तमाम मित्र कहते रहते हैं कि ऐसे वीडियो बनाइये, वैसे लिखिए तो सोशल मीडिया
तमाम मित्र कहते रहते हैं कि ऐसे वीडियो बनाइये, वैसे लिखिए तो सोशल मीडिया से पैसे मिलने लगेंगे। मैं उनसे कहता हूँ कि पैसे बनाने की मेरी इच्छा ही नहीं है। जहां से पैसे आने पर रोजी रोटी चलती है, वह काम अपनी औकात और बुद्धि व ताकत के मुताबिक ईमानदारी से करने की कोशिश करता हूँ। कोशिश इसलिए कि जहां आप पैसे पाते हैं, वहां आपके मलिकार होते हैं, सीनियर होते हैं, उनको आपका काम पसन्द नहीं आता।
तो अगर मैं सोशल मीडिया या कहीं और पैसे के लिए काम करने लगूंगा तो खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाऊंगा। बार बार मुझे पैसे देने वाली ऑडिएंस अपने मुताबिक हांकने की कोशिश करेगीऔर उसका दबाव रहेगा। ऐसे मित्रों को कहता हूँ कि भाई जहां इंसान रोजी रोटी के लिए काम कर रहा है, वहां तो खुद को मारकर काम करता ही है तो क्या यहां सोशल मीडिया पर भी मर जाएं? फिर जिएंगे कब?
मनुष्य के मूल स्वभाव में जिस तरह से इनबिल्ट प्रेम होता है, वैसे ही जलनखोरी भी भयानक रूप से स्वभाव का हिस्सा है। इस पर तमाम कहानियां भी सुनाई जाती हैं कि लोगों को अपने बच्चे के पास हो जाने की खुशी कम होती है,पड़ोसी का बच्चा फेल हो जाए तो ज्यादा खुशी होती है। अगर सोशल मीडिया पर लोग जान जाएं कि इस बन्दे को पढ़ लिए या लाइक कर लिए तो इसको पैसे मिल जाएंगे तो बन्दा कतई लाइक नहीं करेगा। मैंने तमाम लोगों को लाइक गिनते और कहते ऐसा सुना है। ऐसे बड़े बड़े लोगों के मुंह से सुना है जिनके बारे में सोचता हूँ कि यह तो बड़े महान हैं या जंता इन्हें बड़ा महान समझती है। और वह ऐसा फील कराते हैं जैसे वो नाग वही हैं जिसके फन पर धरती टिकी है! तो आम इंसान के क्या कहने, जो बेचारा पेट के भूगोल में उलझा या उलझा दिया गया है और अभी उस दौर से गुजर रहा है कि एक 2 कमरे का मकान, एक 8 लाख की कार हो जाती तो जीवन धन्य हो जाता!
आबा काबा का लाभ भी मिल जाता है कभी कभी। जैसे कोई आईआईटी, आईआईएम वाला हो, आईएएस, आईपीएस हो या कोई बड़का मैनेजर हो और कोई किताब लिखता है, सार्वजनिक मंच पर आता है तो उसको थोड़ी किक मिल जाती है। लेकिन यह सब लंबी सफलता नहीं दिलाता।
सोशल मीडिया पर मैं आया तो शायद कभी कोई पद, कोई ऐसी बात नहीं डाली, जिससे कोई आकर्षित हो। इसका मकसद एनॉनिमस रहना ही है कि यहां जो जुड़े बौद्धिक स्तर पर। बल्कि लोगों को बताता रहता हूँ कि मैं किसी काम का आदमी नहीं हूँ। और यह हृदय से कहता हूँ कि मै किसी की क्या मदद कर सकता हूँ? इतनी बड़ी धरती पर मेरी औकात है क्या कुछ कि किसी की मदद करूँ? कुछ हो गया तो हो गया! कई बार तो कुछ जुबान से निकल जाती है कि आप ऐसा करें, काम हो जाएगा और वह हो जाता है। तो? उसमें मेरा क्या योगदान है? मेरी क्या औकात है?
