पोस्ट लंबी है, अपने विवेक से पढ़े..करीब तीस साल पहले 1993 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL ) में एक

पोस्ट लंबी है, अपने विवेक से पढ़े..

करीब तीस साल पहले 1993 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL ) में एक 23 साल का लड़का, अंग्रेजी साहित्य की पढ़ाई कर रहा था। पढ़ाई और सिनेमा डायरेक्टर बनने के सपने के लिए लगातार मेहनत करने की वजह से उस लड़के को सुबह चार बजे सोने के लिए वक्त मिल पाता है।लड़का उस वक्त पैसे की तंगी से जूझ रहा था। नाश्ता फ्री था और एक तय समय तक ही सर्व किया जाता था। वो लड़का इस नाश्ते के लिए 8 बजे का अलार्म लगाकर सोता था।

गहरी नींद में होने के बाद भी, लड़के के दिमाग में नाश्ता छूटने का डर रहता था। इस वजह से, उस लड़के को एहसास होता था कि वो अभी सो रहा है, और जब वो सपने देखता तो उसका अनकंसियस माइंड उसे ये याद दिलाता रहता कि वो सपना देख रहा है। कुछ दिन की दिमागी वर्जिश के बाद वो लड़का अपने सपनो को कंट्रोल करना सीख गया। अपने सपने के नरेटिव को अपने हिसाब से लिखने की सलाहियत सीख चुके उस लड़के के दिमाग में एक फिल्म का आइडिया आया।वो लड़का 21वी सदी का सबसे महान डायरेक्टर क्रिस्टोफर नोलन था, और जिस फिल्म का आइडिया उसे आया था, वो inception थी।

नोलन 8 साल की उम्र से सिनेमा बना रहे थे अपने पिता के हैंडीकैम और अंडे के गत्ते से बनाए गए सेट की मदद से। अभी तक नोलन एक शॉर्ट फिल्म tarrantella (1989) अपने दोस्त के साथ मिलकर बना चुके थे।ये शॉर्ट फिल्म एक तरह का रफ या प्रैक्टिस वर्क थी, जिसकी मदद से नोलन ने कैमरा और लाइटिंग में अपना हाथ साफ करने की कोशिश की थी। यूनिवर्सिटी से निकलने के बाद नोलन कॉरपोरेट कंपनियों के लिए ट्रेनी वीडियो बनाने लगे। कुछ पैसे इकट्ठा हुए तो नोलन ने यूसीएल के साथ मिलकर अपनी दूसरी शॉर्ट फिल्म larcency को लिखा एडिट और डायरेक्ट किया।ये ब्लैक एंड व्हाइट शॉर्ट फिल्म बहुत छोटे बजट में एक हफ्ते के अंदर शूट हुई थी, शूट में इस्तेमाल होने वाले सभी उपकरण युसीएल ने दिए थे। 1996 में ये शॉर्ट फिल्म कैंब्रिज फिल्म फेस्टिवल में रिलीज हुई और इसे अब तक की यूसीएल की सबसे बेहतरीन शॉर्ट फिल्म्स में गिना जाता है।

नोलन की तीसरी शॉर्ट फिल्म DOODLEBUG चार मिनट की साइकोलॉजिकल थ्रिलर थी। इस चार मिनट की कहानी का एक बड़ा और जरूरी हिस्सा नोलन ने स्पेशल इफेक्ट की मदद से दिखाया था। अजीब बात ये थी कि नोलन ही आगे चलकर विजुअल इफेक्ट्स की अहमियत को सिरे से नकारकर ये साबित करने वाले थे कि सिनेमा बिना वीएफएक्स के भी बनाया जा सकता है। अब तक नोलन को सिनेमा का अच्छा तजर्बा हो चुका था, नोलन अब एक फीचर फिल्म बनाना चाह रहे थे। नोलन को पता था कि जिस तरह की फिल्म वो सोच रहे है, वैसी फिल्म को बिना पैसे के नही बनाया जा सकता है। पर नोलन के पास पैसे नहीं थे। नोलन ने अपनी पहली फिल्म बनाने का फैसला किया। पूरी सेविंग इकट्ठा करने एयर दोस्तो से मदद लेने पर भी नोलन के पास सिर्फ 6 हजार डॉलर थे। उस समय एक डॉलर 36.91 रुपए के बराबर था।

