करोड़ों रुपए टैक्स भरने के बाद जब आपको मूलभूत नागरिक सुविधाओं के लिए भिखारी की तरह भटकना पड़े तब आप स्वयं को ठगा हुआ महसूस करते हैं। आखिर टैक्स क्यों

करोड़ों रुपए टैक्स भरने के बाद जब आपको मूलभूत नागरिक सुविधाओं के लिए भिखारी की तरह भटकना पड़े तब आप स्वयं को ठगा हुआ महसूस करते हैं। आखिर टैक्स क्यों दिया, गलत जगह दे दिया, गलत लोगों को दे दिया। और इसी विचार के साथ तुलनात्मक अध्ययन प्रारंभ होता है कि वह कौन सी जगह, लोग, व्यवस्था है जहां नागरिक सुविधाएं और टैक्स का अनुपात 1:1 के आज पास है। ऐसे में यदि कोई पश्चिमी देशों में जा बसे तब कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए। 

कोई अपना घर नहीं छोड़ना चाहता। सब मकान मालिक बनकर रहना चाहते हैं न की किराएदार। यदि माहौल बदलेगा तो लोग लौटेंगे। जो गए हैं वो भी इसी माहौल के भुक्त भोगी हैं। यह ऐसे ही है जैसे दिल्ली की ब्लू लाइन बस छोड़कर कोई मेट्रो में सफर करने को वरीयता देने लगे।

मेट्रो का चुनाव सुविधा और मूल्य के उचित अनुपात का है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि कीमत कितनी है, बस न्यायोचित होनी चाहिए। कीमत वसूल होनी चाहिए। 

बचपन में ब्रेन ड्रेन पर निबंध लिखने को दिया जाता था और साथ ही रिश्तेदार बड़ी शान से अपने बच्चों को विदेश में सेटल होने की बातें बताते थे। एक हीन भावना का एहसास करवाया जाता रहा है कि आप भारत में इसलिए हैं क्योंकि आप विदेश नहीं जा पाए। यह एक सामाजिक विरोधाभास है।

हम अच्छे लोगों को खोते हैं क्योंकि हमने उनको सही माहौल नहीं दिया। उचित मूल्य नहीं दिया। उचित सामाजिक प्रोत्साहन नहीं दिया। कोई क्यों अपने बच्चों को उसी माहौल में डालना चाहेगा जिससे वह स्वयं बड़ी मुश्किल से निकल पाया हो। 

संसार सुविधाओं पर चलता है। जहां असुविधा होगी वहां कोई तभी रुकेगा जब उसकी मजबूरी होगी। और यह सुविधापूर्ण व्यवस्था के निर्माण, संचालन और सुरक्षा का जिम्मा सरकार का होता है न कि समाज का। 

यदि किसी देश में ब्रेन ड्रेन हो रहा है तब निश्चित रूप से वहां की सरकार ही दोषी है। 

लोग अधिक सुविधाजनक राष्ट्र, अधिक जवाबदेह और जिम्मेदार सरकार का चुनाव उसी तरह करते हैं जैसे कि आप घटिया और बढ़िया मोबाईल में। यदि आपको अच्छी सुविधा पसंद है तो यही नियम सबके ऊपर लागू होता है। 

ब्रेन ड्रेन एक कठिन समस्या है लेकिन इसका हल असंभव नहीं है। चीन का उदाहरण हमारे सामने है। 

यह तो हमारी सरकारों की नलायकी है कि हर चीज को फर्जी राष्ट्रवाद के तले ढक देना चाहती हैं। 

सभी को बेहतर जीवन जीने का अधिकार है। यह उसका मानवाधिकार है।
Satyendra Kumar Pandey

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