और सोशल मीडिया से बौद्धिक स्तर पर जुड़ने के बाद जो लोग मुझसे जुड़े, वह बॉन्डिंग सबसे तगड़ी है। लगता है कि वही सबसे नजदीकी और प्यारे मित्र हैं। लगना क्या, हैं भी।
मैंने उसको को यही बात बताई कि किसी का लिखा हुआ, किस्सा कहानी, लेख कभी परिचितों के दम पर नहीं चलता। दोस्त कमीने होते हैं और जलनखोर भी। या मान लो कि सब अच्छे ही हैं तो कितने दोस्त होंगे हम जैसे लोगों के? हजार, दो हजार? इतने लोगों के पढ़ लेने से क्या हो जाएगा? अभी न्यू मीडिया तो समंदर है, किसी को कहीं पहुंचा देता है, पब्लिक को पसन्द आना चाहिए। उसने कहानी की सीरीज लिखनी शुरू की। कुछ टेक्निकल इशू आ रहा था तो मुझसे पूछा। लेकिन कुछ बताया नहीं कि कहां लिख रही है। आज उसने बताया कि उसकी कहानी इंडिया में तीसरे स्थान पर ट्रेंड कर रही है! पिछले 10 दिन से टॉप 10 में है। पहली ही कहानी 3 लाख व्यू हो गई। जबकि उसे मैंने भी नहीं पढ़ी है, लेकिन लिंक मिल गया तो 4 मित्रों से साझा कर दिया! मेरी आदत खराब है कि कुछ पचता नहीं है मुझे। सब कुछ खुला खुला सा है। उसने कहा था कि किसी से बताइएगा नहीं। वह खुद भी अपने नाम से नहीं, एनॉनिमस लिख रही है! फिर भी मैंने वादा ब्रेक कर दिया। मतलब असल हिट वही होता है, जिसे बगैर आबा काबा के पब्लिक खुद पसन्द करने लगे, और इस ऑडिएंस की कोई लिमिट नहीं होती।
खैर...
जिंदगी में तमाम चीजें प्रभु की लीला ही लगती हैं। मैं इंटर में था तो उसी समय मण्डल कमीशन लागू हुआ। पूरी पढ़ाई लिखाई झंड चल रही थी। एक सीनियर ने कहा कि तुम्हारी मैथमेटिक्स इतनी अच्छी है, तुम हिंदी इंग्लिश भूगोल लेकर ग्रेजुएशन करो, 5 साल में आईएएस बन जाओगे। मैंने कहा कि हिंदी इंग्लिश तो ठीक, भूगोल में फेल होऊंगा। उन्होंने कहा कि तुम ज्योग्राफी में शानदार करोगे। मै न माना। वो भूगोल के लेक्चरर हुए थे,उन्होंने कहा कि पर्चा भेजकर 70% उपर दिला दूंगा, अब बताओ? मैंने एडमिशन करा लिया। लेकिन उस साल पढ़ाई ही छोड़ दी और नेक्स्ट ईयर बीएससी में एडमिशन करा लिया। फिर वह भी करने को मन नहीं किया। और आज जो हूँ, वह तो करने की कभी इच्छा ही न थी! अभी हाल में उदय प्रकाश जी ने बताया कि वे एंथ्रोपोलॉजी में एडमिशन कराने गए थे। एक सुंदर लड़की दिखी और पता चला कि वह हिंदी में एडमिशन करा रही थी तो उन्होंने भी हिंदी में एडमिशन करा लिया। और साहित्यकार बन गए! ऐसे ही जिंदगी के तमाम टर्निंग प्वाइंट आते हैं जब आदमी इधर से उधर हो जाता है।
तो ये पद प्रतिष्ठा, पोस्ट्स पाना किसी तर्क से समझ मे नहीं आता। गोरखपुर यूनिवर्सिटी के एक फर्जी विभाग ने एडमिशन टेस्ट में मुझे फेल कर दिया और उसी साल बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी ने टेस्ट में टॉप 5 में रखकर एडमिशन दे दिया! एक मित्र को बीएचयू ने फेल कर दिया तो उसी साल जेएनयू ने एडमिशन दे दिया। एक मित्र फ्रस्ट्रेट हुए पड़े थे और उन्हें शिमला, श्रीनगर से लेकर किसी झण्डेलाल यूनिवर्सिटी पीएचडी में दाखिला नहीं दे रही थी। मैंने उनसे कहा कि जेएनयू में ट्राई करें। उन्होंने 4 बार हे हें हें हें की ध्वनि निकाली और कहा कि मजाक कर रहे हैं आप, वहां टेस्ट प्रोसेस बहुत हार्ड है। मैंने कहा कि अप्लाई करना पड़ेगा तभी होगा। वह एकमात्र जेएनयू में ही सलेक्ट हो पाए पीएचडी की।
यह मानकर चलें कि जीवन एक ऐसा रहस्य है जिसे समझने की कोशिश की जा सकती है लेकिन समझ में नहीं आती। हम निमित्त मात्र हैं। बेहतर कर्म कर सकते हैं, फल क्या होगा, यह नहीं पता होता। कर्म हमेशा बेहतर होना चाहिए क्योंकि मैक्सिमम केस में अच्छे कर्म के ही बेहतर परिणाम आते हैं। और कुछ पूर्व जन्मों के भी संस्कार होते हैं जो नए शरीर मे ट्रांसफर होते हैं।
आज मैंने मशरूम औऱ स्वीट कॉर्न सूप ट्राई किया। कर्म के मुताबिक बेहतर परिणाम आया। जाड़े में सब्जियां सस्ती होती हैं। सूप का यही मौसम है।
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