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फ़रवरी, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कल हमारे मुख्य-सेवक जी समुद्र में डूबी द्वारका जी के दर्शन करने गये। बाहर निकले

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कल हमारे मुख्य-सेवक जी समुद्र में डूबी द्वारका जी के दर्शन करने गये। बाहर निकले तो बड़े प्रसन्न थे। बताये कि जब समुद्र में थे तो उनके कान में कृष्ण जी की मुरली गूँज रही थी, बहुत दिव्य अनुभव था, वगैरह-वगैरह।  अब आपने अगर वो विडियो देखा हो तो क्या अपने मन में सोचा कि जब द्वारका जी की इतनी भव्य तस्वीरें इन्टरनेट पर घूमती रहती हैं, जिन तस्वीरों में – द्वार पर रखी शेर की मूर्ति, भव्य सीढियां एवं भवन अवशेष, बड़े-बड़े खम्बे – दिखाए जाते हैं तो हमारे मुखिया जी प्राचीनकाल में जहाजों द्वारा समुद्र के किनारे लंगर डालने के लिए प्रयोग किये जाने वाले “एंकर” पर बैठ कर पूजा कर के क्यों आ गये? द्वारका की कोई खिड़की, दरवाजे, चबूतरे या खम्बे आदि का फोटो तो डाले ही नहीं?  . अब आप इस पोस्ट को आगे तभी पढ़ें, जब यह जानना चाहें कि मिथ्या प्रचार से कैसे एक पूरी पीढ़ी को मूर्ख बनाया जाता है। और अगर सत्य की खोज से आपकी भावना आहत हो जाती हो, तो क्षमा चाहूँगा, यह पोस्ट आपके लिए नहीं है। . तो हुआ यूँ कि पिछली शताब्दी में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा सिन्धु घाटी सभ्यता के विभिन्न केन्द्रों की सफल खोज के बाद ब्रिटिश पुरातात्विक ल

ये जो दलाएल पैदा हुई है, क़ुरआन और हदीस में जो लिखा होगा वही मानेंगे, सबसे पहले तो इस दलाएल की दलील क़ुरआन और हदीस से साबित

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ये जो दलाएल पैदा हुई है, क़ुरआन और हदीस में जो लिखा होगा वही मानेंगे, सबसे पहले तो इस दलाएल की दलील क़ुरआन और हदीस से साबित नहीं है। दूसरी बात ये की, क़ुरआन तर्जुमे से पढ़कर असल तफ़्सीर को छोड़ मनघडंत तफ़्सीर बना लेते हैं, और ज़ईफ़ हदीस को ऐसे ट्रीट करते हैं, मानो झूठ लिख दिया हो। न ही रावी को अहमियत देते हैं न सहबियों को और न ही हदीस लिखने वाले दीगर ओलेमानों को। ज़ईफ़ हदीस रावी की उसूल से कमज़ोर मानी जाती है, मसलन कम सहबियों ने उस हदीस को बयान किया है, किसी और दीगर सहाबी ने उसी कांटेस्ट में उससे अलग हदीस बताई हो और दूसरे सहाबी ने उसकी तसतीक़ की हो, या वो हदीस क़ुरआन से अलग बात कहती हो। लेकिन किसी भी फ़िक़ के कोई भी आलीम हत्ता की वहाबी भी ज़ईफ़ हदीस को तब तक क़ाबिल ए एहतराम और उन कामों को करना अफ़ज़ल मानते हैं, जो उन ज़ईफ़ हदीस में लिखी हुई है, जब तक उसके अगेंस्ट में कोई सही हदीस नहीं मिल जाती है। लेकिन यहां तो मसला ही अलग है, महज़ खुद को सही साबित करने के लिए, हर तरह का एहतराम लोग जैसे भूल जाते हैं, सहबियों और इमाम तिर्मिज़ी जैसे दीगर ओलेमानों को झूठा साबित करने की होड़ लगा बैठते हैं, की उन्होंने अपनी हदीस की

मुझे शाहरुख इसलिए नही पसंद कि वो एक एक्टर हैं हालांकि हमारे समय के हीरो हैं । मुझे वो इसलिए हमेशा

