लाल सिंह चड्डा, थ्री इडियट्स, तारे जमीं पर, पीके सरीखी फ़िल्म तो नहीं कही जा सकती है

लंबे समय से बॉलीवुड में पड़े सूखे को आमिर खान निर्मित लाल सिंह चड्डा फ़िल्म के रिलीज़ से होने से राहत मिल गयी है। साथ यह भी प्रूव हो गया कि बायकॉट गैंग, नफरती गैंग इत्यादि की कोई नहीं सुनता, यदि सब्जेक्ट और उसका प्रजेंटेशन बेहतरीन तरीके से हो। 

लाल सिंह चड्डा, थ्री इडियट्स, तारे जमीं पर, पीके सरीखी फ़िल्म तो नहीं कही जा सकती है लेकिन वन टाईम वॉचेबल मूवी जरूर है। आमिर खान और मोना सिंह की एक्टिंग बहुत इम्प्रेसिव है। फ़िल्म इमोशनल भी है और मैसेज डिलीवर भी करती है। 

फ़िल्म रियल घटनाओं जैसे भारत में इमरजेंसी हटने के साथ, क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतना, ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या, सिख दंगे, मंडल कमीशन, अयोध्या रथ यात्रा, अटल बिहारी जी की सरकार, अन्ना आंदोलन और मोदी सरकार तक की झलकियां है।

हालांकि इन झलकियों से कोई निष्कर्ष नहीं निकलता है बस इतना है कि साम्प्रदायिक दंगों को एक नाम दिया गया "मलेरिया फैलना" इसलिए लाल सिंह चड्डा धर्म और धार्मिक पहचान से दूरी रखता है हालांकि अंत में आमिर का सरदार बनना भी एक ट्विस्ट है।

किसी का केवल अंधा समर्थन करने या अंधा विरोध करने से फ़िल्म को कुछ नहीं होगा यह भी तय है। फ़िल्म में कुछ कमजोर कड़ियां है, कुछ संवेदनशील लेकिन फिर भी कई विषयों पर खुलकर भी बोलती है जैसे धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद आदि। 

कुलमिलाकर फ़िल्म एक अच्छे सब्जेक्ट पर थी जो बहुत कुछ कहना चाह रही थी लेकिन विषय को पहले छुआ फिर जानबूझकर छोड़कर आगे निकल गए यह स्पष्ट दिखाई पड़ता है बावजूद इसके फ़िल्म पर कोई कुछ भी प्रतिक्रिया डें लेकिन फ़िल्म औसतन हिट है इसमें कोई संदेह नहीं है।

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