अमरीकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान की धरती पर उतर गईं हैं। पेलोसी कांग्रेस के सांसदों के दल का नेतृत्व कर रही हैं।

अमरीकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान की धरती पर उतर गईं हैं। पेलोसी कांग्रेस के सांसदों के दल का नेतृत्व कर रही हैं। चीन इसे अपनी चुनौती के रूप में देख रहा है।82 साल की उम्र में ताइवान की धरती पर उतर कर चीन को आँख दिखा देना कोई साधारण घटना नहीं है। इस बार अमरीका ने अपनी तरफ़ से कदम बढ़ा दिया है। अब बारी चीन की है। चीन वेबसाइट हैक करेगा, कुछ धमाका करेगा या इस चुनौती को स्वीकार कर अमरीका से युद्ध करेगा, अभी इन सवालों के साथ आप इस पूरे खेल को प्यादे की तरह देखिए। इस खेल में हम सब प्यादे हैं।

यूक्रेन अच्छा भला देश था। अमरीका के चक्कर में बर्बाद हो गया। प्रतिबंधों से रूस को ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा। यूरोप की ऐसी हालत हो गई है कि जर्मनी जैसा देश जिसने कोयला से बिजली उत्पादन बंद कर दिया था, रिटायर हो चुके कर्मचारियों को खोज रहा है कि वे बंद पड़ी फ़ैक्ट्री को चालू करें और कोयले से बिजली पैदा करें। इस सर्दी में यूरोप थर-थर काँपेगा। रूस का ख़ास नहीं बिगड़ा है। हालत यह हो गई कि उसी रूस से समझौता कर यूक्रेन ने मक्के की खेप निकलवानी पड़ी है ताकि दुनिया को भूखमरी से बचाया जा सके। 

क्या ताइवान दूसरा यूक्रेन बनेगा? यह सवाल अभी पेचीदा है। चीन कहाँ किसी से कम है। धीरे-धीरे क़ब्ज़ा करने की उसकी नीति का घुटन ताइवान की जनता कब तक बर्दाश्त करेगी? भारत भी घुट ही रहा है। यक़ीन करें भी तो कैसे करे। चीन ने हांगकांग की बुरी हालत कर दी है, वहाँ लोकतंत्र पनपने ही नहीं दिया। तकनीकी नियंत्रण का ऐसा जाल बिछा दिया कि लोकतंत्र के लिए होने वाला प्रदर्शन क़ाबू में आ गया। अमरीका कुछ नहीं कर पाया। हांगकांग पर चीन का ही प्रभाव है। 

नैंसी पेलोसी ने अपनी यात्रा को लोकतंत्र के समर्थन में बताया है। ताइवान के अलावा सिंगापुर, मलेशिया, दक्षिण कोरिया और जापान जाएँगी, मगर इसी इलाक़े में एक सैनिक तानाशाह म्यानमार में भी है, वहाँ नहीं जा रही है। भारत को भी इसी तरह म्यानमार को घेरना चाहिए था और अपने इलाक़े में लोकतंत्र पर ज़ोर देना चाहिए था तब लगता कि भारत एक मूल्य के पीछे अपने नेतृत्व का रास्ता बनाना चाहता है। मगर भारत ने चुप्पी साध ली। वहाँ चार लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं को फाँसी दे दी गई, प्रधानमंत्री मोदी का बयान तक नहीं आया।केवल बनारस जाकर भाषण देते हैं कि भारत लोकतंत्र की जननी है। 

आप इस खेल को चुपचाप देखिए। अंत में आप ही मारे जाएँगे। महंगाई और आर्थिक अस्थिरता का एक और मंच सज रहा है। अच्छा है आप भारतीय धर्म की राजनीति में लगे हैं। यह लोक तो सुधरने से रहा अब, परलोक ही सुधार लीजिए। तमाशा देखिए तमाशा। 

तब तक आप याद कीजिए कि दुनिया में कौन सी समस्या आई थी, जिसके समाधान के लिए दुनिया इंतज़ार कर रही थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या बोलते हैं? अमित शाह ने उदाहरण नहीं दिया, क्या आप बता सकते हैं?

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