अमरीका का इज़राइल को अंध समर्थन" पार्ट 1

अगर आपके पास वक्त है तो ही इस पोस्ट को पढ़िए क्योंकि पोस्ट काफी लंबी है,,

"अमरीका का इज़राइल को अंध समर्थन" पार्ट 1

आप लोगों ने बाईबल का नाम सुना होगा और बाईबल क्या है ये भी आप लोग जानते होंगे,,
लेकिन जो नहीं जानते उनके लिए ये मुख्तसर सी पोस्ट है।
बाईबल आमतौर पर उन किताबों के संयोग को कहते हैं जिनपर यहूदी और इसाई मिलकर ईमान रखते हैं कि इनमें जो कुछ भी लिखा है वो ईश्वर की तरफ़ से है।

बाईबल को दो भागों में बांटा गया है एक भाग ओल्ड टेस्टामेंट कहलाता है जिसमें कुल 39 किताबें हैं जिसको ईसाई और यहूदी दोनों मानते हैं जबकि दूसरा हिस्सा न्यू टेस्टामेंट है जिसमें 27 किताबें शामिल हैं लेकिन इसको सिर्फ़ ईसाई ही मानते हैं इसको यहूदी नहीं मानते बल्कि इसपर बदतरीन इल्ज़ाम लगाते हैं।

ओल्ड टेस्टामेंट की जो 39 किताबें हैं जिनपर ईसाई और यहूदी दोनों का ईमान है उसको 5 भागों में बांटा गया है।
1 कानून 
2 हिस्ट्री
3 गीत,संगीत,
4 ख़ास पैगंबर
5 आम पैगम्बर।

ये ओल्ड टेस्टामेंट की जो कानून की किताब है इसको फिर 5 भागों में बांट कर अलग अलग किताबी शक्ल दी गई है।
नंबर 1 है बुक ऑफ़ जेनेसिस 
2 बुक ऑफ़ नंबर्स 
3 बुक ऑफ़ एक्सोडस 
4 बुक ऑफ़ ड्यूट्रोनॉमी 
5 बुक ऑफ़ लेविटिकस 

और यही पांचों किताबें ही पिछले 300 सालों से जुडिओ-क्रिश्चियानिटी के गठजोड़ की सबसे मज़बूत कड़ी बनी हुई हैं।

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"अमरीका का इज़राइल को अंध समर्थन" पार्ट 2

पिछली पोस्ट में मैंने बाईबल के बारे में मुख्तसर सा लिखा था जिसे आप लोगों ने पढ़ा था जिसमें अंत में मैंने लिखा था कि जूडियो-क्रिश्चियनिटी गठजोड़ को मजबूती देने में ओल्ड टेस्टामेंट की कानून वाले चैप्टर की वो 5 किताबें सबसे अहम रोल अदा करती हैं।

कुछ साल पहले मैंने अश्कनाज़ी यहूदियों के बारे में 2 पोस्ट लिखी थीं जिसमें मैंने बताया था कि कैसे कैस्पियन सागर और काला सागर के अतराफ में आबाद एक कबीला जो कि मुशरिक था लेकिन मुस्लिम और ईसाइयों की राईवलरी की वजह से वो यहूदी बन गए और फिर कैसे उस क्षेत्र से निकल कर पोलैंड होते हुए जर्मनी में तरक्की करी और फिर जर्मनी से ब्रिटेन और फिर ब्रिटेन से अमरीका कैसे शिफ्ट हुए और मौजूदा वर्ल्ड ऑर्डर के आर्थिक मोर्चे को लीड करने वाले बने। उस पोस्ट में मैंने लिखा था कि जब जर्मनी में प्रोटेस्टेंट धर्म का उदय हुआ और मार्टिन लूथर का प्रोटेस्टेंट ईसाइयत का कॉन्सेप्ट कैसे यहूदी के खिलाफ़ था जिसकी वजह से यहूदियों का एक ग्रुप जिसमें हर तरह के लोग शामिल थे वो कैसे ब्रिटेन पहुंच गए।

