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कल हमारे मुख्य-सेवक जी समुद्र में डूबी द्वारका जी के दर्शन करने गये। बाहर निकले

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कल हमारे मुख्य-सेवक जी समुद्र में डूबी द्वारका जी के दर्शन करने गये। बाहर निकले तो बड़े प्रसन्न थे। बताये कि जब समुद्र में थे तो उनके कान में कृष्ण जी की मुरली गूँज रही थी, बहुत दिव्य अनुभव था, वगैरह-वगैरह।  अब आपने अगर वो विडियो देखा हो तो क्या अपने मन में सोचा कि जब द्वारका जी की इतनी भव्य तस्वीरें इन्टरनेट पर घूमती रहती हैं, जिन तस्वीरों में – द्वार पर रखी शेर की मूर्ति, भव्य सीढियां एवं भवन अवशेष, बड़े-बड़े खम्बे – दिखाए जाते हैं तो हमारे मुखिया जी प्राचीनकाल में जहाजों द्वारा समुद्र के किनारे लंगर डालने के लिए प्रयोग किये जाने वाले “एंकर” पर बैठ कर पूजा कर के क्यों आ गये? द्वारका की कोई खिड़की, दरवाजे, चबूतरे या खम्बे आदि का फोटो तो डाले ही नहीं?  . अब आप इस पोस्ट को आगे तभी पढ़ें, जब यह जानना चाहें कि मिथ्या प्रचार से कैसे एक पूरी पीढ़ी को मूर्ख बनाया जाता है। और अगर सत्य की खोज से आपकी भावना आहत हो जाती हो, तो क्षमा चाहूँगा, यह पोस्ट आपके लिए नहीं है। . तो हुआ यूँ कि पिछली शताब्दी में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा सिन्धु घाटी सभ्यता के विभिन्न केन्द्रों की सफल खोज के बाद ब्रिटिश पुरातात्विक ल

ये जो दलाएल पैदा हुई है, क़ुरआन और हदीस में जो लिखा होगा वही मानेंगे, सबसे पहले तो इस दलाएल की दलील क़ुरआन और हदीस से साबित

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ये जो दलाएल पैदा हुई है, क़ुरआन और हदीस में जो लिखा होगा वही मानेंगे, सबसे पहले तो इस दलाएल की दलील क़ुरआन और हदीस से साबित नहीं है। दूसरी बात ये की, क़ुरआन तर्जुमे से पढ़कर असल तफ़्सीर को छोड़ मनघडंत तफ़्सीर बना लेते हैं, और ज़ईफ़ हदीस को ऐसे ट्रीट करते हैं, मानो झूठ लिख दिया हो। न ही रावी को अहमियत देते हैं न सहबियों को और न ही हदीस लिखने वाले दीगर ओलेमानों को। ज़ईफ़ हदीस रावी की उसूल से कमज़ोर मानी जाती है, मसलन कम सहबियों ने उस हदीस को बयान किया है, किसी और दीगर सहाबी ने उसी कांटेस्ट में उससे अलग हदीस बताई हो और दूसरे सहाबी ने उसकी तसतीक़ की हो, या वो हदीस क़ुरआन से अलग बात कहती हो। लेकिन किसी भी फ़िक़ के कोई भी आलीम हत्ता की वहाबी भी ज़ईफ़ हदीस को तब तक क़ाबिल ए एहतराम और उन कामों को करना अफ़ज़ल मानते हैं, जो उन ज़ईफ़ हदीस में लिखी हुई है, जब तक उसके अगेंस्ट में कोई सही हदीस नहीं मिल जाती है। लेकिन यहां तो मसला ही अलग है, महज़ खुद को सही साबित करने के लिए, हर तरह का एहतराम लोग जैसे भूल जाते हैं, सहबियों और इमाम तिर्मिज़ी जैसे दीगर ओलेमानों को झूठा साबित करने की होड़ लगा बैठते हैं, की उन्होंने अपनी हदीस की

मुझे शाहरुख इसलिए नही पसंद कि वो एक एक्टर हैं हालांकि हमारे समय के हीरो हैं । मुझे वो इसलिए हमेशा

