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मार्च, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बिहार (समस्तीपुर) की एक मुस्लिम लड़की को कहीं शादी में विकास कुमार नामी एक लड़का मिला, दोनों एक दूसरे को पसंद किए। बात आगे बढ़ी दोनों ने एक दूसरे को अपना मोबाइल नंबर

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बिहार (समस्तीपुर) की एक मुस्लिम लड़की को कहीं शादी में विकास कुमार नामी एक लड़का मिला, दोनों एक दूसरे को पसंद किए। बात आगे बढ़ी दोनों ने एक दूसरे को अपना मोबाइल नंबर दिया और बात चीत का सिलसिला शुरू हुआ। इन दोनों नौजवानों ने 2019 में घर से भागकर हाजीपुर में शादी कर ली और वहीं किराये का मकान लेकर रहने लगे। शादी के छः महीने बाद लड़का अपना वो असली चेहरा दिखाना शुरू किया जिस मक़सद से उसने उस लड़की से शादी की थी। लड़की से जहेज़ का मुतालबा करने लगा, उसे मारने-पीटने लगा वग़ैरह, वग़ैरह। जब उस लड़के को लगा अपनी बीवी से उसे कुछ हासिल नहीं होगा। वो अपनी बीवी को बेंगलुरु ले गया और 5/6 लोगों के हाथ अपनी बीवी को बेच दिया। वो लोग छः महीने तक उस लड़की की आबरू लूटते रहे। जब उन हैवानों का दिल भर गया तो तक़रीबन छः महीने बाद उन्होंने उस लड़की को दिल्ली में किसी जिस्म-फ़रोशों से फ़रोख़्त कर दिया। पांच रोज़ क़ब्ल लड़की किसी तरह से भागकर समस्तीपुर पहुंची और पुलिस से अपनी पूरी कहानी बताई और अपने शौहर (विकास कुमार) पर एफ़आईआर दर्ज कराई। अब वो लड़की वही स्क्रिप्टेड बयानिया दे रही है जो सभी लड़के/लड़कियां देते है

डॉ० आफ़िया सिद्दीकी के बारे में शायद बहुत कम लोगों को जानकारी है। आफ़िया सिद्दीकी वो औरत है जिसको अमेरिकी सरकार

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A day like today March 30th Dr Aafia Siddiqui was kidnapped.. डॉ० आफ़िया सिद्दीकी के बारे में शायद बहुत कम लोगों को जानकारी है। आफ़िया सिद्दीकी वो औरत है जिसको अमेरिकी सरकार ने हर तरह से प्रताड़ित किया है, लेकिन आज भी वह इस्लाम की हिफाज़त और अपने ईमान को बचाए हुए है, डॉ० आफ़िया सिद्दीकी, पाकिस्तानी है पेशे से एक न्यूरोलॉजिस्ट हैं, उन्होंने अपनी पढ़ाई MIT से की, उनके 3 बच्चे हैं, जिनके नाम अहमद, मरयम और सुलैमान, जब डॉ० आफ़िया को किडनैप किया गया तब महज़ इन बच्चों की उम्र 5 साल, 3 साल और सुलैमान महज़ 1 साल या उससे कम उम्र का था, CIA / FBI का दावा है कि उन्होंने आफ़िया को अफ़ग़ानिस्तान से पकड़ा जबकि आफ़िया के परिवार वालों का कहना है कि उनको 2003 में पाकिस्तान की सरकार ने अमेरिकी सरकार को सौंपा ( एक तरह से उनका सौदा किया ), ISI ने CIA को सौंप दिया जिसके बाद उनको बर्गम जेल ( BARGAM JAIL ) जो कि अफगानिस्तान में है वहाँ रखा गया वहाँ उनके साथ हर तरह की बदसलूकी की गई, खुद 2008 में आफ़िया ने यह बात कोर्ट को बताई की उनके साथ जेल में बलात्कार किया जाता है, उनको जेल में नंगा रखा जाता है, और यही नहीं उन