नोलन के पास दो रास्ते थे,या तो कुछ साल और बचत करके ठीक ठाक बजट की फिल्म बनाते, या फिर जो है जितना है उसी की मदद से फिल्म बनाए। नोलन ने फिल्म बनाने का फैसला किया। तीन शॉर्ट फिल्म बना चुके नोलन को मालूम था कि एक फिल्म की बेसिक जरुरते क्या होती है। सबसे जरूरी चीज थी लाइट। नोलन के पास लाइट का बजट नही था, इसलिए नोलन ने फिल्म को ब्लैक एंड व्हाइट में शूट करने का फैसला किया।ब्लैक एंड व्हाइट में शूट करने के दो फायदे थे, पहला लाइट पर कम बजट खर्च होता, दूसरा ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म स्टॉक कलर स्टॉक के मुकाबले सस्ते थे। ब्लैक एंड व्हाइट आउटडोर के लिए ठीक था, पर कमरे के अंदर के शॉट लाइट की कमी से प्रभावित हो सकते थे। नोलन ने ऐसे शॉट में एक्टर को खिड़की के पास खड़ा होकर डायलॉग बोलने के लिए कहा, खिड़की से आ रही नैचुरल लाइट को नोलन ने फ्री में यूज किया। 

फिल्म में एक्टिंग के लिए नोलन अपने दोस्तो के पास गए, दोस्तो ने हामी तो भर दी कर दिक्कत ये थी की सब नौकरीपेशा थे। नोलन ने रास्ता निकाला कि हम सिर्फ छुट्टी के दिन ही शूट करेंगे।नोलन के पास फिल्म स्टॉक के लिए ज्यादा पैसे नही थे, हर रिटेक फिल्म के बजट में एक चोट की तरह लगता इसलिए नोलन ने छे महीने अपने सभी एक्टर से रिहर्सल करवाई ताकि फिल्म के सीन सिंगल टेक में शूट हो जाए। शूट का वक्त आया तो नोलन ने कैमरा अपने कंधे पर रख लिया, क्युकी कैमरा इक्विपमेंट किराए पर लेने के पैसे नही थे। कॉस्ट्यूम के लिए सभी एक्टर ने खुद जिम्मेदारी उठाई, लोकेशन के लिए दोस्तो के फ्लैट और बाकी जगह इस्तेमाल की गई। मेल लीड कैरेक्टर के किए उस रोल को निभा रहे एक्टर का फ्लैट इस्तेमाल किया गया। प्रॉप भी वही इस्तेमाल हुए जो नोलन को लोकेशन पर उपलब्ध थे। फिल्म एक साल में शूट हुई, नोलन ने उसे एडिट किया।

1998 में फिल्म फेस्टिवल में नोलन की पहली फिल्म FALLOWING रिलीज हुई। नोलन को उनके काम के लिए हर ओर से तारीफे मिली। अब इंडस्ट्री नोलन की हैसियत को कुछ जानने और समझने लगी थी। उसी वक्त नोलन के भाई जोनाथन नोलन ने अपने भाई को एक कहानी का आइडिया सुनाया। कहानी एक ऐसे आदमी के बारे में थी जिसे भूलने की बीमारी है और वो अपनी बीवी की मौत का बदला लेने के लिए फोटोज और बॉडी टैटू का इस्तेमाल करता है। जोनाथन ने इस आइडिया पर एक शॉर्ट स्टोरी लिखी जो बाद में प्रकाशित हुई, क्रिटोफर नोलन ने उस आइडिया पर एक स्क्रीनप्ले लिखा मोमेंटो नाम से। नोलन की ख्याति को देखते हुए कुछ रिजेक्शन के बाद नोलन को प्रोड्यूसर मिल गया। फिल्म के लिए नोलन को 45 लाख डॉलर का बजट मिला जो उनकी पहली फिल्म का कई गुना था। बाद में ये बजट एक्सटेंड होकर नब्बे लाख तक पहुंच गया। फिल्म रिलीज हुई, और बॉक्स ऑफिस पर चार करोड़ डॉलर कमाए। तारीफ अवार्ड और नॉमिनेशन अलग से मिले।