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मुझे शाहरुख इसलिए नही पसंद कि वो एक एक्टर हैं हालांकि हमारे समय के हीरो हैं ।   मुझे वो इसलिए हमेशा पसंद आये कि वो एक बेहतरीन इंसान रहे ,उनकी बॉयोग्राफी के कुछ अंश पढ़े और जो भी जानकारी रही उसके आधार पर वो हमेशा के लिये पसंद बने । @Amitab जी ने बहुत बेहतरीन लिखा है पढ़िये.. आज शाहरुख खान पर लोगों को जांच एजेंसियों से ज्यादा भरोसा है, शाहरुख के पिता मीर ताजमोहम्मद जब स्कूल में थे तब वो खान अब्दुल गफ्फार खान की खुदाई खिदमतगार ब्रिगेड में थे,स्वतंत्रता संग्राम में जेल गए सत्याग्रह करते थे तो लोगों ने इनके मुंह पर थूका ये यूनाइटेड इंडिया चाहते थे इसीलिए पाकिस्तान बनने के बाद ताज मुहम्मद दिल्ली चले आए,होटल से लेकर मिट्टी तेल सप्लाई के बहुत काम किए रावलपिंडी के पास के किस्सा ख्वानी गांव के थे शाहरुख के नाना इफ्तिखार अहमद हैदराबाद के संभ्रांत वर्ग के थे और केंद्र सरकार में उच्च पद पर कार्यरत थे बचपन में शाहरुख ने कई साल मैंगलोर में गुजारे जहां बंदरगाह बन रहा था और शाहरुख के नाना चीफ इंजीनियर थे लेकिन शाहरुख की मां लतीफ फातिमा को जनरल शाहनवाज़ खान ने गोद लिया था शाहनवाज़ खान आज़ाद हिंद फौज

आज कहानी विशाखापट्टनम टेस्ट में दोहरा शतक जड़ने वाले यशस्वी जायसवाल की। यशस्वी ने विशाखापट्टनम टेस्ट की पहली पारी में 290 गेंद पर 19

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आज कहानी विशाखापट्टनम टेस्ट में दोहरा शतक जड़ने वाले यशस्वी जायसवाल की। यशस्वी ने विशाखापट्टनम टेस्ट की पहली पारी में 290 गेंद पर 19 चौकों और 7 छक्कों की मदद से 209 रन बनाए। यशस्वी ने मुंबई में 5 BHK फ्लैट खरीद लिया है। बड़े भाई ने बताया कि देश की आर्थिक राजधानी में अपना घर खरीदना यशस्वी का ख्वाब था। यशस्वी की कहानी किसी परीकथा से कम नहीं रही। बड़े भाई तेजस्वी जयसवाल को लेफ्ट हैंड बैटिंग करता हुआ देखकर यशस्वी ने क्रिकेट खेलने की सोची। 7 साल की उम्र में बल्ला थाम लिया और सुरियावां, भदोही के क्रिकेट एकेडमी में पहुंच गए। माता-पिता को लगा कि इसी बहाने बच्चे का मन लगा रहेगा और उसकी फिटनेस भी बेहतर हो जाएगी। पर यशस्वी उम्मीदों से बढ़कर निकले। सिर्फ 1 साल के भीतर वह क्लब की सीनियर टीम में आ गए। सोचकर देखिए, 8 साल की उम्र में दिसंबर-जनवरी की कड़कती ठंड में यशस्वी क्लब के साथी खिलाड़ियों के साथ ट्रक की छत पर बैठकर यूपी के अलग-अलग हिस्सों में मैच खेलने जाते थे। आठवें नंबर पर बल्लेबाजी करने आते थे और लेग ब्रेक गेंदबाजी में भी हाथ आजमाते थे। हर कोई उस उम्र में ही यशस्वी की प्रतिभा देकर दंग रह जाता था