रज़ाई----सर्दियों में रज़ाई को कम्बल से ज़्यादा तवज्जो हासिल है,तभी इस्मत चुग़ताई

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रज़ाई----सर्दियों में रज़ाई को कम्बल से ज़्यादा तवज्जो हासिल है,तभी इस्मत चुग़ताई ने कहानी 'लिहाफ़' लिखी।वरना वो चाहतीं तो लिहाफ़ की जगह उसका नाम 'कंबल' भी कर सकती थीं और कंबल में भी उन बातों का ज़िक्र कर सकती थीं जो उन्होंने अपनी कहानी लिहाफ़ में किया।कंबल में भी समान रूप से वही चीज़ें हो सकती हैं जो उनकी कहानी में लिहाफ़ में थीं,कंबल भी तो एक गर्म पर्दा ही हुअा जैसे कि लिहाफ़ है।रज़ाई का महत्व कंबल से ज़्यादा ही है क्योंकि बॉलीवुड के गाने 'सईंयाँ के साथ मड़ईया में,बड़ा मजा आवै रजईया में' रजाई का इस्तेमाल हुआ है।कवि चाहता तो उस गाने को यूँ भी कर सकता था कि 'सईंयाँ के साथ कंबलवा में,बड़ा मजा आवै दंगलवा में'।तब भी सुनवईया को वही फ़ीलिंग आती।कंबल का जुड़ाव सूफ़ी मनश और साधु किस्म के लोगों से माना जाता है,कंबल को थोड़ा रफ़ एंड टफ़ माना जाता है,साधु के कांधे पर कंबल होता है,रज़ाई नहीं होती,कंबल यात्रा का भी साथी होता है।जबकि रज़ाई से स्थायी भाव आता है,रज़ाई यात्री नहीं लगती,रज़ाई विलासिता का प्रतीक लगती है।बहरहाल,कंबल के अपने मज़े हैं तो रज़ाई के

डॉ. शारिक़ अहमद ख़ान नही रहेहम जैसे लोगो के लिए उनका जाना किसी सदमे से कम नही है क्या खूब लिखते थे चलता फिरता इतिहास थे.... पढ़े उनकी एक पुरानी पोस्ट

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डॉ. शारिक़ अहमद ख़ान नही रहे हम जैसे लोगो के लिए उनका जाना किसी सदमे से कम नही है क्या खूब लिखते थे चलता फिरता इतिहास थे.... पढ़े उनकी एक पुरानी पोस्ट  'मुसलमानों के यहाँ से रवायतें ख़त्म हो रही हैं..पहले मुसलमान ख़ुद रंग खेलते थे.आज के दौर में होली के रंग की छींट पड़ जाने से कई बार दंगे तक हो चुके हैं.हमारे आज़मगढ़ के गांवों के मुसलमान किसानों का एक त्योहार होता था ' ऊख बुवाई ' मतलब खेतों में गन्ना बोने  का त्योहार..शारिक़ ने बचपन में ख़ुद ये त्योहार देखा है. गन्ने की खेती अकेले हो नहीं सकती लिहाज़ा भोर में फ़जर की नमाज़ पढ़ने के बाद लोग उसके खेत में जाते जिसके खेत में गन्ने की बुवाई की पारी होती.भीगे हुए गन्ने आते, लोग बैठकर टुकड़े काटते,अपने हल बैल ले जाते, ऊख बुवाई होती.सुबह नाश्ते में शर्बत -चना बंटता.सूरज चढ़े चाश्त की नमाज़ के वक़्त ऊख भोज होता जिसमें खेत में ही कंडे और लकड़ी पर हल्का और सादा नाश्ता बनता.जैसे चने का नमूना.दाल की पूड़ी.सोहाली.भऊरी -चोखा.लोग खाते -पीते और हंसी मज़ाक़  करते.काम मज़दूर भी करते तो ऊख भोज में गांव बुलाया जाता.दोपहर को जिसके खेत