इसके बाद नोलन को वार्नर ब्रदर्स ने नॉर्वे की थ्रिलर इंस्मोनिया का रिमेक डायरेक्ट करने की जिम्मेदारी दी। अल पचीनो और रोबिन विलियम्स अभिनीत ये फिल्म 4.6 करोड़ डॉलर में बनी और बॉक्स ऑफिस पर 11.3 करोड़ डॉलर का कलेक्शन किया।
नोलन ने होवार्ड ह्यूज की जीवनी पर एक स्क्रीनप्ले लिखा, वो इसे बनाने वाले थे फिर मार्टिन स्कॉर्से ने हावर्ड ह्यूज के जीवन पर आधारित फिल्म the aviator अनाउंस कर दी। नोलन ने अपना आइडिया स्क्रैप कर दिया। नोलन बैटमैन की फिल्म का आइडिया लेकर वार्नर ब्रदर्स के पास पहुंचे, नोलन ऐसी फिल्म बनाना चाहते थे जो वास्तविकता के करीब लगे। वार्नर ब्रदर्स ने फिल्म को ग्रीन लाइट दे दी, 2005 में बैटमैन बिगिंस रिलीज हुई, कॉमिक्स प्रेमियों की तरफ से नोलन को मिक्स रिस्पॉन्स मिला, पर इसके सीक्वल ने सुपरहीरो मूवीज के सभी मानक तोड़ दिए और आज तक कोई भी सुपरहीरो फिल्म डार्क नाइट की बराबरी नही कर पाई है। डार्क नाइट की रिलीज के बाद नोलन बड़ा नाम बन चुके थे, और फिर उन्होंने उस फिल्म को बनाने का फैसला किया जिसका सपना नोलन ने कॉलेज टाइम में देखा था।

नोलन ने डार्क नाइट के बाद तमाम ऐसी फिल्मे बनाई है जो मास्टरपीस है, पर डार्क नाइट तक का सफर जिस तरह से नोलन ने तय किया है वो उनको महान बनाता है। 6 हजार डॉलर से करियर शुरू करने वाला डायरेक्टर अपनी मेहनत और काबिलियत से एक दिन उस मुकाम पर पहुंचा कि उसने 200 मिलियन डॉलर के बजट में टेनेट बनाई और किसी को मालूम तक नही था की फिल्म की कहानी क्या है।

लोग बाग कह रहे है की नोलन की फिल्म बार्बी से कमाई में पिछड़ गई है, कुछ लोग इसे हार मानते है नोलन की, पर ऐसा सोचने और कहने वाले ज्यादातर वो लोग है जो नोलन को जानते ही नही है। नोलन की किसी से कोई रेस नही है, कोई मुकाबला नही है, एक लाइन है बस, जिसके इस तरफ नोलन है, और दूसरी तरफ 21वो सदी के दूसरे डायरेक्टर। आप मानते हो, नही मानते हो, कोई फर्क नही पड़ता, आपको समझ आती है उसकी फिल्मे, या नही इससे भी कोई फर्क नही पड़ता, क्योंकि अगर आप नोलन की फिल्म नहीं समझ पाते है, तो इसका ये मतलब नही की नोलन ने खराब फिल्म बनाई है, इसका बस इतना मतलब है, अभी इस वक्त आप काबिल नही है, कि नोलन के क्राफ्ट उसकी काबिलियत को समझ सके, थोड़ा वक्त लगेगा, शायद काबिल हो जाए आप।

#rehan

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वक़्फ क्या है?"" "" "" "" **वक़्फ अरबी

जब राम मंदिर का उदघाटन हुआ था— तब जो माहौल बना था, सोशल मीडिया

मुहम्मद शहाबुद्दीन:- ऊरूज का सफ़र part 1 #shahabuddin #bihar #sivan