बाबा साहब के महापरिनिर्वाण दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश में बच्चो को बाबा

बाबा साहब के महापरिनिर्वाण दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश में बच्चो को बाबा साहब के बारे में बताया गया था. एक जगह स्कुल मे एक टीचर को भाषण मेने लिखकर दिया था जिसमे संक्षिप्त में लिखा की;

बाबा साहब का जन्म एक धनी परिवार में हुआ था. उनके पिता व नाना सेना में सूबेदार के पद पर थे, सूबेदार का पद वर्तमान के मेजर/कर्नल या इससे भी बड़ा पद था और अंग्रेजो की सेना में भारतीय लोगो के लिए निर्धारित उच्चतम पद था. बाबा साहब जिस परिवार में पैदा हुए वो परिवार हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था जिसमे ब्राह्मण, छत्रिय, वैश्य, शुद्र (वर्तमान के ओबीसी) से बाहर अवर्ण (outcast) था, अथार्त हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था से बाहर था लेकिन जबरदस्ती इस वर्ग को गाँव से बाहर गंदे पोखरों के पास रहने के लिए मजबूर किया गया था और उनके मानव अधिकार छीन लिए गये. 

लार्ड मैकाले के निश्चयनंन्दन (छन्न छन्न कर शिक्षा) पद्धति शुरू होने के बाद शिक्षा को गुरुकुल व मदरसों के अलावा विधालय में देना शुरू किया गया। जिसमे पहले उच्च वर्गो को शिक्षा की बात कही गयी थी लेकिन आगे अंग्रजो ने सभी के लिए विधालय खोल दिए, इसलिए बाबा साहब के पिता व नाना शिक्षा लेकर सूबेदार के पद तक पहुच गये. 

बाबा साहब के पास धन की कमी नही थी, नौकर तक घर में थे लेकिन उसके बाद भी बचपन से ही उन्हें अपमान सहना पड़ा, इन्हा तक की जब वो विधालय जाते थे तब उन्हें बाहर बिठा दिया जाता था, बच्चो के लिए पानी का घडा था लेकिन उन्हें प्यास लगने पर चपरासी उन्हें उपर से गिराकर पानी देते थे जिसमे से उनके नन्हे हाथो में थोडा पानी आ पाता था और अधिकतर गिर जाता था, कई बार उन्हें प्यासा ही रह जाना पड़ता था. 

उन्होंने हर पग पग पर अपमान झेला. बडौदा के नरेश सेयाजी गायकवाड ने मेधावी छात्रों के लिए विदेश में पढने के लिए स्कोलरशिप की घोषणा करी,जिसमे मेघावी होने के कारण बाबा साहब को यह अवसर मिला, लेकिन शर्त यह थी की पढकर वापस आकर राज्य की सेवा करनी पड़ेगी. बाबा साहब एशिया के पहले ऐसे व्यक्ति थे जो कोलम्बिया विश्वविधालय में शिक्षा लेने गये और वापस आकर शर्त का पालन करते हुए राजा के राज्य कार्य में सहायता करने लगे. लेकिन अछूत वर्ग से होने का अपमान भी उनके उच्च विदेशी शिक्षा पर भारी पड़ गया. उन्हें पुरे बडौदा में कंही भी रहने का मकान नही मिला. थक हारकर एक पारसी होस्टल में उन्होंने अपने आप को उच्च वर्ग का बताकर कमरा ले लिया, जब वो कार्यालय जाते थे तब उनका चपरासी भी उन्हें फैंककर फाईल देता था जिससे बाबा साहब को वो छू न सके, बाबा साहब के पीने का मटका और गिलास वगैरह अलग रखे गये जिन्हें केवल हाथ बाबा साहब लगा सकते थे. इतने अपमान को बाबा साहब को सहना पड़ रहा था लेकिन हद तब हो गयी जब किसी ने पारसी होस्टल में उनकी जाति के बारे में बता दिया, जिसके बाद पारसी लोगो ने उनका सामान बाहर उठाकर फैंक दिया,और बाबा साहब का बहुत अपमान किया. यह अपमान इस स्तर का था की बाबा साहब काफी दुखी हो गये और वन्ही से सियाजी गायकवाड के सामने समस्या बतांने गये जो मैसूर किसी कार्यक्रम में भाग लेने जा रहे थे इसलिए उन्होंने बाबा साहब को किसी और दिन आने को कहा, लेकिन बाबा साहब काफी ज्यादा दुखी थे, उनके मानव अधिकार उच्च शिक्षा के बाद भी सुरक्षित नही थे, उन्हें नौकरी में मिनिमम वो सुविधा तक नही दी जा रही थी जो कर्मचारी को देनी चाहिए. बाबा साहब उस दिन इतने दुखी थे की तभी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और परेशान होकर बडौदा स्टेशन आ गये, जन्हा ट्रेन आने में समय था, इसलिए तनाव में पैदल ही चलने लगे और चलते चलते एक पार्क में पहुच गये, उनके दिमाग में आत्महत्या तक के विचार आ रहे थे और इसी दौरान एक पेड के नीचे बैठ गये और एकाएक उनके मष्तिष्क को यह सोचकर झटका लगा की एक धनी सम्पन्न परिवार में पैदा होने और उच्च शिक्षा विदेश से प्राप्त करने के बाद भी जब उन्हें छुआछुत का अपमान सहना पड़ रहा है तब उनके समाज के साथ कितना गलत हो रहा है, उन्हें तो एहसास ही नही है की उनका अपमान हो रहा है, उनके मानव अधिकार नही है, और उन्हें पता भी नही है, जिसे वो अपनी किस्मत समझते है. मेरा समाज एक पशु के समान जीवन जी रहा है. 

