शिक्षा, BYJUS, 30,000 करोड़ से शून्य नेट वर्थभारत या यूं कहें विश्व के सबसे बड़े एड टेक कंपनी #byjus #education #school

शिक्षा, BYJUS, 30,000 करोड़ से शून्य नेट वर्थ

भारत या यूं कहें विश्व के सबसे बड़े एड टेक कंपनी ( ऑनलाइन और स्मार्ट शिक्षा) अर्श से फर्श पर गिर गई। 
लियोनेल मैसी को ग्लोबल एंबेसडर, फीफा की प्रायोजक, शाहरुख विराट से विज्ञापन करवाने वाली , आकाश को खरीदने वाली, अम्बानियों का निवेश जीतने वाली, 30 हजार करोड़ तक पहुंचने वाली कंपनी की नेट वर्थ 0 घोषित हो गई। 

आज कईदूसरे संस्थान वही गलती कर रहे हैं जो byjus ने की। 
जिधर देखो, दौड़ चल रही है, वीडियो बनाओ, रील बनाओ, पेरेंट्स को इंप्रेस करो, मार्केटिंग करो। 
टीचर भी बच्चों को भूल गए हैं। अब वो शिक्षक नहीं कॉन्टेंट क्रीयेटर या इंफ्लूएंसर बन कर रह गए है । 
अब वो क्लास में ये नहीं देखते कि किस बच्चे के विकास की क्या गति है, वो अब देखते हैं कि कौन सा शॉट रील या वीडियो में अच्छा लगेगा। कौन सी एक्टिविटी वायरल होगी। 
क्लास रूम आउटपुट पर अब कोई चर्चा नहीं हो रही। ये सब शॉर्ट कट इतना ही सही होता तो नासा में अमेरिकी या फ्रेंच वैज्ञानिक ज्यादा होते, ना कि हमारे यहां से गणित विज्ञान पढ़े। आज दुनिया में जितने भी ग्लोबल भारतीय CEO हम गिन गिन इतराते हैं , ये ना तो CCE से बने, ना NEP से, ना ओनलाइन से ना कंपटीशन से। ये सब आज से 20–30 साल पहले परंपरागत स्कूल शिक्षा ले कर गए। 

12 सालों के अंदर बन के खत्म होना, ड्रीम यूनिकॉर्न का एक दम से जमीन पर आकर गिरना अपने साथ एक सबक लिए हैं। सबक है HUMAN QUOTIENT. 
शिक्षा एक मानवीय तत्व है। प्रशिक्षण एक मशीनी तत्व है। 
बच्चों को पढ़ाना शिक्षकों का काम है। बच्चों को ट्रेन करना शिक्षकों का नहीं ट्रेनरों का काम है। 
आप ट्रेनिंग को आक्रामक कर सकते हैं, शिक्षण को नहीं। शिक्षा को सहज और बाल सुलभ हो रखना होगा। 
आप ट्रेनिंग की मार्केटिंग कर सकते हैं, शिक्षा तो अपनी गति से परिणाम देगी जब बच्चा बड़ा होगा। 

BYJUS ने यही गलत किया। अति आक्रामकता, समर्पित भावनात्मक टीम का अभाव, अति प्रोफेशनलिज्म, अपने ट्रेनरों पर अत्यधिक दबाव, शिक्षकों को शिक्षक ना समझकर कॉन्टेंट प्रोवाइडर समझना, बच्चों को विद्यार्थी न समझकर मात्र क्लाइंट समझना, वित्तीय कुप्रबंधन, अति फैलाव, अति मार्केटिंग, अति नाटकीयता, प्रबंधेकीय लड़ाई, ED से झगड़ा, और भी न जाने क्या क्या। । HUMAN QUOTIENT यानि मानवीय पहलू को बिलकुल नजर अंदाज करना। 

वीडियो या AI आपके टॉपिक को आकर्षक बना सकते हैं पर क्लास में बैठे 40 बच्चों में से किसके लिए वीडियो ने स्लो होना है, किसके लिए भाषा बदलनी है, किसके लिए टोन बदलनी है, किस से अगले दिन फिर से पूछना है, किसे बोर होता देख पूरी क्लास को हंसा कर जगाना है, किसे उदास देख कर क्लास के बाद बात करने बुलाना है, ये शिक्षक ही कर सकता है। वीडीयो, रील, ग्राफिक्स या कॉन्टेंट नहीं। 

लेक्चर पे लेक्चर, पैसों के लिए ट्रेनर्स का ब्रेक ना लेना, मानसिक थकान के बावजूद अवास्तविक लाइव वीडियो, ये अस्थाई रूप से प्रभावी हो सकते हैं, पर अंततः हाल वही होगा जो बायजुस का हुआ।
तय अभिभावकों ने भी करना है। अपने बच्चों को शिक्षा देनी है या ट्रेनिंग। अपने बच्चे से कंपटीशन पास करवा कर केस स्टडी बनवाना है या उसे एक शिक्षित मनुष्य के रूप में विकसित करना है।

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