राहुल गांधी संसद से बाहर ! राहुल गांधी “अब” संसद में नहीं रहेंगे ! यह आधा सच है । सच तो यह है कि अब संसद में राहुल गांधी सबसे ज्यादा रहेंगे । पहले #राहुल_गांधी #rahul_gandhi

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राहुल गांधी संसद से बाहर !     राहुल गांधी “अब” संसद में नहीं रहेंगे ! यह आधा सच है । सच तो यह है कि अब संसद में राहुल गांधी सबसे ज्यादा रहेंगे । पहले राहुल गांधी संसद में बोलते थे अब संसद राहुल गांधी बोलेगी । यह प्राकृतिक सच है । एक उदाहरण सुन लीजिए - सत्तर के दसक में असम जल रहा था । असमगणपरिषद का आंदोलन ज़ोरों पर था , गणपरिषद ने दबाव बना कर , विधायिका ( विधान सभा और संसद के दोनों सदनों से अपने प्रतिनिधि वापस बुला लिए थे । यह लम्बा अंतराल रहा आंदोलन तक़रीबन पंद्रह साल चला । देश की संसद में असम का कोई प्रतिनिधि नही लेकिन असम संसद में छाया रहा । कोई दिन ऐसा नहीं होता था , जब सदन में असम पर चर्चा न हो ।           यह कोई भविष्यवाणी नहीं है , यह सियासी पेंच है - कल से संसद में राहुल गांधी की “उपस्थिति “ दमदारी से होगी , पक्ष प्रतिपक्ष दोनों बग़ैर राहुल गांधी बोले अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में दिक़्क़त महसूस करेंगे ।कल से देश की संसद में राहुल गांधी जेरे बहस होंगे ।        और राहुल गांधी ?          कांग्रेस का इतिहास प्रतिवद्धता पर ओठंगा है । अब राहुल गांधी अपने व्यक्तित्व के सारे खाँचे तोड़

#Motivation18 साल से बेड पर हूं। गर्दन के नीचे का पूरा हिस्सा सुन्न हो गया है। हिलने-डुलने

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#Motivation 18 साल से बेड पर हूं। गर्दन के नीचे का पूरा हिस्सा सुन्न हो गया है। हिलने-डुलने की भी शक्ति नहीं बची। न खुद से खा सकता हूं, न खुद से पानी पी सकता। अपना पर्सनल मैसेज भी दूसरों से टाइप कराना पड़ता है। समझ नहीं आता मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ। तब मैं 17 साल का था। कई हसरतें थीं, ढेर सारे ख्वाब थे। और अचानक मुझे जीवनभर के लिए बेड रेस्ट दे दिया गया। सारी उम्मीदें टूट कर चकनाचूर हो गई। मैं बता नहीं सकता क्या गुजरी है मुझ पर। सालों तक डिप्रेशन में रहा। रात-दिन रोते रहता था, लेकिन फिर जिंदगी ने ऐसी करवट ली कि बेड पर पड़े-पड़े मैं अपने जैसे अनगिनत लोगों की उम्मीद बन गया, हौसला बन गया। मैं रईस हिदय, केरल के मल्लपुरम जिले का रहने वाला हूं। पांच भाई बहनों में सबसे बड़ा। पापा गल्फ कंट्री में सेटल थे और हम भाई-बहन यहां मां के साथ रहते थे। मैं पढ़ाई-लिखाई में एवरेज था, लेकिन दूसरे क्रिएटिव कामों में सबसे आगे। स्कूल के सबसे मशहूर लड़कों में मेरी गिनती होती थी। 25 अप्रैल 2004 की बात है। तब मैं दसवीं क्लास में था। अगले दिन स्कूल में एनुअल फंक्शन था। उसके प्रबंधन की जिम्मेदारी मेरी थी।