मार्टिन लूथर ने 1516 या शायद 1517 ईसवी में कैथोलिज्म से बगावत कर के जर्मनी में एक नए फिरके की इजाद की और यहूदियों से नफ़रत उनकी घुट्टी में थी ही जिसकी वजह से यहूदी इंग्लैंड पहुंचे लेकिन उसी दौरान इंग्लैंड में भी पादरियों ने कैथोलिक चर्च के खिलाफ बगावत कर के प्रोटेस्टेंट बन गए और कानूनी तौर पर 1534 में इंग्लैंड का ऑफिशियल धर्म डिक्लेयर कर दिया गया,,

लेकिन यहां इंग्लैंड में उनका वो पर्सिक्यूशन वाला मामला नहीं था जो जर्मनी में था जिससे ये पैसे वाली क़ौम इंग्लैंड में तरक्की करती गई और धीरे धीरे ईसाइयों में अपनी पकड़ बनाने लगी।

एंग्लो प्रोटेस्टेंट ईसाई जो कि ओल्ड टेस्टामेंट भी उसी तरह पढ़ने लगे जैसे यहूदी पढ़ रहे थे तो उनके अंदर धीरे धीरे यहूदियों से सहानुभूति पैदा होने लगी और फिर यही सहानुभूति आगे चलकर एक ईसाई आलिम थॉमस ब्राइटमैन जो कि बाइबल के हिसाब से कयामत से पहले होने वाले हालातों का गहरा इल्म रखता था उसको एक किताब लिखने पर मजबूर कर दिया जिसका नाम था "Shall they return to Jerusalem again?"

थॉमस ब्राइटमैन पहला एंग्लो प्रोटेस्टेंट ईसाई आलिम था जिसने जूडियो- क्रिश्चियानिटी की नींव रखी।

ये वक्त था 1615 ईसवी और इस किताब में इस बात की वकालत की गई थी कि यहूदियों को उनकी मुकद्दस ज़मीन पर फिर से बसाना चाहिए।

फिर इसी किताब को बेस बना कर आगे चलकर एंग्लो प्रोटेस्टेंट ईसाई आलिमों ने पोस्टमिलेनियलिज्म की थ्योरी गढ़ी जो न्यू टेस्टामेंट के चैप्टर बुक ऑफ़ रिवोल्यूशन से डायरेक्ट संबंध दिखा कर सेकंड कमिंग ऑफ़ जीसस का कॉन्सेप्ट पेश किया।

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"अमरीका का इज़राइल को अंध समर्थन" पार्ट 3

पिछली पोस्ट के आखिर में मैंने ज़िक्र किया था एंग्लो प्रोटेस्टेंट ईसाई आलिम थॉमस ब्राइटमैन द्वारा 1615 ईसवी में लिखी गई किताब "Shall They Return to Jerusalem Again" का जिसमें यहूदियों को उनकी मुकद्दस ज़मीन पर बसने की वकालत की गई थी,,, 

इसके बाद कुछ दूसरे आलिमों ने इसी किताब को बेस बनाकर पोस्टमिलेनियलिज़्म की थियोरी गढ़ी जिसमें ईसा अलैहिस्सलाम की दुबारा आमद को लेकर न्यू टेस्टामेंट के बुक ऑफ़ रेवेलेशन वाले चैप्टर से यहूदियों को येरूशलम में बसाने की ईसाईयों की जिम्मेदारी पर बल दिया गया।

ये सारे एफर्ट्स सिर्फ़ एंग्लो प्रोटेस्टेंट ईसाई आलिम ही कर रहे थे इसमें कैथोलिक चर्च या आर्थोडॉक्स ईसाई से कुछ लेना देना नहीं था,,, 
एक से बढ़ कर एक आलिम यहूदियों के हक़ में किताबें लिख रहे थे लेकिन सबसे बड़ा शिफ्ट तब आया जब जॉन नेल्सन डार्बी नामक आलिम ने 1830 या उसके आसपास डिस्पेंसेशनलिज्म की थियरी पेश की जिसमें ओल्ड टेस्टामेंट का हवाला देते हुए बताया गया कि ईसा अलैहिस्सलाम की दुबारा आमद उस वक्त तक नहीं हो सकती जब तक यहुदियों को येरूशलम में दुबारा बसाया नहीं जाता,,,,

