नए इतिहास के दौर में अधिकतर लोगों को लगता है की मुगल ही भारत में पहले विदेशी आक्रमणकारी थे, जबकि इसका सच्चाई से दूर तक कोई संबंध नहीं,

नए इतिहास के दौर में अधिकतर लोगों को लगता है की मुगल ही भारत में पहले विदेशी आक्रमणकारी थे, जबकि इसका सच्चाई से दूर तक कोई संबंध नहीं, भारत में मिथकीय रूप में विदेशीयो के कदम 2000 ईसा पूर्व आर्यों के रूप में भारत में पड़ चुके थे । 
ऐतिहासिक तौर पर पहला विदेशी शासन 356 ईसा पूर्व यूनानियों का था, ये तबकी बात है जब अफगानिस्तान भारत का हिस्सा हुआ करता था, और यूनानियों ने सिर्फ वहीं पर शासन किया ।
यूनानियों के बाद -
शक
कुषाण
हूण
और फिर 711 में मुस्लिम आक्रमणकारी के तौर पर अरबी ईरानी आए ।
फिर तुर्क
और फिर गौर तुर्क आक्रमणकारी भारत में आए, ये आए और देश के भिन्न भिन्न हिस्सो को जीतकर वहां अपना शासन चलाने लगे ।

लेकिन इन सभी विदेशी आक्रमणकारियो ने भारत को विदेश समझकर ही अपना शासन चलाया, यहां के निवासियों पर उनका जरा भी विश्वास नहीं था, वो भारतवासियों को सिर्फ पराजित गुलाम के तौर पर देखते थे। इसलिए शासन में यहां के मूल निवासियों को कोई जगह नहीं दी गई ।

लेकिन फिर एक क्रांतिकारी और उदारवादी सुल्तान दिल्ली की गद्दी पर बैठा, जिसका नाम था -"अलाउद्दीन ख़िलजी" उस सुल्तान ने पहली बार महसूस किया की, शासन में भारत के लोगो की भी भूमिका होनी चाहिए, तो हजार साल के इतिहास को ध्वस्त करने का क्रांतिकारी कदम उठाते हुए उस सुल्तान ने अपने प्रशासन और सेना में भारतीय लोगो की नियुक्ति शुरू की ।
ख़िलजी के दिल्ली का सुल्तान बनने के साथ ही हिंदुस्तानी लोगों को भी शासन में शामिल करने का सिलसिला शुरू हुआ. इसे "ख़िलजी क्रांति" भी कहा जाता है । उसने अपना प्रधान सेनापति भी, अपने एक खरीदे हुए गुलाम "मेहतर जाति" के व्यक्ति को बनाया, हालांकि बाद में उस मेहतर ने अपना धर्म परिवर्तन करके अपना नाम मलिक काफूर रख लिया था, और खिलजी की मृत्यु के बाद वो एक महीने के लिए दिल्ली की गद्दी पर बैठा ।

सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी अपने दौर के बहुत सांस्कृतिक व्यक्ति थे जिन्होंने ऐसे क़दम उठाए जिनका असर आज भी दिखता है." भारत के सबसे प्रबुद्ध बादशाहों में उनका नाम आता है ।"जिस गंगा-जमनी तहज़ीब के लिए हिंदुस्तान मशहूर है और जिसे बाद में अकबर ने आगे बढ़ाया उसकी शुरुआत अलाउद्दीन ख़िलजी ने ही की थी ।"

