ये कहानी उनके लिए जो इस दुकान को पहचानते हैं । अगर आप इस दुकान को नही

ये कहानी उनके लिए जो इस दुकान को पहचानते हैं । अगर आप इस दुकान को नही पहचानते तो इस कहानी या यूं कहें इस Situation को समझाना ऐसा है जैसे किसी गूंगे से "पतंजलि शहद" का स्वाद पूछ लिया हो और ऐसा गूंगा जिसने छत्ते वाला शहद Taste कर रखा हो । 
जो अलीगढ़ के हॉस्टल में नही रहा है और जिसने शमशाद से किताबें खरीदने या खोजने नही गया उसे ये समझना काफी मुश्किल होगा । फिर भी कोशिश ये हैं की असल तस्वीर अपनी बातों से खींच पाऊं । मेरे शब्द संरचना का भी लिटमस Test हो जाएगा । इसका Power कहां तक बढ़ा है, जो मैं महसूस करवाना चाहता हूं वहां तक बातें दस्तक भी दे पाती हैं की नही ।
तो बात आज से करीब करीब 20 साल पहले की है यानी सन 2000 और उसके आस पास का Era । जब मेरा Selection AMU के 10+2 में हुआ था । ये मेरे Life का पहला Competitive एग्जाम था जिसमे मुझे सफलता मिली थी । हालाकि मैं अपने स्कूल का Topper था पर कभी किसी Competitive एग्जाम में अब तक कुछ खास नहीं कर पाया था । एक बार छठी में नेतरहाट दिया था , जिसमे नहीं हुआ । और खुदा का एहसान था की नही हुआ । वरना "छठी रात का दूध" याद आए न आए छठी Class से ही घर की याद जरूर आने लगती ।
ये वो स्कूली दौर था जब हर "पापा जी" को लगता था की Hostel में दिमाग भरने की फैक्ट्री लगी हुई हैं। वहां जाते ही लड़का सीधे IAS बन कर निकलेगा । तो कोई नवोदय तो कोई नेतरहाट या फिर सैनिक स्कूल में अपने लडके को महेंद्र बाहुबली के भांति सुपुर्द करना चाहते थे । ताकि कोई कबीला वाला उसे पाल पोस कर एक दिन माहिसमति कब्जा करने वाला बना दे । 
इस तरह के सारे प्रपंच में मैने अपने पिताजी के विफल कर दिए थे । नेतरहाट मुझे जाना नही था, मेरा मन आपने मुहल्ले में पतंग लूटने में लगा था, वहां चला जाता तो ये महत्वपूर्ण काम कौन करता । 
तो प्वाइंट पर लौटते हैं । अलीगढ़ में Entry होने के बाद सभी आवशक चीजों की जानकारी में सबसे Important था किताबों का जुगाड । किताबें उस दौर के हिसाब से महंगी थी, घर से भेजा जाने वाला बाबूजी खून पसीने की कमाई इतना नही था की Brand New Book लिया जाय । मुझे 1500 रुपए आते थे उसमे ही सब करना था । लाइब्रेरी के बुक के पन्ने फटे मिलते थे और अच्छे बुक में 1 अनार सौ बीमार वाले हालात तो थे ही । 
कुल मिलाकर शमशाद Market था जहां 2nd हैंड किताबें मिल जाती थी । शमशाद में भी 3 दुकानें प्रमुख थी । एक सिंघल साहेब की, एक Anwar Book Depo और तीसरी मुझे याद नहीं आ रही है । 
Anwar Book Depo और अन्य दुकान मुसलमान Owners की थी, थोड़ी उर्दू लहजा और बिल्कुल कठोर सा व्यवहार । उनको पता था की AMU के Hostel फुकरों की बस्ती है । थोड़ा हाथ दो तो सब कंधे पर चढ़ जाएंगे । पता नही कौन सा टशन था, किस बात का था । पर इस तरह नाक चढ़ी रहती थी जैसे Discount में इनकी किडनी मांग ली है । 
हमें भी बुक्स एक दम सस्ता चाहिए । सस्ता मतलब 600 की किताब को 150 लेकर पाने की हसरत रखते हैं । बार बार दाम पूछना, बार बार Enquiry ने शायद इन बुक डिपो वालों कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया सुनेत की तरह तंजवाला और निर्मला मैम की तरह Feelingless बना दिया था । 

ऐसे में एक मात्र दुकान बचती थी सिंघल साहेब की । सिंघल साहेब एक ऐसे University के लडको से घिरे थे जो अभी अभी घर से बाहर आए थे, अपने परिवार वालों के Clutch से छूट कर । बिल्कुल खुल्ला सांड, बिल्कुल बेफिक्र , बिंदास और थोड़ा बेहया । उसमें भी Majority में मुसलमान लड़के । अब ये मुसलमान Adjective बताना जरूरी था । इसका भी एक बैकग्राउंड है । ये लड़के जहां से भी आए थे वहां जाहिर तौर पर Minority रहे होंगे । पढ़ने में ठीक होंगे तब ही चुनकर यहां पहुंचे हैं । पर अब इनको पढाई के सात थोड़ा सा बदमाशी का खुमार भी चढ़ता है । कुदरती तौर पर थोड़ा निर्भीक होते हैं पर एक जो माहौल का Kick मिलना होता है वो AMU का Hostel दे देता है । 
बदमाशी का खुमार लिए जब बुक की तलाश में 2 जगह से झिड़क खाने के बाद । ये जब सिंघल साहेब की दुकान पर पहुंचते हैं तो थोड़े तेवर में कॉन्फिडेंस ज्यादा भर देते हैं ताकि थोड़ा वजनदार लगें । पर ये सिंघल साहेब का प्यार था या आशीर्वाद अक्सर औने पौने दाम पर इन बच्चों को किताबें पकड़ा देते थे । कम पैसे होने पर बाद में दे देना बेटा जैसे शब्दों से बदमाशी की जमीन को धंसा देते थे । उनको अच्छे से पता था, एक बार Book लेकर निकलने के बाद ये शायद ही वापस आएगा । फिर भी पता नहीं क्या भरोसा था, क्या Intention ये समझ से परे है । 
मैने Comprehensive Chemistry कौड़ियों के भाव लिए थे । याद नही ली पूरे पैसे दिए थे या कुछ बाकी । इतना भी याद नहीं की कितने का भाव था शायद 150 रुपए का । पर Confirn कुछ नही । लेकिन सिंघल जी याद है, उनकी ज़बान में उर्दू लहजा नही थे पर प्यार था । 

वो प्यार याद है । 

पूर्व छात्र शमशीर अहमद 
B.Tech 2007
DD3171

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