"ये ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट है, यहां दूसरा मौका किसी को भी नहीं मिलता"। जिस बोर्ड का एक हाई ऑफिशियल अपने प्लेयर्स के चोटिल होने के बाद टीम में वापस नहीं लिए जाने पर ये बोलता हो। उस बोर्ड और मैनेजमेंट

"ये ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट है, यहां दूसरा मौका किसी को भी नहीं मिलता"। जिस बोर्ड का एक हाई ऑफिशियल अपने प्लेयर्स के चोटिल होने के बाद टीम में वापस नहीं लिए जाने पर ये बोलता हो। उस बोर्ड और मैनेजमेंट से एक प्लेयर को बार-बार चांस देने की कोई ख़ास उम्मीद रह नहीं जाती है। मगर, जब प्लेयर में टैलेंट और ताक़त बेहिसाब हो। तो, ऑस्ट्रेलिया जैसे सख़्त बोर्ड को भी दिल नर्म करना पड़ता है। बिल्कुल वैसे ही, जैसे उन्होंने वर्ल्ड क्रिकेट के 'हल्क' यानी मार्कस स्टोइनिस के केस में किया। वो मार्कस स्टोइनिस जिन्हें कुछ दिन पहले एक ताक़तवर, मगर नासमझ खिलाड़ी कहा जाता था। वो मार्कस स्टोइनिस जिन्हें ऑस्ट्रेलिया ने अपनी फ्यूचर स्कीम से बाहर कर दिया था। वो मार्कस स्टोइनिस जिनका कैरियर सिर्फ़ फ्रैंचाइज़ क्रिकेट में दिख रहा था। मगर, उन्होंने हार नहीं मानी। अपने आप को टीम की ज़रूरत के हिसाब से ढालते हुए ख़ुद को सँवारा और आज वो ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट की रीढ़ बन गए हैं। वो रीढ़ जिसके बिना ऑस्ट्रेलियाई टीम का हाल, बेहाल होने में वक़्त नहीं लगता है। तो चलिये! इस तरह का औरा रखने वाले खिलाड़ी के बारे में डिटेल में जानते हैं नारद टी.वी. की सीरीज़ 'हीरोज़ ऑफ़ वर्ल्ड क्रिकेट' के पहले एपिसोड में और आपको स्टोइनिस का वो सफ़र क़रीब से बताते हैं। जो जितना संघर्षों से भरा है, उतना ही रोमांचक और मज़ेदार भी है।

दोस्तों! मार्कस स्टोइनिस के सफ़र की शुरुआत उनके जन्म के साथ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के मशहूर शहर पर्थ में 16 अगस्त 1989 को होती है। जहाँ एक रियल स्टेट डीलर पिता क्रिस स्टोइनिस के घर में मार्कस ने पहली बार खुली आंखों से दुनिया देखी है। वो दुनिया जो उनके पिता ने बड़ी मेहनत से सजाई थी। अपने बचपन के दिनों में मार्कस को पिता के साथ डील्स में जाना अच्छा लगता था और वहीं से मार्कस स्टोइनिस ने ठाना कि उन्हें आर्किटेक्ट बनना है। लेकिन, मार्कस की सिस्टर नताशा और माँ ने उस वक़्त स्टोइनिस का विज़न क्लियर करने में मदद की और उन्हें स्कूल में पढ़ाई पर फ़ोकस करने की हिदायत दी। लेकिन, स्टोइनिस कहां पढ़ाई पर फ़ोकस करने वाले थे। स्कूल में उन्हें क्रिकेट पसंद आ गया और ऐसा पसंद आया कि उन्होंने अकैडमी जॉइन कर ली। क्योंकि, स्टोइनिस ग्रीक लिगेसी रखते हैं। इसलिए, वो शुरू से ही स्ट्रॉन्ग थे। यही वजह है कि स्कूल के दिनों से ही स्टोइनिस अपने साथ दोस्तों से आगे रहे और हमेशा टॉप के टीनेज क्रिकेटर काउंट किये गये। जिसका नतीजा ये रहा कि वो देखते ही देखते ऑस्ट्रेलिया की अंडर-17 और अंडर-19 टीम में आ गये। उन्होंने इस दौरान ही 2008 का अंडर-19 वर्ल्ड कप भी खेला। स्टोइनिस