बाबर की बेटी की कहानी जिसने ठुकराए थे ऑटोमन सुल्तान के शाही फरमान :बीबीसी न्यूज़

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बाबर की बेटी की कहानी जिसने ठुकराए थे ऑटोमन सुल्तान के शाही फरमान :बीबीसी न्यूज़ ये कहानी सन 1576 की है जब हिंदुस्तान की सरज़मीं पर मुग़लिया सल्तनत का परचम लहरा रहा था और अरब दुनिया पर ऑटोमन साम्राज्य का राज था. हिंदुस्तान में अकबर शहंशाह थे तो ऑटोमन साम्राज्य का ताज़ सुल्तान मुराद अली के सिर पर था. इसी दौर में मुग़लिया सल्तनत की एक राजकुमारी ने मक्का-मदीना की अभूतपूर्व यात्रा की. मुग़लकालीन भारत में ये पहला मौका था जब कोई महिला पवित्र हज यात्रा पर गयी. हज को इस्लाम के पांच आधार स्तंभों में से एक माना जाता है. ये मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर की बेटी गुलबदन बेगम की कहानी है जिन्होंने 53 साल की उम्र में फतेहपुर सीकरी की आरामदायक दुनिया छोड़कर एक ऐसी यात्रा पर जाने का फ़ैसला किया जो अगले छह सालों तक जारी रही. गुलबदन बेगम इस यात्रा पर अकेले ही नहीं गईं बल्कि उन्होंने अपने साथ जाने वाली शाही महिलाओं के एक छोटे से समूह का नेतृत्व भी किया. लेकिन अपने आप में शानदार रही इस यात्रा से जुड़े ब्योरे रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं हैं. इतिहासकार मानते हैं कि शायद इसकी एक वजह ये रही हो कि दरबार के पुरुष

एक ऐसा क्रिकेटर जिसने अपनी कप्तानी में भारतीय टीम को अंडर-19 विश्वकप

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एक ऐसा क्रिकेटर जिसने अपनी कप्तानी में भारतीय टीम को अंडर-19 विश्वकप जिताया था वह आखिर इतना अभागा कैसे हो गया कि मात्र 28 साल की उम्र में उसे सन्यास लेना पङा? इस समय भारतीय टीम अंडर-19 विश्वकप के सेमीफाइनल में दक्षिण अफ्रीका को रौंद कर फाइनल में पहुंच चुकी है और सबसे ज्यादा चर्चे इस समय भारतीय टीम के कप्तान उदय सहारन और सचिन दास की हो रही है जिनकी शानदार पारियों की बदौलत भारत ने कठिन परिस्थिति से बाहर निकलकर फाइनल का सफर तय किया है। कप्तान उदय सहारन को एक बात हमेशा ही याद रखना होगा कि उनको उन्मुक्त चंद नही बनना है। जी हां आज हम चर्चा करने जा रहे हैं भारतीय अंडर-19 टीम के पूर्व कप्तान उन्मुक्त चंद की। उन्मुक्त चंद दिल्ली के रहने वाले थे और 2012 विश्वकप में भारतीय अंडर-19 टीम के कप्तान थे। भारतीय टीम साल 2012 में अंडर-19 विश्वकप के फाइनल में पहुंच चुकी थी। फाइनल मुकाबला भारत और आस्ट्रेलिया के बीच खेला जा रहा था। आस्ट्रेलिया ने टाॅस हारने के बाद पहले बल्लेबाजी करते हुए 225 रन बनाए थे। भारतीय टीम को जीत के लिए 226 रनों की आवश्यकता थी। उस पूरे टूर्नामेंट उन्मुक्त चंद फ्लाप चल रहे थे और 5 म

अब तो कहावत भी प्रचलित हो गयी है कि हम वह हैं जो कभी भी जेम्स फाकनर की

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अब तो कहावत भी प्रचलित हो गयी है कि हम वह हैं जो कभी भी जेम्स फाकनर की तरह गायब हो जाएंगे या फिर लोग धमकाते हुए भी सुने जा सकते हैं कि अच्छा प्रदर्शन करो नही तो टीम से जेम्स फाकनर की तरह गायब कर दिए जाओगे। आस्ट्रेलिया का एक ऐसा आलराउंडर जो वर्ष 2013 में इस सदी का सबसे महान आलराउंडर बनने की तरफ अग्रसर था मगर अचानक ही अपनी गलत आदतों की वजह से उसका पूरा कैरियर ही चौपट हो जाता है। हम बात करने जा रहे हैं जेम्स फाकनर की जो वर्ष 2013 में सबकी जुबान पर रहा करते थे।  ऊंचे लम्बे कद काठी के जेम्स फाकनर एक समय आस्ट्रेलिया के सुपरस्टार बन चुके थे। जेम्स फाकनर अपनी टीम के लिए न सिर्फ अपनी गेंदबाजी से विकेट निकालते थे बल्कि महत्वपूर्ण मौकों पर अपने बल्ले से कई मैच विनिंग पारियां भी खेला करते थे। जेम्स फाकनर ने केवल 1 टेस्ट मैच खेला जिसमे उन्होने 6 विकेट लेने के अलावा 45 रन भी बनाए थे। इसके अलावा फाकनर ने 69 एकदिवसीय मैचों में 34.43 की औसत से 1032 रन बनाए तथा 96 विकेट भी लिए हैं। फाकनर ने 24 T20i में 36 विकेट लिए हैं तथा 159 रन भी बनाए।   दुनिया में सभी भले ही जेम्स फाकनर को भूल जाएं लेकिन ईशान्त शर्

