ऐसा है हमारा #मेवात #Mewatऔर #मेनस्ट्रीम_मीडिया

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ऐसा है हमारा #मेवात #Mewat
और #मेनस्ट्रीम_मीडिया

यक़ीनन ये विषय अपने-आप में जितना संजीदा है, उतना ही प्रासंगिक भी है! क्योंकि असल में, ये सबजेक्ट मौजूदा परिप्रेक्ष्य में पूरी तरह से फिट बैठता है।

हम देख रहे हैं कि जिस तरह से #मीडिया मेवात को बदनाम करने के लिए ग़ैरज़िम्मेदार कवरेज कर रहा है, उससे उन लोगों की ज़हनियत मेवात के लिये पूरी तरह से नेगेटिव हो गई है, जो कभी मेवात आये ही नहीं, जिन्होंने मेवात के ताने-बाने को कभी समझा ही नहीं! हो ये रहा है कि हम अख़बारों, टीवी या सोशलिस्तान के ज़रिए ही किसी को समझने की ग़लती कर रहे हैं, जबकि वो एक विचार है उस साइक्लोजी का, जहां पर कंटेंट को तोड़ मरोड़कर, उसका रस निकाला जा रहा है...

ख़ैर, ये हमारे देश की बदक़िस्मती ही रही है कि यहां पर सन 47 के बाद कुछ घटनाएं ऐसी हुई हैं, जिनका कहीं न कहीं पूरे मुल्क के समाजिक ताने-बाने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

बात चाहे देश के तक्सीम होने की हो, या फिर सिलसिलेवार होते रहे दंगों की (ख़ासतौर पर गुजरात में हुए 2002 के #दंगे) 
और फिर 6 दिसंबर 1992, यानि #बाबरी मस्जिद का गिराया जाना, उससे पहले 84 में सिख विरोधी दंगे...

इस तरह की तमाम और घटनाओं के बाद बड़े पैमाने पर दंगे-फसाद हुए और जान-माल के साथ-साथ इज्ज़त और आबरू का भी बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ।

देशभर में विरोध-प्रदर्शन किये गये, मगर दिल्ली की गोद में बसे मेवात इलाक़े से कोई ग़ैरवाजिब घटना सामने नहीं आई।।।

जब मुल्क का बंटवारा हुआ, उन दिनों समूचे हिंदूस्तान में आफत-मुसीबत का लंबा दौर चला, लेकिन मेवात इलाक़ा काफी हदतक महफ़ूज रहा।
#गांधी जी, और मौलाना #अबुल कलाम #आज़ाद की क़ौल पर पाकिस्तान ना जाने का तारीख़ी फैसला मेवातियों ने लिया।

और फिर जब पाकिस्तान से #पंजाबी_शरणार्थियों (सनारती) के सैकड़ों-हज़ारो परिवार मेवात में बसाये गये, और जो इज्ज़त उनको यहां पर मिली, वो जग-ज़ाहिर है। कभी उनके साथ दोयम दर्जे का सुलूक नहीं किया गया, कभी उन्हें इस बात का मलाल नहीं रहा कि वो दूसरे मुल्क में जाकर अजनबी हो गये हैं । और आजतक एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल हो रहे हैं, हंसी-खुशी के पलों को साथ-साथ जी रहे हैं। मेवात के सभी बाज़ारों में ज़्यादातर दुकानदारी हमारे इन्हीं पंजाबी भाई या बनिया साहेबान के पास है, यानि मेवात के बिज़नेस पर इनकी मज़बूत पकड़ है...चाहे किराने की दुकान हों, कपड़ों की दुकान हों, आभूषण की दुकान हों, सब्ज़ी की दुकान हों, अनाज मंडी हों, प्राइवेट स्कूल हों, हॉस्पिटल हों...और ये सब हुआ मेवाती मुसलमानों की बदौलत, उनकी सहमति से यानि समाज की आपसी रज़ामंदी से... किसी को कोई दिक्कत नहीं है...

#दिल्ली के नज़दीक होने की वज़ह से मेवात पर बात-बेबात दुखों के पहाड़ टूटते रहे। लेकिन जब-जब मुल्क की आन-बान-शान पर किसी ने चोट करने की कोशिश की, मेवातियों ने हरबार मज़हबपरस्ती से पहले वतनपरस्ती को तरजीह दी।

बात चाहे #बलबन या #तुगलक से टकराने की हो या फिर #बाबर के साथ जंग करने की। मेवातियों ने कभी हार नहीं मानी, इस बाबत शहादतों का लंबा #इतिहास मेवात खित्ते के साथ जुड़ा हुआ है।