ने उस वर्ल्ड कप में कुछ ख़ास नहीं किया। मगर, उनका टैलेंट देखते हुए वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के सिलेक्टर्स ने सिर्फ़ 19 साल के स्टोइनिस को 2008-09 सीज़न में लिस्ट-ए और फ़र्स्ट क्लास टीम में शामिल किया। इस दौरान ही स्टोइनिस को फ़ोर्ड रेंजर कप और शेफ़ील्ड शील्ड में क्वीन्सलैंड के सामने डेब्यू करने का मौका मिला। उस वक़्त 19 साल के लड़के के लिए यही बड़ी बात थी कि इस छोटी सी उम्र में वो बड़े-बड़े लीजेंड्स के साथ ड्रेसिंग रूम शेयर कर रहा है। लेकिन, कुछ वक़्त बाद स्टोइनिस की ये ख़ुशी उड़न-छू हो गई। क्योंकि, अगले दो सीज़न समेत कुल तीन सीज़न में स्टोइनिस को वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया की तरफ़ से ग्राउंड पर उतरने के दर्जन भर मौके भी नहीं मिले थे। इस दौरान ही ख़बर आई कि वारियर्स यानी वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया ने उन्हें अपने सेंट्रल कांट्रेक्ट से भी निकाल दिया है। ये वो वक़्त था जब स्टोइनिस हद से ज़्यादा परेशान थे। उन्होंने ख़ुद एक इंटरव्यू में बताया था कि "उस वक़्त मुझे बहुत बुरे ख़्याल आते थे। मैं एक 23 साल का नाकारा लड़का बनकर रह गया था। जिसे आगे का कुछ अता-पता नहीं था"।

मगर दोस्तों! जिस तरह तूफ़ान से पहले बहुत ज़्यादा शांति होती है। उस तरह ज़िन्दगी में कुछ बड़ा होने से पहले बहुत उथल-पुथल भी होती है। बस ज़रूरत होती है, उस उथल-पुथल के बीच किसी एक सही रास्ते पर चल पड़ने की। यही हुआ उस मुश्किल वक़्त में स्टोइनिस के साथ। जब उनकेके फ़ॉर्मर पर्थ टीम मेट थियो डोरोपोल्स ने वारियर्स की साइड छोड़कर नॉर्थकोट के लिए किस्मत आजमाने को कहा। स्टोइनिस को थियो की ये बात समझ आ गई और उन्होंने नॉर्थकोट के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन किया। फिर क्या था! नॉर्थकोट में जाते ही स्टोइनिस की किस्मत पलट गई। मगर, यहाँ एक छुपी हुई बात है, जो बहुत से क्रिकेट फ़ैन्स को नहीं पता। दरअसल सबको लगता है कि नॉर्थकोट में स्टोइनिस का नसीब पलटा और उन्होंने मिले मौकों का ख़ूब फ़ायदा उठाया। लेकिन, असल तस्वीर कुछ और है, जो नॉर्थकोट के उस टाइम के प्रेज़िडेंट मार्क सन्डबर्ग बताते है। सन्डबर्ग ने एक बार कहा था "वो जब मेरे पास मौके की तलाश में आया तो बहुत बेचैन था। वो एक अच्छा क्रिकेटर था, ये हम जानते थे। मगर, मेंटली वो उस वक़्त बहुत डिस्टर्ब था। इसलिए, हमने उसे ग्राउंड पर मौका देने से पहले वक़्त बिताया। मैं और कोच ने उसके मेंटल ब्लॉक पर काम करने में मदद की। जिसके बाद उस मज़बूत इरादों वाले खिलाड़ी को कुछ दिन लगे ये रियलाइज़ करने में कि अब उसे ऑस्ट्रेलिया का कोई भी गेंदबाज़ आउट नहीं कर सकता है"। सन्डबर्ग की कही गई ये बातें प्रिजेंट स्टोइनिस को देखकर काल्पनिक लगती हैं। मगर, 2012 के दौरान मेंटली डिस्टर्ब होने की बात को ख़ुद स्टोइनिस भी मानते हैं। लेकिन, जब वो उस दौर से बाहर आये तो क्या हुआ, वो और भी दिलचस्प है। क्योंकि, स्टोइनिस ने फ़ॉर्म में आते ही बौलर्स पर अपने