चोरों और ठगों से होशियार😅😂😂🤣🤣😭😭

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हाजी ख़लील अहमद को सर्राफ़ा बाज़ार में दुकान खोले पाँच साल हो गए थे, अच्छा कारोबार था, दो- तीन मुलाजिम भी रख लिये थे।  रमज़ान की पहली तारीख़ थी, ख़लील साहब आज अकेले थे, मुलाज़िमों ने कल ही कह दिया था कि आज वह छुट्टी पर रहेंगे। आज बाज़ार में सन्नाटा भी था, लेकिन ख़लील साहब उम्मीद से बराबर बाहर की तरफ़ नज़रें जमाए हुए थे। थोड़ी देर बाद एक मोटर गाड़ी उनकी दुकान के सामने आकर रुकी। मोटर से एक मोअज़िज़ और बेहतरीन लिबास ज़ेर ए तन किए हुए, नूरानी चेहरे वाला एक नौजवान उतरा। चेहरे पर हल्की दाढ़ी, गले में माला, हाथ में कई अँगूठियाँ चेहरे पर मुस्कान लिये जब दुकान में वह नौजवान दाख़िल हुआ तो ख़लील साहब को महसूस हुआ कि दुकान के भाग्य जाग गए। ख़लील साहब ने आगे बढ़ कर ख़ुद नौजवान का इस्तेक़बाल किया, नौजवान ने शहद जैसी आवाज़ में कहा, “आपकी दुकान बड़ी पुरकशिश है, पता नहीं क्यों इस तरफ़ मेरे क़दम ख़ुद ब ख़ुद उठ गए जैसे ख़ुदा की तरफ़ से कोई हुक्म हो। हम आपकी दुकान से काफ़ी कुछ ख़रीदेंगे लेकिन क्या आप रमज़ान के पहले दिन सदक़ा जारी करना चाहेंगे, इस नेक काम के लिये आप की जानिब से चाहे एक रुपया ही क्यों ना हो

मोहब्बत में सकारात्मक सोच और सही क़दम ने एक आम से इंसान को अहमद दीदात बना दिया

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शेख अहमद दीदात  मोहब्बते रसूल ने दर्जी के बेटे को विश्व के सबसे सम्मानित लोगों में शामिल कर दिया  """""""""""""""""""""""""''""""""''""""""""" शेख अहमद दीदात 1918 में सूरत गुजरात में पैदा हुए उनके वालिद सिलाई का काम करते थे पर कमाई इतनी नहीं थी कि घर का खर्च सुचारू रूप से चल सके , उस समय पैसे कमाने के लिए गुजरात के लोग साऊथ अफ्रीका जाते थे अहमद दीदात के वालिद भी साऊथ अफ्रीका चले गए वहां उन्होंने एक फार्म हाउस में मजदूरी की जब कुछ पैसे इकट्ठा हुए तो साऊथ अफ्रीका के शहर डरबन में टेलरिंग की एक छोटी दुकान खोल ली और अपनी फैमिली को अपने पास साऊथ अफ्रीका बुला लिया  इस तरह अहमद दीदात साहब 1927 में साऊथ अफ्रीका पहुंचे उस समय उनकी उम्र 9 वर्ष थी साउथ अफ्रीका पहुंचने के कुछ महीने बाद उन की वालिदा का इंतकाल हो गया वालिद ने इन का एडमिशन एक स्कूल में करा दिया लेकिन घर की खराब आर्थिक स्थ

