रजा बिन हैवा ( رجاء بن حيوى ) जो गुंबद ए सखरा के आर्कटिक थे

रजा बिन हैवा ( رجاء بن حيوى ) जो गुंबद ए सखरा के आर्कटिक थे 
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रजा बिन हैवा कौन थे ? वह हाफ़िज़ भी थे आलिम भी, मोहद्दिस भी थे फक़ीह भी , इंजीनियर भी थे आर्कटिक भी, एक खलीफा के समय मंत्री का पद संभाला और तीन खलीफा के मुशीर अर्थात political adviser रहे सब से बढ़ कर उनकी गिनती बड़े ताबेईन में होती है उन्होंने हज़रत मोआज़ बिन जबल और हज़रत ओबादा बिन सामित जैसे सहाबा से शिक्षा प्राप्त की और इमाम ज़ोहरी जैसे बड़े इमाम इनके शागिर्द थे 

इनका पूरा नाम रजा बिन हैवा कंदी था फलस्तीन के शहर बैसान में सन् 660 में एक ईसाई परिवार में इनका जन्म हुआ 15 साल के हुए तो इनके पिता ने इस्लाम कबूल कर लिया उनके साथ ही रजा बिन हैवा भी मुसलमान हो गए 
15 साल की उमर के बाद उन्होंने इस्लामी शिक्षा हासिल करना शुरू की परंतु अपनी लगन व काबिलियत के कारण वह मुकाम हासिल कर लिया कि उनकी गिनती इस्लामी इतिहास के चोटी के उल्मा मोहद्दिसीन और फुक़हा में होती है 

इनके बहुत से ऐसे काम है जिन के कारण इतिहास ने इन्हें याद रखा यहां मै उनके दो बड़े कामों को बयान करता हूं 

1-यह खलीफा सुलेमान बिन अब्दुल मलिक के समय खलीफा के पोलिटिकल एड्वाइजर व सेक्रेटरी थे खलीफा बीमार पड़े बचने की कोई उम्मीद नहीं रही बच्चे छोटे थे अपने बाद उन्हें खलीफा बनाने की घोषणा नहीं कर सकते थे इसलिए अपने दो भाइयों में से किसी एक को खलीफा बनाना चाहते थे पर फैसला नहीं कर पा रहे थे कि दोनों में से किसे बनाएं उन्होंने रजा बिन हैवा से उनकी राय जाननी चाही यह बड़ा मुश्किल समय होता है किसी एक के बारे में राय देने का मतलब दूसरे से दुश्मनी मोल लेना 
रजा बिन हैवा ने काफी सोच विचार के बाद जनता के हक में फैसला लिया और दोनों भाइयों की दुश्मनी मोल ले ली उन्होंने खलीफा से कहा कि आप दोनों भाइयों को छोड़कर अपने चचाज़ाद भाई उमर बिन अब्दुल अजीज को खलीफा बनाइए खलीफा भड़क गए कहा ऐसा नहीं हो सकता नियम के खिलाफ है उन्होंने कहा कि भले यह काम मुश्किल है लेकिन आप उन्हें खलीफा जरूर बनाइए उमर बिन अब्दुल अजीज बहुत अच्छे आदमी हैं मदीना के गवर्नर रहते हुए बहुत अच्छे काम किए जनता उनसे खुश होगी आप को दुआएं देगी खलीफा ने कहा कि ठीक है सोचता हूं 

इधर यह बात हज़रत उमर बिन अब्दुल अजीज को पता चली उन्होंने रजा को बुला कर कहा कि ख़िलाफत संभालना मेरे बस की बात नहीं आप इस तरह की बातें आगे न बढ़ाएं इन्होंने कहा कि मेरे हिसाब से आप का खलीफा बनना जनता के लिए बहुत अच्छा साबित होगा मैं अपने मशविरा में मुखलिस हूं 
बहरहाल तमाम विरोध के बाद भी यह लगे रहे और खलीफा से हज़रत उमर बिन अब्दुल अजीज के हक में फैसला कराने में सफल हो गए 

बाद में साबित हो गया कि हज़रत उमर बिन अब्दुल अजीज को खलीफा बनाने की राय बहुत अच्छी थी मुसलमानों को उनके पांचवें खलीफा ए राशिद मिले खुद हज़रत उमर बिन अब्दुल अजीज को महान् बनाने वाले बहुत सारे फैसलों में रजा बिन हैवा की राय शामिल रहती थी 
मौलाना अली मियां नदवी रहमतुल्लाह अलैहे अपनी किताब " तारीख दावत व अज़ीमत " में लिखते हैं कि रजा बिन हैवा का यह काम इतना बड़ा है कि अगर उन्होंने अपनी जिंदगी में सिर्फ यही एक काम किया होता तब भी वह महान लोगों में गिने जाते " 

2- नीचे आप कुछ तस्वीरें देख रहे हैं यह जिस इमारत की तस्वीर है इसे चट्टान का गुंबद कहा जाता है अरबी में इसे قبة الصخرة और अंग्रेजी में Dome_of_the_Rock कहते हैं यह मुसलमानों की तीसरी सबसे पवित्र मस्जिद अल अक्सा के बगल में है असल में यहां पर एक चट्टान थी इसी चट्टान से अल्लाह के रसूल सलललाहो अलैहे वसल्लम अपने मेराज के सफर पर रवाना हुए थे खलीफा अब्दुल मलिक बिन मरवान ने चाहा कि इस चट्टान को घेर दें ताकि चट्टान सुरक्षित रहे और बाढ़ वगैरह में बह न जाए इसकी जिम्मेदारी उसने अपने युवा मंत्री रजा बिन हैवा और अपने दास यज़ीद बिन सलाम को सौपी और कहा कि आप लोग पैसों की परवाह न करें और कोई यादगार चीज़ बनाएं 

दोनों ने जगह देखी नक्शा तैयार किया और काम शुरू कर दिया सन् 685 में काम शुरू हुआ और 691 में जाकर 6 साल में पूरा हुआ 
 सुनहरे गुंबद वाली इस बिल्डिंग की गिनती आज तैरह सौ साल बाद भी दुनिया की खूबसूरत बिल्डिंगों में होती है इन तस्वीरों को देखिए बाहर से यह जितनी खूबसूरत है अंदर उस से भी अधिक सुंदर इसमें काम हुआ है इसे देखकर आप को इसके बनाने वाले रजा बिन हैवा और यज़ीद बिन सलाम की काबिलियत का अंदाजा हो जाएगा
अल्लाह की रहमत हो रजा बिन हैवा पर

Khursheeid Ahmad भाई

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