इस्लामिक कलेंडेर के माह रजब की 13 तारीख़ है और यह दिन इस्लामिक हिस्ट्री के ही नहीं बल्कि दुनिया की तारीख़ के महान नायक, हज़रत अली (अ)

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इस्लामिक कलेंडेर के माह रजब की 13 तारीख़ है और यह दिन इस्लामिक हिस्ट्री के ही नहीं बल्कि दुनिया की तारीख़ के महान नायक, हज़रत अली (अ) का जन्म दिवस है। और 25/26 जनवरी 661 ई को हज़रत अली (स) की हत्या हुई थी, जिसके साथ ही ख़िलाफ़त ए राशिदा का दौर ख़त्म हुआ था। हज़रत अली (अ) (599-661) तारीख़ ए इंसानी का क़ुतुबी तारा, शमा ए हिदायत और मुर्शिद हैं। इस्लाम की समावेशी और जनपक्षधर नीतियों को ज़मीनी तौर पर लागू करने की सही मायनों में सिर्फ़ आपने ही कोशिश की थी। एक महान योद्धा, महान चिंतक, भाषाविद्व, न्यायप्रिय ख़लीफ़ा, स्कॉलर, कुशल प्रशासक होने के बावजूद आपने एक आम इंसान की तरह अपनी ज़िन्दगी गुज़ारी।आपने ख़िलाफ़त का ओहदा उस वक़्त सम्भाला जब हालात बहुत ख़राब थे, अमीरी-ग़रीबी की खाई बहुत चौड़ी हो चुकी थी। भाई-भतीजे वाद का बोल बाला था, राजकोष से कोई भी प्रभावशाली व्यक्ति पैसा ले लेता था। हज़रत अली पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने इस प्रक्रिया पर प्रभावशाली तरीक़े से रोक लगाई। इस सम्बंध में आपने एक गवर्नर को जो लिखा वह पढ़ने के लायक़ है, “उस ज़ात की क़सम जिसने दाने को चीरा और जानदारों को पैदा किया है, अगर

आज एक महान पुरुष, वीर-योद्धा, उत्तम शासक हज़रत अली का जन्मदिन है। उनकी न्याय-प्रियता का एक वाक़या सुनते हैं। एक बार हज़रत अली

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आज एक महान पुरुष, वीर-योद्धा, उत्तम शासक हज़रत अली का जन्मदिन है। उनकी न्याय-प्रियता का एक वाक़या सुनते हैं।  एक बार हज़रत अली एक सफ़र पर जा रहे थे। रास्ते में एक जगह थोड़ा आराम करने के लिए, कुछ ज़रूरतें पूरी करने के लिए उतरे। उनके साथ उस सफ़र में सिर्फ दो लोग थे, एक उनके आली-मुकाम साहबज़ादे हसन और उनका एक ख़ादिम। अपने जिस्म को किसी अप्रत्याशित हमले से बचाने के लिए उस समय लोगों को सफ़र में निकलते समय भी लोहे का लिबास, ज़िरह, पहनना पड़ता था। हज़रत अली जब आराम करने के लिए लेटे तो उस ज़िरह को उतार कर रख दिया। और इधर ये दोनों नौजवान इधर-उधर टहलने लगे। इन दोनों की नज़र पड़ी, ज़रा देर से नज़र पड़ी, कि एक शख़्स आया और उसने हज़रत अली के उस कीमती लिबास को उठाया और उसे लेकर वो तेज़ी के साथ भागा, किसी तेज़ रफ्तार घोड़े पर। इन दोनों ने उसे चाहा कि पकड़ें लेकिन नहीं पकड़ सके, लेकिन उसे पहचान लिया। जाना पहचाना इंसान था-यहूदियों का एक विद्वान था वो, और उसने ऐसी हरकत की तो ये दोनों हैरान रह गए। हज़रत अली जागे तो इन दोनों ने बताया कि आपकी ज़िरह हमारी आँखों के सामने फलां आदमी चुरा कर ले गया।   एक अपराध हुआ, और ये अपराध किसके समा