भागी हुई लड़कियों का बाप.. सबसे निरीह होता हैं !!वह इस दुनिया का

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भागी हुई लड़कियों का बाप.. सबसे निरीह होता हैं !! वह इस दुनिया का सबसे अधिक टूटा हुआ व्यक्ति होता है। पहले तो वह महीनों तक घर से निकलता नहीं है, और फिर जब निकलता है तो हमेशा सर झुका कर चलता है। अपने आस-पास मुस्कुराते हर चेहरों को देख कर उसे लगता है जैसे लोग उसी को देख कर हँस रहे हैं। वह जीवन भर किसी से तेज स्वर में बात नहीं करता, वह डरता है कि कहीं कोई उसकी भागी हुई बेटी का नाम न ले ले... वह जीवन भर डरा रहता है। वह रोज मरता है। तब तक मरता है जबतक कि मर नहीं जाता। पुराने दिनों में एक शब्द होता था 'मोछ-भदरा'। जिस पिता की बेटी घर से भाग जाती थी, उसे उसी दिन हजाम के यहाँ जा कर अपनी मूछें मुड़वा लेनी पड़ती थी। यह ग्रामीण सभ्यता का अलिखित संविधान था। तब इंसान दो बार ही मूँछ मुड़ाता था, एक पिता की मृत्यु पर और दूसरा बेटी के भागने पर। बेटी का भागना तब पिता की मृत्यु से अधिक पीड़ादायक समझा जाता था। तब और अब में बस इतना इतना ही अंतर है कि अब पिता मूँछ नहीं मुड़ाता, पर मोछ-भदरा तब भी बन जाता है। बिना मूँछ मुड़ाये... किसी के "फेर" में फँस कर घर से भागते बच्चे( लड़के और लड़कियाँ दोनों) यह

आज शेन वार्न की पुण्यतिथि है, लिखने को बहुत कुछ है लेकिन लास्ट ईयर उनके

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आज शेन वार्न की पुण्यतिथि है, लिखने को बहुत कुछ है लेकिन लास्ट ईयर उनके गुज़रने के बाद मैंने ये पोस्ट लिखी थी जो इस लिहाज़ से बेहतर है कि इसमें उनकी काबलियत को समझने का ठीक ठाक मसाला है।   शेन वार्न का यूँ अचानक जाना मेरे लिए तकलीफ़ देह है, क्रिकेट इतिहास में उनसे बड़ा स्पिनर कोई नही हुआ, और ये मैं उनके बारे में हमेशा लिखता आया हूँ। ये पोस्ट पुरानी है पर आज इसे लिखना ज़रूरी है। शेन वार्न क्यो महान है, ये मैं आपको आगे चलकर बताऊंगा, दरअसल सिर्फ़ आंकड़े याद कर लेना ही क्रिकेट नही है, क्योंकि जब पहली बार कोई क्रिकेट खेलने आता है तो उसके पीछे कोई रिकार्ड नही होता फिर कैसे समझेंगे कि ये क्रिकेटर भविष्य में कैसा होगा,आखिर सचिन भी शुरुआत में रन नही बना पाए थे, या बहुत से महान प्लेयर शुरू में रन नही बना पाए, इसलिए आंकड़ों से ज़्यादा क्रिकेट की समझ होना ज़रूरी है। शेन वार्न एक लेग स्पिनर थे, अमूमन लोग उन्हें टर्न के लिए जानते है, लेकिन आपको पता होना चाहिए लेग स्पिन में अच्छी टर्न तो लोकल लेवल के प्लेयर भी करा लेते है। सचिन तेंदुलकर खुद बढ़िया टर्न कराते थे, यहाँ तक लेग स्टम्प की बॉल टर्न होकर ऑफ स्टम्प पर

डायलिसिस के दौरान ब्लड लाल नली से बाहर निकाला जाता है फिर मशीन

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डायलिसिस के दौरान ब्लड लाल नली से बाहर निकाला जाता है फिर मशीन से उसे गुजारने के बाद ज़िस्म में दोबारा नीली नली से दाखिल कर दिया जाता है। एक डायलिसिस के प्रोसेस तकरीबन चार घंटे चलता है और यह अमल मरीज़ को हफ्ते में दो से तीन मरतबा दोहराना पड़ता है। जिन लोगों के गुर्दे सेहतमंद है उनके जिस्म में यही अमल खुद ब खुद दिन में 36 मरतबा होता है बिना किसी तकलीफ़ के और मुकम्मल आराम के साथ। आप नहीं जानते कि हर पल हर दम करीम रब की किस क़दर नेमतें हम पर बरस रही है...तो हमेशा अल्लाह रब्बुल आलमीन का शुक्र अदा करते रहे... और तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों को झूठलाओगे! تبارك الله احسن الخالقين° Ya Allah ham sabhi ko tamam bimariyon se mehfooz farma aur Jo bimar hai unhe sehat ata farma ... Aameen