राहुल का संघर्ष और सार्थकता भारतीय राजनीति
राहुल का संघर्ष और सार्थकता भारतीय राजनीति में कांग्रेस और नेहरू खानदान की प्रासंगिकता के साथ-साथ, उनकी कमियां और बहुत सारी कमजोरियां रही हैं। नेहरू की डिस्कवरी ऑफ इण्डिया का भारत, भले ही आधारभूत संरचनाओं के साथ विकास की यात्रा प्रारम्भ किया हो, प्रगतिशीलता के खांचे में वह भी नहीं समा सका था, फिर भी वह पुरातनपंथी नहीं कहा जा सकता। वैचारिकी में वह वामपंथ से दूर होते हुए भी, दक्षिणपंथी हिंसा और नफरत को आत्मसात नहीं किए हुए था। वह अधिनायकवादी होते हुए भी निर्लज्ज जनविरोधी नहीं था। वह कार्पोरेट परस्त होते हुए भी, किसान-मजदूरों की बर्बादी पर जश्न मनाने वाला नहीं था। खाद-बीज, कृषि उपकरणों के कारखानों की नींव उसी ने रखी मगर उसी के काल में उदारवादी अर्थव्यवस्था की कोख से उनके उजड़ने की कहानी भी लिख दी गई। आज तो, बिना आधारभूत संरचना का निर्माण किए, आयातित संस्कृति से, नेहरू के बुनियाद को दफन करने का काम किया जा रहा है। गुटनिरपेक्षता की वैश्विक राजनीति की बात तो छोड़िए, समर्पण कर विदेशी नेता का चुनाव प्रचार किया जा रहा है। यह सही है कि कांग्रेस के जमाने में विदर्भ के किसानों की आत्महत्याओं का...