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मुझे शाहरुख इसलिए नही पसंद कि वो एक एक्टर हैं हालांकि हमारे समय के हीरो हैं ।   मुझे वो इसलिए हमेशा पसंद आये कि वो एक बेहतरीन इंसान रहे ,उनकी बॉयोग्राफी के कुछ अंश पढ़े और जो भी जानकारी रही उसके आधार पर वो हमेशा के लिये पसंद बने । @Amitab जी ने बहुत बेहतरीन लिखा है पढ़िये.. आज शाहरुख खान पर लोगों को जांच एजेंसियों से ज्यादा भरोसा है, शाहरुख के पिता मीर ताजमोहम्मद जब स्कूल में थे तब वो खान अब्दुल गफ्फार खान की खुदाई खिदमतगार ब्रिगेड में थे,स्वतंत्रता संग्राम में जेल गए सत्याग्रह करते थे तो लोगों ने इनके मुंह पर थूका ये यूनाइटेड इंडिया चाहते थे इसीलिए पाकिस्तान बनने के बाद ताज मुहम्मद दिल्ली चले आए,होटल से लेकर मिट्टी तेल सप्लाई के बहुत काम किए रावलपिंडी के पास के किस्सा ख्वानी गांव के थे शाहरुख के नाना इफ्तिखार अहमद हैदराबाद के संभ्रांत वर्ग के थे और केंद्र सरकार में उच्च पद पर कार्यरत थे बचपन में शाहरुख ने कई साल मैंगलोर में गुजारे जहां बंदरगाह बन रहा था और शाहरुख के नाना चीफ इंजीनियर थे लेकिन शाहरुख की मां लतीफ फातिमा को जनरल शाहनवाज़ खान ने गोद लिया था शाहनवाज़ खान आज़ाद हिंद फौज

आज कहानी विशाखापट्टनम टेस्ट में दोहरा शतक जड़ने वाले यशस्वी जायसवाल की। यशस्वी ने विशाखापट्टनम टेस्ट की पहली पारी में 290 गेंद पर 19

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आज कहानी विशाखापट्टनम टेस्ट में दोहरा शतक जड़ने वाले यशस्वी जायसवाल की। यशस्वी ने विशाखापट्टनम टेस्ट की पहली पारी में 290 गेंद पर 19 चौकों और 7 छक्कों की मदद से 209 रन बनाए। यशस्वी ने मुंबई में 5 BHK फ्लैट खरीद लिया है। बड़े भाई ने बताया कि देश की आर्थिक राजधानी में अपना घर खरीदना यशस्वी का ख्वाब था। यशस्वी की कहानी किसी परीकथा से कम नहीं रही। बड़े भाई तेजस्वी जयसवाल को लेफ्ट हैंड बैटिंग करता हुआ देखकर यशस्वी ने क्रिकेट खेलने की सोची। 7 साल की उम्र में बल्ला थाम लिया और सुरियावां, भदोही के क्रिकेट एकेडमी में पहुंच गए। माता-पिता को लगा कि इसी बहाने बच्चे का मन लगा रहेगा और उसकी फिटनेस भी बेहतर हो जाएगी। पर यशस्वी उम्मीदों से बढ़कर निकले। सिर्फ 1 साल के भीतर वह क्लब की सीनियर टीम में आ गए। सोचकर देखिए, 8 साल की उम्र में दिसंबर-जनवरी की कड़कती ठंड में यशस्वी क्लब के साथी खिलाड़ियों के साथ ट्रक की छत पर बैठकर यूपी के अलग-अलग हिस्सों में मैच खेलने जाते थे। आठवें नंबर पर बल्लेबाजी करने आते थे और लेग ब्रेक गेंदबाजी में भी हाथ आजमाते थे। हर कोई उस उम्र में ही यशस्वी की प्रतिभा देकर दंग रह जाता था

बाबर की बेटी की कहानी जिसने ठुकराए थे ऑटोमन सुल्तान के शाही फरमान :बीबीसी न्यूज़

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बाबर की बेटी की कहानी जिसने ठुकराए थे ऑटोमन सुल्तान के शाही फरमान :बीबीसी न्यूज़ ये कहानी सन 1576 की है जब हिंदुस्तान की सरज़मीं पर मुग़लिया सल्तनत का परचम लहरा रहा था और अरब दुनिया पर ऑटोमन साम्राज्य का राज था. हिंदुस्तान में अकबर शहंशाह थे तो ऑटोमन साम्राज्य का ताज़ सुल्तान मुराद अली के सिर पर था. इसी दौर में मुग़लिया सल्तनत की एक राजकुमारी ने मक्का-मदीना की अभूतपूर्व यात्रा की. मुग़लकालीन भारत में ये पहला मौका था जब कोई महिला पवित्र हज यात्रा पर गयी. हज को इस्लाम के पांच आधार स्तंभों में से एक माना जाता है. ये मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर की बेटी गुलबदन बेगम की कहानी है जिन्होंने 53 साल की उम्र में फतेहपुर सीकरी की आरामदायक दुनिया छोड़कर एक ऐसी यात्रा पर जाने का फ़ैसला किया जो अगले छह सालों तक जारी रही. गुलबदन बेगम इस यात्रा पर अकेले ही नहीं गईं बल्कि उन्होंने अपने साथ जाने वाली शाही महिलाओं के एक छोटे से समूह का नेतृत्व भी किया. लेकिन अपने आप में शानदार रही इस यात्रा से जुड़े ब्योरे रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं हैं. इतिहासकार मानते हैं कि शायद इसकी एक वजह ये रही हो कि दरबार के पुरुष