इसके बाद एकाएक बाबा साहब ने वन्ही प्रण लिया की आगे की वो अपनी पूरी जिन्दगी अपने समाज को इस "पशु समान" जिन्दगी से बाहर लाकर उन्हें मानव अधिकार दिलवाने में लगा देंगे और और सफल नही हुए तो स्वय अपने आप को खत्म कर लेंगे. 

उसके बाद बाबा साहब ने पूरा जीवन संघर्ष को दे दिया. उनका हर दिन, हर पल अपने समाज के लिए संघर्ष के लिया बिता. उनका संघर्ष अपना प्रभाव दिखाने लगा, उनका अछूत समाज अपने मानव अधिकार को पहचानने लगा और उनके संघर्ष में अपना सहयोग करने लगा जिसके बाद उनकी प्रसिधी बढती गयी. 

बाबा साहब के पास कई डिग्री थी और कई भाषाओ का उन्हें ज्ञान था. कई विषयों में उनके शोध पत्र थे जिनमे से एक शोध पत्र "Problem of rupee" के आधार पर 1935 में रिजर्व बैंक ऑफ़ इण्डिया की स्थापना की गयी. बच्चो यह नाम आपने सुना ही होगा, नोट पर लिखा देखा ही होगा. नोट छापना इसी बैंक का कार्य है। यह बैंको के लिए नीतिया बनाता है। 

वायसराय के मन्त्रिमण्डल में लेबर मिनिस्टर रहते हुए बाबा साहब ने कर्मचारियो व मजदूरों के लिए कई कार्य किये जैसे पहले 16 घंटे तक कर्मचारी मजदूर को कार्य करना पड़ जाता था, जिसे बाबा साहब ने 8 घंटे कर दिया. मजदूर संघो को मान्यताये दी. महिलाओ के लिए मेटरनिटी अवकाश बाबा साहब ने शुरू करवाया. महिलाओ के लिए इतना जायदा कार्य बाबा साहब ने किये की महिलाये जो अधिकार जैसे सम्पत्ति में हिस्सा व अन्य वो सुविधाए अब ले पा रही है वो बाबा साहब ने हिन्दू महिला कोड बिल के रूप में 70 साल पहले पेश करके शुरुआत की थी जिसके पारित नही होने पर इस्तीफा दे दिया लेकिन बाद की सरकारों को इन्हें स्वीकार करना पड़ा. 