 फिर इस थ्योरी को और ज़्यादा मारक बना कर पेश किया गया कि जो भी यहूदियों को उनकी सरजमीन पर वापस बसाने में मदद करेगा ईश्वर उसकी मदद करेगा और जो इसमें रुकावट डालेगा उसको ईश्वर बर्बाद कर देगा और हवाला दिया गया फिर ओल्ड टेस्टामेंट के चैप्टर बुक ऑफ़ जेनेसिस का,,,,

 अगले कुछ सालों तक इसपर बहस होती रही ब्रिटिश हुकूमत और इसाई आलिमों में और फिर 1840 में ब्रिटिश अखबार Colonial Times के ऑस्ट्रेलियन वर्ज़न में एक बड़ा लेख लिखा गया, ब्रिटिश समेत नॉर्दन यूरोप और अमरीका के आलिमों समेत बड़े बड़े पूंजीपतियों डिप्लोमेट्स और दूसरे सरकारी ओहदेदारों की तरफ से जिसे नाम दिया गया Memorandum to the Protestant Powers of the North of Europe and America" 

और फिर यहीं से ऑफिशियल शुरूवात होती है क्रिश्चियन ज़ायोनिस्म की,,, मतलब अभी तक थिओडर हर्जल पैदा तक नहीं हुआ था जिसने ओरिजनल कांसेप्ट दिया था स्टेट ऑफ़ इज़राइल का लेकिन ब्रिटेन और अमरीका के एंग्लो प्रोटेस्टेंट ईसाई लोगों ने स्टेट ऑफ़ इज़राइल का कॉन्सेप्ट पेश कर दिया था जिसकी बाउंड्री नील (मिस्र)से फरात(इराक़) तक होंगी यानी ग्रेटर इज़राइल।

ये वो वक्त था जब ब्रिटेन दुनिया भर को गुलाम बनाता जा रहा था और ब्रिटेन के यहूदी पूंजीपति दुनिया भर में ब्रिटिश द्वारा गुलाम बनाए गए देशों के हर रिसोर्स पर अपना कब्ज़ा जमाते जा रहे थे,, 
इसके साथ साथ ब्रिटेन के अंदर सियासत में भी बड़े बड़े ओहदों पर यहूदी बिठाए जा रहे थे,,

 रोथस्चाइल्ड फैमिली के एक मेंबर लियोनेल डी रोथस्चाइल्ड को 1847 में लंदन से एमपी बना कर संसद में भेज कर इतिहास रच दिया जाता है अभी तक वहां पर किसी भी यहूदी या कैथोलिक पर पाबंदी थी चुनाव लड़ने की,,
 फिर अगले कुछ ही सालों के बाद 1874 में एक यहूदी बेंजामिन डी इज़राइल को ब्रिटेन का प्रधानमंत्री तक बना दिया जाता है,, और ये सब उसी बेस पर चल रहा था जो बुक ऑफ़ जेनेसिस में लिखा था कि जो यहूदियों की मदद करेगा ईश्वर उसकी मदद करेगा।

और ये सब एंग्लो प्रोटेस्टेंट ईसाई अवाम देख रही थी कि कैसे उनका मुल्क दुनिया की सुपर पावर बन चुका है, दुनिया में होने वाली हर साइंसी ईजाद वहीं से हो रही है जिसकी वजह से ब्रिटेन में एंग्लो प्रोटेस्टेंट ईसाई तबका खुद को यहूदियों की मदद में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने लगा और उधर अमरीका में भी ये तबका मज़बूत हो रहा था और क्रिश्चियन जायोनिज्म पर काफी कुछ लिखा जा रहा था।

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अमरीका का इज़राइल को अंध समर्थन" पार्ट 4