खैर बात करते हैं, खिलजी के सुधारवादी कदमों की -

मूल्य नियंत्रण नीति -
मूल्य नियंत्रण की अलाउद्दीन ख़िलजी की नीति को उस दौर का चमत्कार कहा जा सकता है, अलाउद्दीन ख़िलजी ने न सिर्फ़ बाज़ार को नियंत्रित किया था बल्कि चीज़ों के दाम भी तय कर दिए थे."
ख़िलजी ने दिल्ली में बहुखंडीय बाज़ार संरचना स्थापित की थी जिसमें अलग-अलग चीज़ों के लिए अलग-अलग बाज़ार थे ।
उदाहरण के तौर पर खाद्यानों के लिए अलग बाज़ार था, कपड़े और तेल और घी जैसे महंगे सामानों के लिए अलग बाज़ार था और मवेशियों का अलग बाज़ार था ।
गेंहूं, चावल, ज्वार आदि के दाम भी निश्चित कर दिए थे. तय दाम से अधिक पर बेचने पर सख़्त कार्रवाई की जाती थी ।

शाही भंडार
कालाबाज़ारी रोकने के लिए खिलजी ने शाही भंडार शुरू किए थे. इनमें बड़ी मात्रा में खाद्यान रखे जाते थे और यहीं से डीलरों को मुहैया कराए जाते थे ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि बाज़ार में किसी चीज़ की कमी न हो और काला बाज़ारी न की जा सके ।
किसी भी किसान, व्यापारी या डीलर को तय सीमा से अधिक खाद्यान रखने की अनुमति नहीं थी और न ही तय दाम से अधिक पर बेचने की अनुमति थी, ख़िलजी जमाख़ोरों के ख़िलाफ़ बेहद सख़्त कार्रवाई करते थे । किसानों को फसल का उचित मूल्य देकर उनसे खाद्यान खरीदकर सीधे शाही भंडार में पहुंचाया जाता था, जिसे आज MSP कहते हैं।

कृषि सुधार
खिलजी के सबसे बड़े कामों में से एक कृषि सुधार थे जो उन्होंने किए थे । "शासन में स्थानीय लोगों को जगह देने का असर ये हुआ कि नीतियां भी स्थानीय लोगों को ध्यान में रखकर तय की जाने लगीं."
खिलजी ने ज़मीनों का सर्वेक्षण करवाकर उन्हें खलीसा व्यवस्था में लिया था. 50 फ़ीसदी उपज लगान में ली जाती थी. इसके अलावा कोई कर नहीं लिया जाता था । खिलजी ने सरकार और ग्रामीणों के बीच में आने वाले चौधरियों और मुक़द्दमों के अधिकार भी सीमित कर दिए गए थे या यूं कहें कि बिचौलियों को पूरी तरह हटा दिया था । जिससे गांव सरकार के और करीब आ गए ।
.....
खिलजी की सुधारवादी नीतियां उनको भारत का सबसे महान सुल्तान बनाती है, इनपर पूरी चर्चा के लिए ये पोस्ट भी छोटी रहेगी, तो आगे...  

इसके अंत में एक और बात, जो खिलजी के वास्तविक पहलू और व्यक्तित्व को दर्शाती है। जब खिलजी ने गैर मुस्लिमो को शासन में बड़े पद देना शुरू किया, तब सुल्तान खिलजी ने कहा था -
'मेरे राज्य के हित में जो भी होता है मैं वो करता हूं मैं शरीयत की परवाह नहीं करता.' ये बयान अलाउद्दीन खिलजी ने उस वक्त दिया था जब क़ाज़ी मुगसुद्दीन ने कहा था कि सुल्तान आप शरीयत के नियमों का पालन नहीं करते ।

लेकिन एक दरबारी कवि की कपोल कल्पित कल्पना ने उस दौर में हुई एक साम्राज्यवादी लड़ाई के आधार पर इस महान सुल्तान को एक क्रूर, बर्बर, और हवशखोर राक्षस बनाकर रख दिया ।
कभी कुतुबमीनार जाओ, तो इस खंडहर हो चुके मकबरे में लेटे सुल्तान से बात करने की कोशिश करना, जिसने न सिर्फ आज के भारत को भारत बनाया बल्कि क्रूर मंगोलो से देश की रक्षा भी की ।

~Girraj Ved

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