एक ऐसा क्रिकेटर जिसने अपनी कप्तानी में भारतीय टीम को अंडर-19 विश्वकप

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एक ऐसा क्रिकेटर जिसने अपनी कप्तानी में भारतीय टीम को अंडर-19 विश्वकप जिताया था वह आखिर इतना अभागा कैसे हो गया कि मात्र 28 साल की उम्र में उसे सन्यास लेना पङा? इस समय भारतीय टीम अंडर-19 विश्वकप के सेमीफाइनल में दक्षिण अफ्रीका को रौंद कर फाइनल में पहुंच चुकी है और सबसे ज्यादा चर्चे इस समय भारतीय टीम के कप्तान उदय सहारन और सचिन दास की हो रही है जिनकी शानदार पारियों की बदौलत भारत ने कठिन परिस्थिति से बाहर निकलकर फाइनल का सफर तय किया है। कप्तान उदय सहारन को एक बात हमेशा ही याद रखना होगा कि उनको उन्मुक्त चंद नही बनना है। जी हां आज हम चर्चा करने जा रहे हैं भारतीय अंडर-19 टीम के पूर्व कप्तान उन्मुक्त चंद की। उन्मुक्त चंद दिल्ली के रहने वाले थे और 2012 विश्वकप में भारतीय अंडर-19 टीम के कप्तान थे। भारतीय टीम साल 2012 में अंडर-19 विश्वकप के फाइनल में पहुंच चुकी थी। फाइनल मुकाबला भारत और आस्ट्रेलिया के बीच खेला जा रहा था। आस्ट्रेलिया ने टाॅस हारने के बाद पहले बल्लेबाजी करते हुए 225 रन बनाए थे। भारतीय टीम को जीत के लिए 226 रनों की आवश्यकता थी। उस पूरे टूर्नामेंट उन्मुक्त चंद फ्लाप चल रहे थे और 5 म

अब तो कहावत भी प्रचलित हो गयी है कि हम वह हैं जो कभी भी जेम्स फाकनर की

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अब तो कहावत भी प्रचलित हो गयी है कि हम वह हैं जो कभी भी जेम्स फाकनर की तरह गायब हो जाएंगे या फिर लोग धमकाते हुए भी सुने जा सकते हैं कि अच्छा प्रदर्शन करो नही तो टीम से जेम्स फाकनर की तरह गायब कर दिए जाओगे। आस्ट्रेलिया का एक ऐसा आलराउंडर जो वर्ष 2013 में इस सदी का सबसे महान आलराउंडर बनने की तरफ अग्रसर था मगर अचानक ही अपनी गलत आदतों की वजह से उसका पूरा कैरियर ही चौपट हो जाता है। हम बात करने जा रहे हैं जेम्स फाकनर की जो वर्ष 2013 में सबकी जुबान पर रहा करते थे।  ऊंचे लम्बे कद काठी के जेम्स फाकनर एक समय आस्ट्रेलिया के सुपरस्टार बन चुके थे। जेम्स फाकनर अपनी टीम के लिए न सिर्फ अपनी गेंदबाजी से विकेट निकालते थे बल्कि महत्वपूर्ण मौकों पर अपने बल्ले से कई मैच विनिंग पारियां भी खेला करते थे। जेम्स फाकनर ने केवल 1 टेस्ट मैच खेला जिसमे उन्होने 6 विकेट लेने के अलावा 45 रन भी बनाए थे। इसके अलावा फाकनर ने 69 एकदिवसीय मैचों में 34.43 की औसत से 1032 रन बनाए तथा 96 विकेट भी लिए हैं। फाकनर ने 24 T20i में 36 विकेट लिए हैं तथा 159 रन भी बनाए।   दुनिया में सभी भले ही जेम्स फाकनर को भूल जाएं लेकिन ईशान्त शर्