ओल्ड टेस्टामेंट के बुक ऑफ़ जेनेसिस में बताई गई बातों(जो यहूदियों को उनकी मुकद्दस ज़मीन पर बसाने में उनकी मदद करेगा ईश्वर उसकी मदद करेगा और जो इसमें नुकसान पहुंचाएगा ईश्वर उसको नुकसान पहुंचाएगा)को एंग्लो प्रोटेस्टेंट ईसाई आलिमों ने ब्रिटेन समेत नॉर्थ यूरोप और अमेरिका में इस कदर फैला दिया और इस पर इतनी ज़्यादा तादाद में किताबें लिखी गई कि आम प्रोटेस्टेंट ईसाई अवाम में भी यहूदियों को लेकर सहानुभूति पैदा हो गई,

उधर अमरीका में क्रिश्चियन जायोनिज्म की ऑफिशियली नींव रखी जा चुकी थी तो इधर यूरोप में यहूदियों का एक छोटा सा तबका ब्रिटेन और जर्मनी समेत यूरोप के बड़े मुल्कों को अपने कर्ज़ के जाल में फंसा चुके थे और उन मुल्कों की इकोनॉमी पर कब्ज़ा कर चुके थे,, एक मुल्क को दूसरे मुल्क से लड़ते और दोनों मुल्कों के बीच होने वाली जंगों को फाइनेंस करते,,

ब्रिटेन में 1874 को एक यहूदी को प्रधानमंत्री बनाने के बाद यहूदियों का दखल हाउस ऑफ़ कॉमन्स और हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स दोनों जगह बढ़ चुका था,,

इसी दौरान रोथ्सचाइल्ड फैमिली की देख रेख में यहूदी बैंकरों का एक बड़ा गिरोह जो कि खुद को सेकुलर कहते थे उन लोगों ने ऑफिशियली तौर पर क्रिश्चियन ज़ायोनिस्ट द्वारा प्रपोज किया गया प्रोजेक्ट "स्टेट ऑफ़ इज़राइल" 1896 में ऑस्ट्रियन नास्तिक यहूदी थियोडर हरज़ल द्वारा पेश कर दिया गया।

फिर 1897 में दुनिया भर के ज़ायोनिस्ट यहूदी और उनकी पीठ पर खड़े एंग्लो प्रोटेस्टेंट क्रिश्चियन ज़ायोनिस्ट स्विट्जरलैंड में वर्ल्ड जायोनिस्ट कांग्रेस में सारी रूपरेखा तैयार कर के अगले कुछ ही सालों में उस्मानी खलीफा अब्दुल हमीद सानी से 1901 में,, जर्मन बादशाह विलियम सेकंड से 1902 में और पोप पायस दसवें से 1903 में और ऑस्ट्रोहंगेरियन बादशाह से 1904 में अपना स्टेट ऑफ़ इज़राइल का प्रोजेक्ट लेकर पहुंचे लेकिन हर जगह से नाकाम हुए,,

फिर अगले कुछ सालों बाद 1914-18 में वर्ल्ड वॉर शुरू हो जाती है और स्टेट ऑफ़ इज़राइल के जितने भी विरोधी थे वो सब कुचल दिए जाते हैं और इसी के साथ साथ ही आर्थोडॉक्स ईसाइयत का सबसे बड़ा पावरहाउस रूस में भी 1917 में नास्तिक यहूदियों जिनको एंग्लो प्रोटेस्टेंट क्रिश्चियन मुल्कों का पूरा साथ था द्वारा रूसी बादशाह का तख्ता उलट दिया जाता है और रूस पर भी यहूदियों का डायरेक्ट कब्ज़ा हो जाता है,,

इस वर्ल्ड वॉर में अमरीकी हथियार खुल कर इस्तेमाल हुए और अमरीका में मज़बूत हो चुकी क्रिश्चियन ज़ायोनिस्ट लॉबी ने पूरी तरह से मदद की एंटी स्टेट ऑफ़ इज़राइल प्रोजेक्ट को रिजेक्ट करने वालों के खिलाफ़।

