खाना_और_मुसलमानम ैंने लोगों को दस रुपए की

#खाना_और_मुसलमान

मैंने लोगों को दस रुपए की आइसक्रीम की डिब्बी को चाटते हुए देखा है, मैंने लोगों को पानी पुरी खाने के बाद प्लेट में बचे हुए पानी को पीते देखा है, मैंने लोगों को दस रुपए की पानी की बोतल को तब तक लेकर घूमते हुए देखा है जब तक उसमें एक घूंट भी पानी बाकी रहता है बस ये सभी सामान उसने अपने पैसों से खरीदा हो।

मैंने लोगों को ढाई सौ ग्राम गोश्त में पूरे घर को खाते देखा है और अगर उस गोश्त में हड्डी हुई तो उस हड्डी को तब तक चूसते हैं जब तक उसमें गोश्त का एक रेशा भी बाकी हो।

जबकि मैंने शादी ब्याह में लोगों को बिसलेरी से हाथ धोते देखा है... एक बोतल में एक घूंट पानी पीने के बाद बोतल को फेंकते देखा है। प्याली में आई बोटियां पसंद न आने पर टेबल के नीचे बोटियां फेंकते देखा है।

असल में इसका कारण ये है कि हमने इस्लाम को अपनाया ही नहीं, इस्लाम ने हमको अपनाया है। हम खुद को मुसलमान सिर्फ इसलिए मानते हैं... खुद को इस्लाम में इसलिए मानते हैं ताकि हम जन्नत में जा सकें बाकी इस्लाम का हमारा छत्तीस का आंकड़ा है। 

इस्लाम कहता है कि दस्तरख्वान बिछा कर खाओ ताकि अगर उसमें खाना गिर जाए तो उसे उठा कर खाया जा सके। खाने के बाद प्लेट इतना साफ कर लो कि ऐसा लगे जैसे कि प्लेट धुली गई हो। मगर हम शादी बारात में जाकर असभ्य हो जाते हैं।

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