बाबा साहब को ड्राफ्टिंग कमेटी का चेयरमेन संविधान सभा ने बनाया. ड्राफ्टिंग कमेटी के कंधे पर ही संविधान निर्माण का कार्य था क्युकी विभिन्न समितिया अपनी सलाह ड्राफ्टिंग कमेटी को देती थी जिस पर ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमेन के तौर पर बाबा साहब ड्राफ्ट बनाकर संविधान सभा में रखते थे और बहस करवाते थे, चर्चा करवाते थे, और बाद में वोटिंग के माध्यम से उसे स्वीकार या अस्वीकार करवाते थे. ड्राफ्टिंग कमेटी में 7 सदस्य थे जिसमे से कुछ विदेश चले गये, कुछ बीमार हो गये, कुछ अपने व्यक्तिगत कार्यो के कारण हिस्सा नही ले सके और अंत में अकेले बाबा साहब के कंधे पर यह जिम्मा आ गया, जिसे उन्होंने बखूबी अकेले ही निभाया और इसलिए ही उन्हें "संविधान निर्माता" कहा जाता है क्युकी अकेले ही इतने बड़े कार्य को सम्भालकर उन्होंने विश्व का सबसे विशाल संविधान दिया. 

बाबा साहब के कार्यो को अगर में बताना शुरू करू जैसे दामोदर नदी घटी परियोजना जो की भारत की सबसे बड़ी परियोजना है वो बाबा साहब की देन है, ऐसी उपलब्धिया बताने में मुझे कई घंटे बोलना पड़ेगा, उनके पास लाइब्रेरी का विशाल भंडार था. उन्होंने संविधान में आर्टिकल 14, 15, 16, 17 के माध्यम से अपने समाज जो पशु समान जिन्दगी जी रहा था उसे एकाएक मुख्यधारा में लाकर समान मानव अधिकार दिलवा दिए. आर्टिकल 17 में बकायदा छुआछूत को निषेध किया गया है. 

इसलिए बाबा साहब को भारत ही नही बल्कि दुनिया की महान हस्ती कहा जाता है. बाबा साहब ने ऐसा युद्ध लड़ा जिसके कारण देश का 17% जो वर्तमान में 25 करोड़ जनसंख्या रखता है उसे मानव अधिकार मिल सके. आजादी की लड़ाई दो तरीके से लड़ी गयी, पहली लड़ाई में केवल अंग्रेजो से सत्ता का हस्तान्तरण करवाना मात्र था क्युकी भारतीयों के पास चुनाव के द्वारा से राज्यों में सरकार बनाने की शक्ति आ गयी थी. बस उच्च निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र नही थे. अथार्त आर्थिक, सामाजिक, राजनीतक रूप से स्वतंत्रता थी लेकिन प्रशासनिक स्वतंत्रता अंग्रजो के अधीन थी. लेकिन बाबा साहब ने ऐसे समाज की आजादी की आजादी की लड़ाई लड़ी जो आर्थिक, सामाजिक राजनैतिक, में भी गुलाम था. बाबा साहब ने इस लड़ाई को;

"तलवार से नही बल्कि शिक्षा के माध्यम से लड़ी"

इसलिए बच्चो बाबा साहब के संघर्ष से आपको यह सिखने को मिलता है की "शिक्षा वो हथियार" है जिसके माध्यम से आप कुछ भी प्राप्त कर सकते है जिसकी आपको और आपके समाज को जरूरत है. इसलिए शिक्षा को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाए। यह शिक्षा रूपि हथियार आपका ही नही बल्कि आपके परिवार व समाज का उज्ज्वल भविष्य ला देगा। 

********************************

यह मेरा लिखा हुआ आज एक स्कुल में बोला गया, बच्चो ने इतना ध्यान से सुना की बाद में जब इससे सम्बन्धित उनसे प्रश्न पूछे गये तब सभी ने हर प्रश्न का जवाब दिया. कई टीचर जिसमे ब्राह्मण भी थे उन्होंने इसकी कॉपी अपने पास रखी यह कहकर की भविष्य में बाबा साहब का विषय आने पर यह उनकी सहायता करे.गा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वक़्फ क्या है?"" "" "" "" **वक़्फ अरबी

जब राम मंदिर का उदघाटन हुआ था— तब जो माहौल बना था, सोशल मीडिया

मुहम्मद शहाबुद्दीन:- ऊरूज का सफ़र part 1 #shahabuddin #bihar #sivan