इस 4 साल लंबे चलने वाले वर्ल्ड वॉर में अगर किसी ने सबसे बड़ी कामयाबी हासिल की तो वो थे ज़ायोनिस्ट यहूदी, उसके बाद एंग्लो प्रोटेस्टेंट क्रिश्चियन और थोड़ा बहुत फ्रांसिसी कैथोलिक,,

सबसे ज़्यादा नुकसान उठाने वालों में,,Astro Hungarian एंपायर तबाह हो गई, जर्मनी बुरी तरह से शिकस्त खाया, उस्मानियों की ज़मीन के टुकड़े टुकड़े हो गए,, उसी एक टुकड़े पर ज़ायोनिस्ट यहूदियों ने 1917 में बालफोर डिक्लेरेशन के ज़रिए फलस्तीन में सेटल होने का हक़ हासिल कर लिया।

ये सब देख कर एंग्लो प्रोटेस्टेंट क्रिश्चियन ज़ायोनिस्ट बड़े खुश थे कि हम वो लोग हैं जो यहूदियों को उनकी मुकद्दस ज़मीन पर बसाने के लिए सबसे अहम रोल अदा कर रहे हैं और ईश्वर इसका फल हमें दे रहा है।

यूरोप में इस वर्ल्ड वॉर के बाद यहूदियों के खिलाफ़ बहुत एंटी सेंटीमेंट्स क्रिएट होने लगे क्योंकि हारे हुए देशों की पूरी इकोनॉमी और ओवरसीज रिसोर्सेज पर यहूदियों ने मुकम्मल तौर पर कब्ज़ा कर लिया था और ये सब यूरोप के यहूदी देख रहे थे,, 

इसी दौरान इन यूरोपियन यहूदियों का अमरीका पलायन शुरू हो जाता है जहां उनके लिए एंग्लो प्रोटेस्टेंट क्रिश्चियन ज़ायोनिस्ट रेड कार्पेट बिछाए इनके स्वागत के लिए इनका इंतजार कर रहे थे,,

लेकिन इधर यूरोप में खासकर जर्मनी में यहूदियों के खिलाफ़ बहुत बड़े पैमाने पर नफ़रत की शुरूवात हो चुकी थी जिसके नतीजे में हिटलर सत्ता में आ जाता है और अगला वर्ल्ड वॉर शुरू होता है,,,
लेकिन इस बार हिटलर ने लाखों आम बेगुनाह यहूदियों को तो मारा लेकिन जो जर्मनी को आर्थिक तौर पर तबाह करने वाले लोग थे वो सब जर्मनी छोड़कर ब्रिटेन या अमरीका पलायन कर चुके थे,,

हिटलर बहुत मजबूती से ये जंग जीत रहा था, वो जानता था कि यहूदियों की असल पनाहगाह और ऑपरेशनल एरिया ब्रिटेन, अमरीका और रूस है तो उसने ब्रिटेन को तो लगभग हरा ही दिया था लेकिन ब्रिटेन और अमरीका के डीप स्टेट में मौजूद ज़ायोनिस्ट यहूदियों और एंग्लो प्रोटेस्टेंट क्रिश्चियन जायोनिस्ट ने अमरीका को इस वर्ल्ड वॉर में खींच लाने पर मजबूर कर दिया और हिटलर ने एक बहुत बड़ी गलती रूस पर अटैक कर के कर दी।

फिर दुनिया ने उस सेकंड वर्ल्ड वॉर के खात्मे को देखा, हिरोशिमा और नागासाकी की बरबादी देखी, हिटलर की आत्महत्या देखी, आम यहूदियों के खिलाफ़ जर्मन अवाम को उभरने वाला मीडिया प्रभारी जोसेफ गोएबल्स को उसकी बीवी समेत उसके 6 मासूम बच्चों को खुद ही मार कर आत्महत्या करते देखा।

