इस ख़ूबसूरत नौजवान का नाम 'हाशिम रज़ा' है। हाशिम पाकिस्तान के पंजाब स्टेट के ज़िला सरगोधा के रहने वाले हैं।
इस ख़ूबसूरत नौजवान का नाम 'हाशिम रज़ा' है। हाशिम पाकिस्तान के पंजाब स्टेट के ज़िला सरगोधा के रहने वाले हैं। हाशिम की एक तस्वीर आजकल सोशल मीडिया पर गर्दिश कर रही है। मैं देखा तो मुझे लगा इसपर लिखना चाहिए। ख़ैर... पिछले डेढ़ सालों से हाशिम कैंसर जैसी बदतरीन बीमारी में मुब्तला हैं। तकलीफ़ की बात यह है कि चौथे स्टेज पे हैं। हाशिम निहायत ही पढ़े लिखे और क़ाबिल नौजवान हैं। यह कई सारी तंज़ीम से जुड़े हुए थे और उन तंज़ीमों से जुड़कर ग़रीब लोगों की मदद करते थे। इन्हें लोगों की मदद करना बहुत पसंद है। इनकी सैकड़ों ऐसी पुरानी तसावीर हैं जिन तसावीर में यह ग़रीब, बे-सहारा लोगों की मदद करते हुए नज़र आते हैं। कहीं सैलाब आता हो तब, वबा आयी थी तब या ऐसे किसी भी गांव/शहर बस्ती में मदद करने पहुंच जाते हैं जहां ग़रीब, बे-सहारा लोगों को ज़रूरत होती है। यहां तक कि हाशिम ईद, रमज़ान, ईद-उल-अज़हा के मौक़े पर भी ग़रीब बस्ती में बसे लोगों की मुस्कुराहट की वजह बनते थे।
तक़रीबन तीन साल पहले हाशिम रज़ा के कहे हुए अल्फ़ाज़ लिख रहा हूँ। उसको पढ़कर आप उनकी सोच, उनकी फ़िक्र का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
"इंसानियत की ख़िदमत इस्लाम की बुनियादी तअलीम है और यही वह वक़्त है जिस में हमें जज़्बे और हिम्मत व हौसले से अपने मुल्क की ज़रूरत मंद तब्क़े के लिये मुत्तहिद होकर मदद करनी है। पिछले एक हफ़्ते में तक़रीबन 100 मुस्तहिक़ ख़ानदानों की राशन तक़सीम किया जा चुका है और भी कई ख़ानदान हमारी मदद के मुंतज़िर हैं। हमें अपने मुस्तहिक़ अफ़राद को अकेले नहीं छोड़ना है। इस मुश्किल वक़्त में आप भी लोगों की मदद के लिये अपना हिस्सा डाल सकते हैं और इस फ़लाही काम में मेरा साथ दे सकते हैं"
यह हाशिम रज़ा के अल्फ़ाज़ हैं। जो उन्होंने दो साल पहले वबा के दौरान एक बस्ती में मदद करती अपनी तसावीर शेयर करते हुई कही थी।
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