ऐसी किसी हरकत पर मैं टिप्पणी करने से भयभीत रहता हूँ - कल से कुछ

ऐसी किसी हरकत पर मैं टिप्पणी करने से भयभीत रहता हूँ - कल से कुछ लोगों को भगत सिंह नज़र आ गया तो ट्विटर पर लड्की के चरित्र हनन से लेकर उसके इस उम्र तक बेरोजगार रहने और एक बैटरी रिक्शा वाले के क्रांतिकारी बनने पर कटाक्ष चल रहे हैं -- एक तरफ घर बैठ कर क्रांति करने वालों की उम्मीदें हैं तो दूसरी तरफ नफरत की कीचड़ में आँख और बुद्धि गंवा चुके मनहूसों की मूर्खता पर गर्व करने की फितरत । 

एक तो जिस तरह सुरक्षा घेरा तोड़ कर वह भी राष्ट्रवादी सांसद के दस्तखत से लोग भीतर गए , वह भी धुआँ बम ले कर , फिर सुरक्षा उपायों से भरी गेलेरी से नीचे कूद गए ---- सब कुछ लिखी हुई स्क्रिप्ट लगता है । यह सियासत का दौर वह है जहां चिदम्बरम पर जूता फैक कर कोई विधायक बन जाता है । कोई अपनी लोकप्रियता के लिए सड़क पर पिटता है -- अलग अलग राज्यों के हैं लोग - सोशल मीडिया से जुड़े ----- खैर जो भी हो --
अब बात कर लें फेसबुक क्रांतिकारियों की , याद करें शाहीन बाग आंदोलन में जेबी एक लाख की भीड़ होती थी तो कई लोग चिरोरी-सिफ़ारिश करते थे कि उनका भाषण करवा दो - नेता ही नहीं, प्रोफेसर, लेखक भी । लेकिन जब वहाँ क्रेक डाउन हुआ , गिरफ्तारियाँ हुईं तो भाषणबाज आज तक गायब ही हैं , सैकड़ों लोगों को जमानतदार चाहिए थे, कई के सामने घर किराया भरने का संकट था - लेकिन पट्ठे जेब में हाथ डालना या घर से निकालना तो दूर , फेसबुक पर भी नहीं कुदके । 

यह सच है कि देश के सामने जो बेरोजगारी और महंगाई के सवाल हैं वह हर दिन की लफ़्फ़ाज़ी और तमाशेबाजी के सामने गौण है । यह कहना मूर्खता है कि कोई एम ए , एम एड , एम फिल महिला 41 की हो गई और उसे नौकरी नहीं मिली तो वह निकम्मी है ।नीलम देव भाषा कहलाने वाली संस्कृत में एम ए है । 

नीलम आज़ाद के नाम से फेसबुक पर सक्रिय महिला किसान आंदोलन से ले कर दलित विमर्श आदि में शामिल रही है । जान लें , भगत सिंह ने अपने आज़ादी के लिए फांसी नहीं स्वीकार की थी - इसी तरह कोई नीलम या कोई रिक्शे वाला देश के बड़े सवालों के लिए चिंतित हो सकते हैं । 

बहरहाल , सभी लोगों को यू ए पी ए के बार्बर कानून में फंसा दिया गया है ,। भीमकोरे गाँव केस में जब इस कानून का दुरुपयोग हुआ तो नागरिक समाज ने कोई स्थायी प्रतिरोध किया नहीं । फिर दिल्ली दंगों में उमर खालिद, खालिद सैफी, देवांगना आदि पर यह थोपा गया और इनमें से अधिकांश बगैर किसी सुनवाई के तीन साल से जेल में है-- लेकिन कोई बड़ा प्रतिरोध दिखा नहीं ---- किसी ने परवाह की नहीं कि उनके परिवार कैसे जीवन काट रहे होंगे ।
सभी की बारी आएगी -- आप घर बैठ कर पड़ोसी के घर भगत सिंह और अपने घर गौतम अदानी के पैदा होने की कामना करें ---

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