अशोक स्तंभ बौद्ध प्रतीक है। अब वह राष्ट्रीय प्रतीक है। नए संसद भवन में अशोक स्तंभ की स्थापना करने के लिए ब्राह्मणों को बुलाकर पूजा और पाखंड करना न सिर्फ इतिहास की परंपरा के खिलाफ है

अशोक स्तंभ बौद्ध प्रतीक है। अब वह राष्ट्रीय प्रतीक है। नए संसद भवन में अशोक स्तंभ की स्थापना करने के लिए ब्राह्मणों को बुलाकर पूजा और पाखंड करना न सिर्फ इतिहास की परंपरा के खिलाफ है बल्कि असंवैधानिक भी है। ये महान बौद्ध विरासत को हड़पने की कोशिश भी है। इस मौक़े पर अगर बुलाना ही था तो बौद्ध भंते जी को बुलाते। या किसी को न बुलाते।

अशोक स्तंभ का मूल स्वरूप सारनाथ संग्रहालय में रखा है। वही छवि डाक टिकटों से लेकर सरकारी दस्तावेज़ों में है। उनमें शेर की शांत मुद्रा है। सम्राट अशोक ने बौद्ध धम्म के प्रचार के लिए ऐसे स्तंभ लगाए थे। 

आज प्रधानमंत्री ने जिस तथाकथित अशोक स्तंभ की ब्राह्मण रीति से नए संसद भवन में स्थापना की उसमें शेर बहुत नाराज़ और उग्र है। परेशान भी है। 

क्या आपने गौर किया?

ये मोनोमेन्ट भद्दा और बेहूदा होने के साथ साथ अधूरा भी है , पैरों के मोटे मोटे ज्वाइंट तक दूर से स्पष्ठ दिख रहे हैं, काम मे फिनिशिंग नही है, किसी अनाडी जुगाड़िये कलाकार ने शायद किसी जल्दबाजी बनाया है , सम्भव है इसे मान्य करने वाले अधिकारीयो ने मोटा कमीशन खाया हो, इसकी कीमत कितनी होगी यह भी नही बताया गया है , ...जब मूल कृति मौजूद हैं , उसके चेहरे पे सौम्यता का भाव भी मौजूद हैं , तब इसकी कमियों को तो गिना ही जायेगा, चलिए जिस इसे किसी ने बनाया है तो कम से कम इसकी रेप्लिका में फिनिशिंग तो होता ? निहायत ही घटिया बना है ... जैसा अमृतकाल चल रहा है वैसे ही भाव है जिसमे सब कुछ निगल जाने जुगाड़ की झलक मिल रही है ! .... यह अब उस बात का प्रतीक भर है देख लो दुनिया वाले कैसे 2000 साल में हम भारतीयों ने अपनी मूर्ति कला को रसातल में पहुचा दिया !

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