सानिया मिर्जा और शोएब मलिक ऑस्ट्रेलिया के होबार्ट में पहली बार मिले थे। शोएब

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सानिया मिर्जा और शोएब मलिक ऑस्ट्रेलिया के होबार्ट में पहली बार मिले थे। शोएब को तभी से सानिया पसंद थीं और दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई। यह दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई और दोनों ने शादी का फैसला कर लिया। सानिया और शोएब की शादी की खबर आते ही हैदराबाद की महिला आयेशा सिद्दकी सामने आई। उन्होंने आरोप लगाया कि शोएब मलिक उनके पति हैं। शोएब मलिक ने इससे इनकार किया लेकिन बाद में आई खबरों के मुताबिक शोएब मलिक ने आयेशा को तलाक दे दिया था। उस वक्त भी लोगों ने कहा था जो आदमी अपनी पहली शादी छुपा रहा है, वह बाद में आपके साथ भी ऐसा ही बर्ताव कर सकता है। हर सलाह को अनसुना कर सानिया मिर्जा और शोएब मलिक ने 12 अप्रैल 2010 को हैदराबद के ताज कृष्णा होटेल में शादी की। इसके बाद पाकिस्तान के सियालकोट में वालिमा हुआ।  सानिया मिर्जा और शोएब मलिक को शादी के सालों बाद तक भी ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा। जब भी कभी भारत-पाकिस्तान का क्रिकेट मैच होता तो सानिया को ट्रोल किया जाता था। सानिया ने 2019 में इस मैच से पहले सोशल मीडया पर ऐलान किया था कि वह मैच से पहले ट्विटर पर एक्टिव नहीं रहेंगी ताकि लोगों की नकारात्मकता

راہ عزیمت کا مسافر(مجاہد دوراں سید مظفر حسین کچھوچھوی)

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راہ عزیمت کا مسافر (مجاہد دوراں سید مظفر حسین کچھوچھوی) بلال احمد نظامی مندسوری، رتلام مدھیہ پردیش _______________________________________ شمالی ہند کےصوبہٕ اتر پردیش کےمردم خیز قبصہ کچھوچھہ مقدسہ میں اعلی حضرت علی حسین اشرفی میاں علیہ الرحمہ (1266_1355ھ) کےبرادر اکبر اور مرشد گرامی اشرف الصوفیاء سید شاہ اشرف حسین اشرفی جیلانی علیہ الرحمہ (1260_1348ھ) کےآنگن میں (1338ھ_ 1920ء)میں فضل خداوندی سےایک بچےکی کلکاری گونجتی ہے،جس سےاہل خاندان میں خوشیوں کی لہر دوڑ جاتی ہے۔ اس نومولود کا نام مظفر حسین تجویز ہوتاہےاور آگےچل کر یہ نومولود ملت اسلامیہ کاقائد،رہبر اور رہنما بن کر افق آسمان پر جگمگاتاہےاور دنیا والےاس کی اولوالعزمی،پامردی، جواں مردی، بےخوفی، بےباک لیڈر شپ اور کامیاب قیادت دیکھ کر مجاہد دوراں کےلقب سےیاد کرتےہیں۔  مجاہد دوراں حضرت علامہ سید مظفر حسین کچھوچھوی علیہ الرحمہ کی مجاہدانہ زندگی کےاَنْمِٹ نقوش کامطالعہ کرنےکےلیےمعارف مجاہد دوراں (جوابھی غیر مطبوع ہے،خدا کرے جلد طبع ہوجائے) کامطالعہ کیجیےگا،ابھی صرف آپ کی عزیمت بھری زندگی کےکچھ نقوش اسکرین پر پیش کررہاہوں۔   مجاہد دوراں حضر