हिटलर द्वारा लाखों बेगुनाह यहूदियों के कत्ल ए आम को बुनियाद बना कर मीडिया में बहुत बड़े पैमाने पर सहानुभूति हासिल करने का प्रोपेगेंडा चलाया गया और 1917 में ही बालफोर डिक्लेरेशन के तहत फलस्तीन में यहूदियों को सेटल होने का हक हासिल कर लेने की वजह से सारा मजलूम यहूदी फलस्तीन पहुंचने लगा और फिर दूसरे वर्ल्ड वॉर के चैंपियन अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस ने मिलकर एक नया वर्ल्ड ऑर्डर तैयार किया जिसे यूएनओ का नाम दिया गया और फिर इसी यूएनओ के तहत 1948 में उस स्टेट ऑफ़ इज़राइल का कयाम वजूद में आया जिसको बनाने के लिए एंग्लो प्रोटेस्टेंट ईसाई पिछले 100 सालों से जद्दोजहद कर रहे थे।

और यहीं से जायोनिस्ट यहूदियों और एंग्लो प्रोटेस्टेंट ईसाईयों का वर्ल्ड ऑर्डर वजूद में आया जिसे दुनिया रूल्स बेस्ड इंटरनेशनल वर्ल्ड ऑर्डर कहती है।

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अमरीका का इज़राइल को अंध समर्थन" पांचवा और आखरी पार्ट

पिछली पोस्ट में मैंने लिखा था कि कैसे इसराइल का कयाम वजूद में आया,, 
1948 में इज़राइल बनने से पहले ही मौजुदा वर्ल्ड ऑर्डर 1945 में कायम किया जा चुका था जिसका मुख्यालय यूएनओ है और इस यूएनओ के अंडर काम करने वाले हर तरह के इदारे हैं,,

इंट्रेस्ट बेस्ड वर्ल्ड फाइनेंशियल सिस्टम पर पूरी तरह से जायोनिस्ट यहूदियों का कब्ज़ा करवाया जा चुका था, करेंसी के तौर पर डॉलर को हेजेमन के तौर पर सारी दुनिया ने कुबूल कर लिया था और इस इंट्रेस्ट बेस्ड फाइनेंशियल सिस्टम को बचाने के लिए एंग्लो प्रोटेस्टेंट क्रिस्चियन मुल्कों का सरबराह अमरीका की लीडरशिप में नाटो के तौर पर एक बड़ा मिलिट्री अलायंस भी गठित हो चुका था।

200 सालों की मेहनत करने के बाद यहूदी उस मुकाम पर पहुंच चुके थे जिसकी पेशेनगोइयां ओल्ड टेस्टामेंट में मौजूद थीं और अब इनको अपने मसीहा का इंतजार था,,
और यहीं से शुरू होती है यहूदियों के ज़ुल्म करने की कहानी और उनकी पीठ पर खड़े एंग्लो प्रोटेस्टेंट क्रिस्चियन मुल्कों में मौजूद क्रिस्चियन जायोनिस्ट जिनका उन मुल्कों के डीप स्टेट में बहुत गहरा असर था।

ये क्रिस्चियन ज़ायोनिस्ट यहूदियों से भी ज़्यादा यहूदी बन चुके थे और अब तो इंतहा हो चुकी है,,
इज़राइल स्टेट द्वारा किए गए हर ज़ुल्म को जायोनिस्ट यहूदियों और क्रिस्चियन जायोनिस्ट द्वारा डिफेंड किया जाने लगा,,

फलस्तीनियों के कत्लेआम को बुक ऑफ़ ड्यूट्रोनॉमी के सैमुअल वाले भाग से डिफेंड करते हैं जिसमे बताया गया है कि दुश्मन के जवान, बूढ़ों, बच्चों, भेड़, ऊंटों और बंदरों को हर किसी को कत्ल कर दो"

बुक ऑफ एस्टर से डिफेंड करते हैं जिसमें बताया गया है कि "सेल्फ डिफेंस में हामान और उसकी कौम के 75 हज़ार लोगों को कत्ल किया गया तो फलस्तीनियों का कत्ल भी जायज है सेल्फ डिफेंस में"

और इसको वो लोग खुलेतौर पर डिफेंड करते हैं,,

अमेरिकन और ब्रिटिश डीप स्टेट में ये दोनों तरह के ज़ायोनिस्टों का गठजोड़ इस कदर मज़बूत है कि इसराइल की मदद उनके ईमान का हिस्सा बन चुका है।

