वरा को दमिशक (सीरीया) और तुर्की के इस्तांबुल से जोड़ने वाली 1,320 किलोमीटर रेलवे प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया।

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1 सितंबर, 1900 को, सुल्तान अब्दुलहमीद द्वितीय के आदेश पर,खिलाफत ए उस्मानिया अधिकारियों ने मदीना मुनव्वरा को दमिशक (सीरीया) और तुर्की के इस्तांबुल से जोड़ने वाली 1,320 किलोमीटर रेलवे प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया। ये प्रोजेक्ट सितंबर 1908 में कंप्लीट हो गया था और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 1916 में नष्ट होने तक रेलवे चालू रहा। आज शायद ही कोई ये बात जानता होगा कि इस महान रेलवे प्रोजेक्ट तैयार करने करने में दुनिया के सभी हिस्सों के आम मुसलमानों द्वारा चंदा जमा किया गया था यहां तक की मुसलमान औरतों ने अपने गहने और ज़ेवर तक इस अज़ीम काम के लिए दान कर दिये थे किसानो ने अपनी जमीन से गुजरने वाली रेलवे लाइनों से प्रभावित किसानों ने ओटोमन राज्य से मुआवजा लेने से इनकार कर दिया था, तुर्क सैनिकों और अरब सैनिको ने रेलवे लाइन के निर्माण के लिए बिना पैसे लिए मज़दूरी की अरब परिवारों ने यह सुनिश्चित किया कि उनके बेटे अपने पिता का अनुसरण करते हुए महान रेलवे करियर में वॉलेंटियर्स की तरह शामिल हों। ये एक मंहगा प्रोजेक्ट था जिसकी उस वक्त की लागत 4 मिलियन तुर्की लीरा थी यानी लगभग 570 किलों सोना

क्या आप जानते हैं कि आपके दफन अंतिम संस्कार के बाद आम तौर पर क्या होता है?

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क्या आप जानते हैं कि आपके दफन अंतिम संस्कार के बाद आम तौर पर क्या होता है?    कुछ ही घंटों में रोने की आवाज पूरी तरह से बंद हो जाएगी।   रिश्तेदारों के लिए होटलों से खाना मंगवाने में जुटेगा परिवार.. पोते दौड़ते और खेलते रहेंगे। कुछ पुरुष सोने से पहलेआपके बारे में कुछ संवेदनात्मक टिप्पणी करेंगे! कोई रिश्तेदार आपकी बेटी से फोन पर बात करेगा कि आपात स्थिति के कारण वह व्यक्तिगत रूप से नहीं आ पा रहा है। अगले दिन रात के खाने में, कुछ रिश्तेदार कम हो जाते हैं, और कुछ लोग सब्जी में पर्याप्त नमक नहीं होने की शिकायत करते हैं। भीड़ धीरे धीरे छंटने लगेगी.. आने वाले दिनों में कुछ कॉल आपके फोन पर बिना यह जाने आ सकती हैं कि आप मर चुके हैं। आपका कार्यालय या दुकान आपकी जगह लेने के लिए किसी को ढूंढने में जल्दबाजी करेगा। दो सप्ताह में आपका बेटा और बेटी अपनी आपातकालीन छुट्टी खत्म होने के बाद काम पर लौट आएंगे। महीने के अंत तक आपका जीवनसाथी भी कोई कॉमेडी शो देख कर हंसने लगेगा। सबका जीवन सामान्य हो जाएगा जिस तरह एक बड़े पेड़ के सूखे पत्ते में और जिसके लिए आप जीते और मरते हैं, उसमें कोई अंतर नहीं है, यह सब इतनी

इस ख़ूबसूरत नौजवान का नाम 'हाशिम रज़ा' है। हाशिम पाकिस्तान के पंजाब स्टेट के ज़िला सरगोधा के रहने वाले हैं।

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इस ख़ूबसूरत नौजवान का नाम 'हाशिम रज़ा' है। हाशिम पाकिस्तान के पंजाब स्टेट के ज़िला सरगोधा के रहने वाले हैं। हाशिम की एक तस्वीर आजकल सोशल मीडिया पर गर्दिश कर रही है। मैं देखा तो मुझे लगा इसपर लिखना चाहिए। ख़ैर... पिछले डेढ़ सालों से हाशिम कैंसर जैसी बदतरीन बीमारी में मुब्तला हैं। तकलीफ़ की बात यह है कि चौथे स्टेज पे हैं। हाशिम निहायत ही पढ़े लिखे और क़ाबिल नौजवान हैं। यह कई सारी तंज़ीम से जुड़े हुए थे और उन तंज़ीमों से जुड़कर ग़रीब लोगों की मदद करते थे। इन्हें लोगों की मदद करना बहुत पसंद है। इनकी सैकड़ों ऐसी पुरानी तसावीर हैं जिन तसावीर में यह ग़रीब, बे-सहारा लोगों की मदद करते हुए नज़र आते हैं। कहीं सैलाब आता हो तब, वबा आयी थी तब या ऐसे किसी भी गांव/शहर बस्ती में मदद करने पहुंच जाते हैं जहां ग़रीब, बे-सहारा लोगों को ज़रूरत होती है। यहां तक कि हाशिम ईद, रमज़ान, ईद-उल-अज़हा के मौक़े पर भी ग़रीब बस्ती में बसे लोगों की मुस्कुराहट की वजह बनते थे। तक़रीबन तीन साल पहले हाशिम रज़ा के कहे हुए अल्फ़ाज़ लिख रहा हूँ। उसको पढ़कर आप उनकी सोच, उनकी फ़िक्र का अंदाज़ा लगा सकते हैं। "इंसानियत की ख़िदमत इस्लाम की बुनियादी

CBI के एक जज जस्टिस लोया, सिर्फ़ एक मामले की सुनवाई कर रहे थे। वो भी देश के गृहमंत्री अमित शाह के मामले की।

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CBI के एक जज जस्टिस लोया, सिर्फ़ एक मामले की सुनवाई कर रहे थे। वो भी देश के गृहमंत्री अमित शाह के मामले की। उनसे पहले एक जज का तबादला किया जा चुका था। क्योंकि अमित शाह सुनवाई के लिए अदालत में नहीं आते थे और जज चाहता था कि सुनवाई के लिए आएं। जज ने अमित शाह के वकील को फटकार लगाई कि फ़लानी तारीख़ को पेश होना है। उससे पहले ही जज का तबादला हो गया। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दे रखा था कि इस मामले की केवल एक जज सुनवाई करेगा, बावजूद इसके जज का तबादला कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट देखता रह गया। अब नए जज जस्टिस लोया को लाया गया। कुछ दिन बाद जज लोया ने भी अमित शाह के वकील को फटकार लगाई और कहा कि अमित शाह सुनवाई के लिए आएं। अगली सुनवाई से पहले ही जज लोया की रहस्यमयी ढंग से मौत हो गई। फिर एक नया जज आया। अगले ही महीने अमित शाह बाइज़्ज़त बरी। जज लोया की रहस्यमयी मौत के इतने स्पष्ट सबूत हैं कि आराम से असली हत्यारे तक पहुँचा जा सकता है। लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार या कहूँ कि देश के बेहतरीन Investigative journalist में से एक Niranjan Takle ने इस मामले में सबूत जुटाए। उन्हें किताब में लिख