पिछले तीन सालों की सारी भड़ास निकाल दी और उस सीज़न में नॉर्थकोट के लिए 100 की एवरेज से रन बनाए। जबकि, स्टोइनिस डोमेस्टिक क्रिकेट में हैटट्रिक तो पहले ही ले चुके है। इस सबका नतीजा ये रहा कि स्टोइनिस विक्टोरिया टीम के सिलेक्टर्स को पसंद आ गए। उन्होंने स्टोइनिस को विक्टोरिया टीम में शामिल कर लिया और स्टोइनिस ने भी विक्टोरिया के सिलेक्टर्स को निराश नहीं किया। स्टोइनिस ने उस समर अपने रियल गेम की झलक दिखाते हुए शेफ़ील्ड शील्ड के 10 मैचों में 49.06 की शानदार औसत से 785 रन बनाए और तस्मानिया के विरुद्ध अपनी 170 रनो की ब्रेकथ्रू इनिंग से नेशनल न्यज़पेपर्स में आ गए। इस दौरान ही स्टोइनिस ने ब्रिस्बेन जैसे बड़े ग्राउंड में एक वार्म आप मैच के दौरान नेशनल परफॉर्मेंस स्क्वाड से खेलते हुए नेशनल इंडिजिनयस स्क्वाड के गेंदबाज़ ब्रेंडन स्मिथ के ओवर की सभी गेंदों पर 6 छक्के लगाने का रिकॉर्ड अपने नाम किया। स्टोइनिस के इस शानदार और दमदार खेल के बाद सिलेक्टर्स ने उन्हें बिना इंतज़ार कराये 2015 की आख़िर में ऑस्ट्रेलियाई इंटरनेशनल टीम के लिए मैडन कॉल दी। यूँ तो जब किसी खिलाड़ी को पहली बार नेशन टीम में शामिल किया जाता है, उसके लिए वो लम्हा वैसे ही यादगार होता है। मगर, स्टोइनिस के लिए वो लम्हा और भी यादगार इसलिये था। क्योंकि, उस वक़्त वो जेल में थे। दरअसल हुआ ये था कि जिस दिन इंग्लैंड के विरुद्ध लिमिटेड ओवर्स के लिए स्क्वाड एनाउंस हुई। उस दिन ही नो पार्किंग में खड़ी होने के चलते उनकी कार पुलिस वाले टो करके ले गए थे। स्टोइनिस वो कार छुड़ाने गए थे और तब ही उन्हें वो बड़ी खुशखबरी मिली, जिसका इंतज़ार उन्हें कई सालों से था। इसके बाद जो हुआ वो आपके सामने है। स्टोइनिस ने मिले मौके का ज़बर्दस्त फ़ायदा उठाया और आज एक ग्रेट ऑल राउंडर बनने की तरफ़ क़दम बढ़ा दिए हैं।

दोस्तों! आज की डेट में 54 वनडे मैचों में 1271 और 50 टी-ट्वेंटी मैचों में 778 रन बनाने वाले 6 फ़ुट 1 इंच लम्बे-चौड़े स्टोइनिस से बौलर्स थर-थर काँपते हैं। प्रिजेंट में उनका रुतबा ऐसा है कि बौलर्स को समझ ही नहीं आता है कहा गेंदबाज़ी करें। वो फ़ुल लेंथ की बॉल को लेग पर और बाउंसर बॉल को सामने की मारकर असंभव से छक्के मार देते हैं। उनके सामने स्पिनर्स के पास बहुत कम मौके होते हैं बचने के। क्योंकि, स्टोइनिस का मिस टाइम स्ट्रोक भी 80 मीटर दूर तक जाट है। स्टोइनिस की इस ताक़त और फिजीक को देखते हुए ही उन्हें वर्ल्ड क्रिकेट का 'हल्क' कहा जाटा है। मगर, स्टोइनिस को ये शौहरत और ये रुतबा इतनी आसानी से नहीं मिला है। क्योंकि, हमने आपको उनके 2015 के जिस टूर में सिलेक्ट होने की कहानी ऊपर बताई। उस टूर पर उन्हें सिर्फ़ 1 वनडे और 1 ही टी-ट्वेंटी मैच खेलने का मौका मिला था। जिसके बाद अगले इंटरनेशनल कॉल के लिए उन्हें क़रीब 2 साल का इंतज़ार करना पड़ा था। मगर, उन्हें जैसे ही 2017 में मौका मिला। व्व भूखे शेर की तरह उस पर टूट पड़े और उन्होंने अपने दूसरे वनडे मैच में ही न्यूज़ीलैंड की बौलिंग लाइन अप के आगे नम्बर 7 पर आकर