इज़राइल की मदद बुक ऑफ़ जेनेसिस का "डिवाइन रूल ऑफ़ लॉ"बन चुका है।

ब्रिटेन और अमरीका में क्रिस्चियन जायोनिस्ट के अवामी तौर पर इतने बड़े बड़े संगठन खड़े हो चुके हैं जो इज़राइल के लिए मरने और मारने के लिए तैयार हैं उन्हीं संगठनों में से एक बहुत बड़ा संगठन है जिसका नाम है "Christian United for Israel" इसके सिर्फ़ अमरीका में ही डेढ़ करोड़ के करीब कार्यकर्ता हैं और बाकी दुनिया के अगर मिला लिए जाएं तो करीब 3 करोड़ होंगे।
ये तो हो गई अवामी ताकत जिसमें सरकार का कोई दखल नहीं है,,
इसके अलावा अमरीकी कांग्रेस का कोई एक भी सेनेटर ऐसा नहीं है जो इज़राइल के खिलाफ़ जाने की हिम्मत दिखाए और या किसी ने दिखाई तो उसका काम ख़त्म,,
अमरीका में मौजूद एक यहूदियों की लॉबी है जिसे AIPAC के नाम से जाना जाता है तो समझ लीजिए असल में अमरीकी सरकार यही लॉबी है। 

इसी तरह ADL नामी एक फर्म है जो कानूनी तौर पर उनके खिलाफ काम करती है जो स्टेट ऑफ़ इज़राइल या दूसरे यहूदियों को कोई टारगेट करता है।

इनके अलावा भी बहुत सारी लीगल फर्म काम करती हैं।

अमरीकी हुकूमत एक तरह से वही सब करती है जो डीप स्टेट में मौजूद जायोनिस्ट यहूदी और क्रिस्चियन जायोनिस्ट चाहते हैं,, दुनिया की उनको रत्ती भर परवाह नहीं,, 

इन दोनों गिरोहों को लगता है कि अब ये वो वक्त है जब मसीहा की आमद बिलकुल ही करीब है, नेतन्याहू ही अगले मसीहा के आने तक सत्ता में रहने वाला है,,

1984 में नेतन्याहू जब युनाइटेड नेशंस में इसराइली राजदूत था तब उसको एक यहूदी आलिम मिला था जिसका नाम Menachem Mendel था उसने नेतन्याहू को बताया था कि अब वो वक्त बिलकुल करीब है जब मसीहा आने वाला है,, नेतन्याहू इससे करीब दर्जनों बार मुलाकात कर चुका है,, इस आलिम ने ये भी बताया था कि या तो तुम ही मसीहा होगे या फिर तुम मसीहा के आने का रास्ता साफ कर के जाओगे,,

फिर 1984 के बाद से अमरीकी हुकूमत या यूं कहें कि दज्जाली गठजोड़ सबसे खतरनाक मोड पर आ चुका था,,
 इज़राइल के करीब उसके सारे दुश्मनों को ख़तम किया जा चुका था सिवाय फलस्तीनियों और ईरान के,,,

लेकिन पिछले 7 अक्टूबर के हमास के हमले ने सब कुछ बदल कर रख दिए है इजराइल जो कुछ दिखाता आ रहा था वो भ्रम फलस्तीनियों ने तोड़ कर रख दिया।

वहीं दूसरी तरफ़ रूस+चीन की जोड़ी ने इनके पूरे इंट्रेस्ट बेस्ड फाइनेंशियल सिस्टम और इनकी मिलिट्री माइट पर ही सबसे बड़ा हमला कर दिया है जो आने वाले कुछ सालों में ही नज़र आने लगेगा।

कुल मिलकर ये कह सकते हैं कि ये शैतानों का गठजोड़ बहुत जल्द अपने अंजाम तक पहुंच जाएगा,अमरीका और इनके अलायन्स में मौजूद कोई भी ताकत इनको ज़्यादा दिनों तक बचा कर नहीं रख पाएंगी।


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