2008 मे जब इंडिया U19 की टीम वर्ल्ड कप फाइनल जीती थी उस टीम का हिस्सा

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2008 मे जब इंडिया U19 की टीम वर्ल्ड कप फाइनल जीती थी उस टीम का हिस्सा आजमगढ़ के Iqbal Abdullah भी थे मुझे आज भी याद है मलेशिया से बेंगलुरु एयरपोर्ट पर जब टीम इंडिया उतरी थी तो उसका भव्य स्वागत हुआ था और जैसे 2007 मे महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया ने T20 वर्ल्ड कप जीता था और खुले बस मे ट्रॉफी के साथ रोड शो हुआ था उसी तरह U19 वर्ल्ड कप में भी खुले बस मे रोड शो हुआ था उसके बाद चूंकि बीसीसीआई की हेड ऑफिस मुंबई में थी और ट्रॉफी मुंबई मे रखनी थी तो मुंबई के इकलौते खिलाड़ी इकबाल अब्दुल्लाह जीती हुई ट्रॉफी मुंबई लेकर आए थे इकबाल अब्दुल्लाह मुंबई मे कुर्ला स्थित बौद्ध कालोनी में रहते थे तो कुर्ला एरिया में भी उस ट्रॉफी के साथ रोड शो हुआ था और फिर मैं अपने एक दोस्त के साथ इकबाल अब्दुल्लाह से मिलने उनके घर कुर्ला गया था और हम लोगों ने स्टुडियो मे जाकर एक तस्वीर भी निकाली थी याद रहे 2008 की U19 वर्ल्ड कप विनिंग टीम में इकबाल अब्दुल्लाह के साथ साथ कप्तान विराट कोहली रविन्द्र जडेजा सिध्दार्थ कौल मनीष पांडे और सौरभ तिवारी भी थे , लेकिन इकबाल अब्दुल्लाह को छोड़ इस सभी खिलाड़ियों को टीम इं

सरफराज खान और ईशान किशन... यानी भारतीय क्रिकेट के 2 सबसे बदनसीब खिलाड़ी। सरफराज खान को लगातार घरेलू क्रिकेट में बेहतरीन

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सरफराज खान और ईशान किशन... यानी भारतीय क्रिकेट के 2 सबसे बदनसीब खिलाड़ी। सरफराज खान को लगातार घरेलू क्रिकेट में बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद भारतीय टीम सिलेक्शन से दुत्कार मिल रही है, जबकि ईशान किशन को राहुल द्रविड़ ने घरेलू क्रिकेट खेलने का आदेश दिया है। फिलहाल सरफराज खान और ईशान किशन के बीच यही समानता है कि इन दोनों ही खिलाड़ियों को इंग्लैंड के खिलाफ भारत की टेस्ट टीम में शामिल नहीं किया गया है। सबसे पहले बात ईशान किशन की। ईशान को वनडे वर्ल्ड कप के दौरान लगातार 9 मैच बेंच पर बिठाया गया। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 5 मैच की T-20 सीरीज के अंतिम 3 मुकाबले में ईशान की जगह जूनियर जितेश शर्मा को टीम में शामिल किया गया। ईशान किशन को साउथ अफ्रीका के विरुद्ध 3 मैच की T-20 सीरीज के दौरान ईशान किशन बेंच पर बैठे रहे।  साउथ अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज के पहले केएल राहुल को विकेटकीपर बना दिया गया। इससे नाराज होकर ईशान किशन ने राहुल द्रविड़ से कहा, अगर मुझे भारतीय टीम के साथ भी घूमना ही है तो बेहतर है कि मैं दोस्तों के साथ घूमूं। राहुल द्रविड़ ने कहा तुम जा सकते हो। दैनिक जागरण अखबार में खबर छपी है कि भारत

रोहित वेमुला का वह अंतिम पत्र, जिसे इसलिए बार–बार पढ़ा जाना चाहिए कि हमने किन कारणों से एक होनहार को खोया और कैसे उन कारणों से कैसे

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रोहित वेमुला का वह अंतिम पत्र, जिसे इसलिए बार–बार पढ़ा जाना चाहिए कि हमने किन कारणों से एक होनहार को खोया और कैसे उन कारणों से कैसे निबटा जाए। यह अकेले रोहित वेमुला का मसला नहीं है। "गुड मॉर्निंग! जब आप यह पत्र पढ़ रहे होंगे तो मैं आपके बीच नहीं रहुंगा। मेरे उपर गुस्सा ना हों आप। मैं जानता हूं कि आपमें से कई लोगों ने मेरा सच में बहुत खयाल रखा है, प्यार किया है और मेरी हमेशा मदद की। मेरी किसी से भी कोई शिकायत नहीं है। मुझे हमेशा से खुद से समस्या थी। मैं अपने शरीर और आत्मा के बीच बढ़ती दूरी को महसूस करता हूं और मैं एक शैतान बन गया हूं। मैं हमेशा से ही एक लेखक बनना चाहता था। विज्ञान का लेखक, कार्ल्स सेगन की तरह। लेकिन अंत मैं सिर्फ ये पत्र ही लिख पाया। मैं विज्ञान, तारों, प्रकृति से बहुत प्यार करता था लेकिन इसके बाद मैंने लोगों से प्यार करना शुरु किया, बिना ये जाने कि लोगों ने प्रकृति से बहुत पहले ही तलाक ले लिया है। हमारी भावनायें दोयम दर्जे की हैं। हमारा प्रेम बनावटी है, हमारी मान्यताएं झूठी हैं, हमारी मौलिकता वैध है बस कृत्रिम कला के जरिए यह बेहद कठिन हो गया है कि हम प्रेम करें और