रिकॉर्डतोड़ नाबाद 146 रन बनाते हुए वर्ल्ड लेवल पर अपने आने का ऐलान कर दिया। हालांकि, उन्हें तब भी उस तरह लगातार मौके नहीं मिले, जिसकी सबको उम्मीद थी और यही वो वक़्त था जब स्टोइनिस ने अपनी ज़िंदगी का दूसरा सबसे मुश्किल दौर देखा। क्योंकि, इस वक़्त स्टोइनिस के पिता भी कैंसर के चलते गुज़र गए थे और वो स्क्वाड में होते हुए भी लास्ट इलेवन में नहीं आ पा रहे थे। सीधे-सीधे कहें तो स्टोइनिस उस ववत हार मानने वाले थे। मगर, तभी उन्हें आईपीएल के दौरान विराट कोहली के बारे में जानने को मिला। उन्हें पता चला कि सिर्फ़ 19 साल की उम्र में कोहली ने कैसे अपनी पिता की म्रत्यु के अगले दिन ही ग्राउंड पर पहुँचकर रणजी की ऑल टाइम ग्रेट इनिंग में से एक खेली थी और कैसे कोहली हर मुश्किल वक़्त से डील करते हैं। स्टोइनिस ने एक इंटरव्यू में ख़ुद कहा कि "उस वक़्त कोहली ने मुझे बहुत इंस्पायर किया, टूटने नहीं दिया और फिर एक दिन वो मुश्किल वक़्त भी गुज़र गया"। संयोग से अगले साल स्टोइनिस आईपीएल में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के लिए खेले। वहाँ से स्टोइनिस की आईपीएल में एक अलग इमेज बन गई। जिसमें उन्होंने अगले साल दिल्ली कैपिटल्स और फिर इस साल लखनऊ सुपर जाइंट्स के लिए खेलते हुए चार चांद लगा दिए। आज आलम ये है कि मार्कस स्टोइनिस आईपीएल ही नहीं बिग बैश और काउंटी क्रिकेट में भी टीम्स की पहली पसंद हैं। जबकि, इंटरनेशनल क्रिकेट में उनके जलवे तो आये दिन देखने को मिलते ही रहते हैं। जैसे इस टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप में ही उन्होंने श्रीलंका के सामने 18 गेंदो में आतिशी 59 रन बनाए थे। हालांकि, इन सब करिश्माई परफॉर्मेंस और बेहिसाब शौहरत के बावजूद स्टोइनिस को अब भी एक चीज़ की शिकायत है कि वो अभी तक ऑस्ट्रेलिया के लिए टेस्ट क्रिकेट नहीं खेल पाये हैं। मगर, हार ना मानने वाले स्टोइनिस को लगता है कि वो अब भी टेस्ट डेब्यू कर जायेंगे। इस उम्मीद के साथ कि 33 साल की उम्र में स्टोइनिस का ये हौसला यूँ ही बना रहे और वो वर्ल्ड क्रिकेट समेत अपने फैन्स को कई यादगार पारी देते रहें, हम स्टोइनिस की ज़िंदगी का यादगार सफ़र यहीं रोकते हैं। सतह ही उम्मीद करते हैं कि कुछ सालों बाद स्टोइनिस पर दूसरा एपिसोड लेकर हम फिर आयें। क्योंकि, स्टोइनिस जैसे ख़ुश मिज़ाज और जिंदादिल खिलाड़ी रोज़-रोज़ पैदा नहीं होते हैं। वो आज भी अपनी ज़्यादा ऑलिव ऑयल लगाने की आदत पर 'ऑयल रिग' कहे जाने का बुरा नहीं मानते हैं। वो आज भी फ़ैन्स के उन्हें हल्क कहने पर मुस्कुराते हैं। वो आज भी अपने पिता के ख़्वाब को पूरा करने के लिए लड़ रहे हैं।

तो दोस्तों! वर्ल्ड क्रिकेट के हल्क मार्कस स्टोइनिस पर बेस ये एपिसोड आपको कैसा लगा ? हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। साथ ही इस तरह के प्लेयर्स के सजेशन्स भी आप देते रहियेगा। क्योंकि, स्टोइनिस जैसे प्लेयर्स पर लिखने में हमें भी बहुत मज़ा आता है। 
yes
धन्यवाद!
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