ज़ुबैर को रिहा करने का आदेश अगर एक तरफ न्यायपालिका की कार्यवाही को दर्शाता है तो वहीं दूसरी ओर इसी न्यायपालिका को पोल भी खोलता है...

ज़ुबैर को रिहा करने का आदेश अगर एक तरफ न्यायपालिका की कार्यवाही को दर्शाता है तो वहीं दूसरी ओर इसी न्यायपालिका को पोल भी खोलता है...

ज़ुबैर का मामला कुछ ऐसा है ही नही की उसे जेल में रखा जाए, या विवेचना के लिए SIT का गठन किया जाए.....
एक पत्रकार को ही नही बल्कि आम जन को भी यह अधिकार है की सरकारी नीतियों के विरुद्ध अगर असंतुष्ट है तो आवाज उठा सकता है....

सुप्रीम कोर्ट में जुबैर केस की सुनवाई के समय, जस्टिस चंद्रचूड़ ने UP की AAG के अनुरोध पर कि, ज़ुबैर को आगे ट्वीट न करने दिया जाए, कहा कि,"यह एक वकील से ऐसा कहने जैसा है कि, उसे बहस नहीं करनी चाहिए... हम एक पत्रकार से कैसे कह सकते हैं कि वह एक शब्द भी नहीं लिखेगा या नहीं बोलेगा?"....

न्यायपालिका अगर इतनी देर में न्याय देगी तो उसे अन्याय ही माना जायेगा..... बहुत ज्यादा खुश होने की जरूरत भी नहीं.....बस ये सोचिए कि ऐसे ऐसे प्रकरण में अगर किसी को फंसा कर इतना दिन जेल में बितावाया जा सकता है तो वाकई आलोचना पर क्या होगा .....?

 

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