तो कल फाईनली #डंकी भी देख ही ली— और अब इस पर कुछ कहने के लिये एलिजिबल हो गया हूँ 😉
तो कल फाईनली #डंकी भी देख ही ली— और अब इस पर कुछ कहने के लिये एलिजिबल हो गया हूँ 😉 फिल्म रिलीज के पहले दिन से अब तक जितने भी लोगों के इस फिल्म से सम्बंधित विचार पढ़े, लगभग सभी ने इसे ख़राब फिल्म बताया। यह बड़ी वजह थी कि जहां पहले मैं इसे विद फैमिली थियेटर पर देखने जाने वाला था, निगेटिव समीक्षाओं से डर कर टेलीग्राम पर बिना पैसे खर्चे देखी… लेकिन देखते हुए एक आश्चर्य भी हुआ कि आखिर इसमें ऐसा क्या था जो फिल्म के इन शौकीन लोगों को इतना ख़राब लगा। मुझे कोई महान और कालजयी फिल्म तो नहीं लगी, न राजकुमार हिरानी की मुन्नाभाई, थ्री ईडियट और पीके के लेवल की लगी (संजू मैंने देखी नहीं— किसी महापुरुष के संघर्ष भरे जीवन की बायोपिक छोड़ कर मुझे आम सेलिब्रिटी की बायोग्राफी में दिलचस्पी नहीं), लेकिन ऐसी भी नहीं थी कि इसे ख़राब बताया जाये। मैं इमोशनल आदमी हूँ, फिल्म देखते वक़्त अक्सर भावुक दृश्यों पर आँखें बह जाती हैं (लड़के/मर्द रोते नहीं वाले दर्शन पर मेरा रत्ती भर यक़ीन नहीं), तो जब कोई फिल्म मेरी आँखें नम कर दे, उसका मतलब यही होता है कि उसने कहीं मेरे मन को छुआ है। इस फिल्म में तीन जगह मेरी आँखें भीग...