यही नहीं जब सन् 1857 की क्रांति हुई, तो भी मेवातयों ने तमाम राष्ट्रीय आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, नतीजतन #अंग्रेजो ने मेव क़ौम को #क्रिमिनल_ट्राइब घोषित कर दिया।

मगर समकालीन दौर में मेवात के साथ जो कुछ टीवी मीडिया ने किया है, उसे देखते हुए लोग आज भी यही कह रहे हैं कि कुछ लोग साज़िशन मेवात इलाक़े के गंगा-जमुना कल्चर को तोड़ने की फिराक़ में है....हालांकि ऐसे लोग सिर्फ़ एक ग़लतफहमी का शिकार है, किसी मुगालते में हैं, क्योंकि मेवात की ज़मीन की तारीख़ आपसी भाईचारे की रही है, साम्प्रदायिकता की नहीं और उसकी सबसे बड़ी वजह है यहां की सोशियोलाजी... मेवात में 12-52 गोत्र-पाल हैं...यहां पर #कटारिया, #पंवार, #सिंगल, #बमणावत, #डेमरोत, #मोर, #तंवर, #बडगुर्जर, #तोमर, #राजपूत, #डागर #चौधरी वग़ैरह हिंदू हैं, तो मुसलमान भी हैं ...हमारा समाज एक है, हिंदू हो या मुसलमान, सब एक-दूसरे को नाते से बात करते हैं, चाचा को चाचा, ताऊ को ताऊ, दादा को दादा, काकी को काकी.... हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि पहले दंगल भी गोत्र-पाल के आधार पर होते थे और उसमें हिंदू मुस्लिम फैक्टर नहीं रहता था... रामलीला में आज भी ज़्यादातर कलाकार मुसलमान होते हैं, हमारे यहां...

100 बात की 1 बात... मेवात में एक भी ऐसी मिसाल नहीँ है कि किसी को सिर्फ़ इसलिए परेशान किया गया हो कि वो हिंदू है या फिर मुसलमान!!!

मेवात में तमाम लोग आपस में एकसाथ रह रहे हैं, यहां तक कि बिरादरियों (गांव की सामुहिक पंचायत या अदालत) में हिंदू-मेव मुस्लिम एक साथ शरीक होते हैं, और तमाम तरह के मसलों को आपस में ही सुलझा लेते हैं। मेवात में भले ही मेव मुसलमानों की आबादी 
ज़्यादा हो, लेकिन मेवात में #दलित, #सिक्ख, #बौद्ध, #जैन, #जाट, #गुर्जर, #ब्राह्मण, #ठाकुर आदि भी अच्छी ख़ासी तादाद में रहते हैं

मेवात में जहाँ #मस्जिदें हैं, तो ऐतिहासिक #मंदिर भी हैं, दर्शनीय #जैन मंदिर भी हैं, #गुरूद्वारे भी हैं, #मिशनरी स्कूल भी हैं।।।

मेवात के मेव बाहुल्य चंदेनी गांव में, बीते सालों में, जिस तरह से #पंचायत की जनरल सीट होने के बावजूद, बिना इलेक्शन के सर्वसम्मति से, एक #दलित को गांव का #सरपंच बना गया था, इस घटना ने अख़बारों में ख़ूब सुर्खियां बटोरी थी। इसी तरह गोयला गांव 95 फीसदी मेव मुसलमान हैं, गांव के लोगों ने आपसी रज़ामंदी से नरेंद्र टोकस को निर्विरोध सरपंच चुना है, इसी तरह नहारीका चितोडा गांव के मौजूदा सरपंच जय प्रकाश हैं, यहां भी 90 फीसदी मेव हैं। ।।। मेरे ख़ुद के गांव का सरपंच अमर सिंह है!!!

हमारे इलाक़े के लोकसभा सांसद चौधरी तैयब हुसैन, चौधरी खुर्शीद अहमद, चौधरी रहीम खान रहे हैं, तो राव इन्द्रजीत सिंह और राम चंद्र बांदा, अवतार सिंह भड़ाना, कृष्ण पाल गुर्जर भी हैं, हमारे विधायक ज़ाकिर हुसैन, आफताब अहमद रहे हैं, तो संजय तंवर, कुंवर सूरजपाल, ग्यान देव आहूजा,अनीता, हर्ष कुमार, भगवान सहाय रावत भी हैं ...

और फिर मेवाती घराना के ख़ैरख्वाह #पंडित_जसराज #प्रकाश_नागर और सारेगामा के लिटिल चैंपियन #सलमान_अली से भला कौन नावाकिफ है***

यही तो है #CompositeCulture #Pluralism #Diversity #CommunalHarmony #HinduMuslimUnity #Brotherhood 

ऐसा है हमारा मेवात,
ऐसा है मेवाती सौहार्द, 

#सर्वधर्मसमभाव
#वसुदेवकुटुंबकम्

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