रोहित शर्मा लग रहा है शिवम् दुबे को हार्दिक पांड्या का गुस्सा अब शिवम् दुबे को तैयार कर बदला लेंगे।

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रोहित शर्मा लग रहा है शिवम् दुबे को हार्दिक पांड्या का गुस्सा अब शिवम् दुबे को तैयार कर बदला लेंगे।  सवाल यह है कि हार्दिक की वापसी के बाद शिवम दुबे को टीम में रखा जाएगा या फिर से शिवम दुबे जेम्स फाकनर की तरह गायब कर दिए जाएंगे? कल से ही लोग शिवम दुबे को लेकर तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। कुछ लोग शिवम की कामयाबी के पीछे महेन्द्र सिंह धोनी का नाम भी ले रहे हैं। जहां तक बल्लेबाजी का सवाल है तो शिवम दुबे ठीक ठाक बल्लेबाजी कर लेते हैं लेकिन जब बात गेंदबाजी की आती है तब वहां हार्दिक पांड्या शिवम दुबे से आगे हो जाते हैं। हार्दिक की गेंदबाजी में एक तेज गेंदबाज जितना पैनापन है जबकि शिवम दुबे की गेंदबाजी में वह तेजी और पैनापन नही दिखता है। लम्बे कद के शिवम दुबे अगर अपनी गेंदबाजी पर थोङी सी मेहनत कर लें तो वह टीम के लिए एक बेहतरीन तेज गेंदबाजी आलराउंडर का विकल्प बन जाएंगे। जरूरत है तो मैनेजमेंट को शिवम दुबे पर भरोसा दिखाने का और कप्तान और कोच के सहयोग और समर्थन के बिना कोई भी खिलाङी आजतक बङा खिलाङी नही बन सका है। उम्मीद है कि जिस तरह गिल को सपोर्ट मिल रहा है वैसे ही शिवम दुबे को भी मिलेगा और उनको

कहते हैं अयोध्या में राम जन्मे, वहीं खेले-कूदे, बड़े हुए, बनवास भेजे गये, लौटकर

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कहते हैं अयोध्या में राम जन्मे, वहीं खेले-कूदे, बड़े हुए, बनवास भेजे गये, लौटकर आये तो वहाँ राज भी किया। उनकी ज़िंदगी के हर पल को याद करने के लिए एक मंदिर बनाया गया। जहाँ खेले, वहाँ गुलेला मंदिर है। जहाँ पढ़ाई की, वहाँ वशिष्ठ मंदिर हैं। जहाँ बैठकर राज किया, वहाँ मंदिर है। जहाँ खाना खाया, वहाँ सीता रसोई है। जहाँ भरत रहे, वहाँ मंदिर है। हनुमान मंदिर है, कोप भवन है। सुमित्रा मंदिर है, दशरथ भवन है। ऐसे बीसियों मंदिर हैं, और इन सबकी उम्र 400-500 साल है। यानी ये मंदिर तब बने, जब हिंदुस्तान पर मुगल या मुसलमानों का राज रहा। अजीब है न! कैसे बनने दिये होंगे मुसलमानों ने ये मंदिर! उन्हें तो मंदिर तोड़ने के लिए याद किया जाता है। उनके रहते एक पूरा शहर मंदिरों में तब्दील होता रहा और उन्होंने कुछ नहीं किया! कैसे अताताई थे वे जो मंदिरों के लिए जमीन दे रहे थे! शायद वे लोग झूठे होंगे जो बताते हैं कि जहाँ गुलेला मंदिर बनना था, उसके लिए जमीन मुसलमान शासकों ने ही दी। दिगंबर अखाड़े में रखा वह दस्तावेज़ भी गलत ही होगा जिसमें लिखा है कि मुसलमान राजाओं ने मंदिरों के निर्माण के लिए 500 बीघा जमीन दी। निर्मोही अखाड