हमारी एक परिचित महिला हैं बड़ी जाति की हैं अमीर हैं एक गांधीवादी संस्था की प्रमुख हैं
हमारी एक परिचित महिला हैं
बड़ी जाति की हैं अमीर हैं एक गांधीवादी संस्था की प्रमुख हैं
उन्होंने बताया कि उन्हें बड़ी समस्या हो रही है
मैंने पूछा क्या समस्या है ?
तो वो बोलीं कि मैं शुरू से ही सुबह सुबह गांधी समाधी राजघाट घूमने जाती हूँ
लेकिन कुछ सालों से वहाँ मुसलमान बड़ी संख्या में आने लगे हैं
मुझे यह सुन कर हंसी आई
मैंने पूछा कि वे आपको कुछ परेशान करते हैं क्या ?
उन्होंने कहा नहीं परेशान तो नहीं करते लेकिन चारों तरफ उन्हें घूमते देख कर बड़ी परेशानी होती है
यह परेशानी बहुत सारे हिन्दुओं की है
मैं मुज़फ्फर नगर बहुत वर्षों के बाद गया
सुबह सुबह कम्पनी बाग़ गया तो मैंने बाग़ में बहुत सारे दाढ़ी वाले मर्दों और हिज़ाब वाली महिलाओं को घुमते हुए पाया
मैं मुज़फ्फर नगर का ही रहने वाला हूँ
जब मैं बच्चा था तब इतने मुसलमान कम्पनी बाग़ में घूमने नहीं आते थे
मैं सोचने लगा कि इसकी क्या वजह हो सकती है ?
असल में हुआ यह है कि बस्तियों में रहने वाले आम मुसलमान पहले ज़्यादातर गरीब थे
इसका ऐतिहासिक कारण यह है कि भारत के दलित ही समानता की तलाश में मुसलमान बने थे
भारत में धर्म और राज्यसत्ता की मदद से सवर्ण जातियों ने दलितों को भी गरीब रखा था
तो जो दलित मुसलमान बने वो मुसलमान बनने के बाद भी गरीब ही रहे
लेकिन आज़ादी के बाद हालत बदलने लगी
धीरे धीरे दलित आदिवासी और मुसलमान पढने लिखने लगे
तो पहले जो गरीब मुसलमान सुबह होते ही मजदूरी करने निकल जाता था
अब वह नौकरी और बिजनेस में है और सुबह उठ कर कम्पनी बाग़ और राजघाट की मार्निंग वाक पर जाने लगा है
इससे सवर्ण हिन्दुओं को बड़ी परेशानी है
सवर्ण हिन्दुओं को सार्वजनिक जगहों पर सिर्फ मुसलमानों के दिखाई देने भर से ही परेशानी नहीं है
बल्कि जिस सार्वजनिक जगह पर सिर्फ सवर्ण अमीर हिन्दू काबिज़ थे उस जगह को अब दलितों आदिवासियों और गरीबों के भर जाने से भी है
इसे पब्लिक स्पेस कहते हैं
यह पब्लिक स्पेस स्कूल कालेज सिनेमा हाल पार्क सड़कें फेसबुक को कहते हैं
पहले इन जगहों पर सवर्ण अमीर हिन्दुओं का कब्ज़ा था
लेकिन अब इन जगहों पर दाढ़ी वालों, हिजाब वालियों, काले रंग के आदिवासियों दलितों और गरीबों की दखल बढ़ती जा रही है
इससे भारत के उत्तर भारतीय गोरे आर्य वंशी सवर्ण हिन्दुओं को बहुत चिढ मची हुई है
लेकिन इसके लिए सिर्फ सवर्ण हिन्दू ही दोषी नहीं हैं
अमेरिका में कालों को देख कर गोरों को भी यही परेशानी होती है
यह एक इंसानी कमज़ोरी है
लोकतंत्र इसी बीमारी का इलाज है
और संविधान इसी इंसानी बीमारी का इलाज करने के लिए लिखा गया डाक्टरी नुस्खा है
क्योंकि संविधान काले को गोरे के बराबर, ब्राह्मण को दलित के बराबर, हिन्दू को मुसलमान के बराबर बताता है
अमेरिका में काले पहले गोरों के दास थे
लेकिन जब अमेरिका में दास प्रथा के मुद्दे पर गृह युद्ध हुआ और दास प्रथा के विरोधी अब्राहम लिंकन राष्ट्र पति बने
अब्राहम लिंकन को गोली मार दी गई
लेकिन दास प्रथा समाप्त हो गई
लेकिन जो काले कभी अफ्रीका से गोरों के खेतों में मजदूरी करने के लिए लाये गये थे
वे शहरों में आकर नई बनी फैक्ट्रियों में मजदूर बनने लगे
लेकिन अमेरिका के गोरों ने काले नागरिकों के साथ भेदभाव करना बंद नहीं किया
इसके विरोध में मार्टिन लूथर किंग की अगुआई में 1955 में सिविल राइट्स आन्दोलन शुरू हुआ जो काले और गोरों के बीच समानता के लिए था
अंत में मार्टिन लूथर किंग को भी गोली मार दी गई
भारत में भी एक ब्राह्मण सवर्ण हिन्दू ने गांधी को गोली मार दी
लोहिया का कहना था कि गांधी की हत्या सिर्फ इसलिए नहीं हुई क्योंकि वह मुसलमानों की तरफदारी करते थे
बल्कि इसलिए हुई क्योंकि वह जाति प्रथा के विरुद्ध भी काम कर रहे थे
भारत में आज़ादी के बाद लोकतंत्र को आम लोगों की ज़िन्दगी और सोच का हिस्सा बनाने के लिए काम किये जाने की ज़रूरत थी
और लोकतंत्र का मतलब है बराबरी
लेकिन भारत में तो धर्म और जाति लगातार असमानता सिखाता है
भारत में मर्द औरत से बड़ा है
ब्राह्मण शूद्र से ऊपर है
क्षत्रिय बनिए से ऊपर है
बनिया शूद्र से ऊपर है
तो आज़ादी के बाद जाति और मज़हब का भेद मिटाना ही लोकतंत्र को बचाने का एक मात्र रास्ता है
लेकिन बड़ी जातियों के अमीर मर्दों का बनाया गया संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तो पिछले सौ साल से इस बात में जुटा हुआ है कि कैसे लोकतंत्र को खत्म किया जाय
और भारत की सत्ता और पैसे पर पुराने ज़माने की तरह हमेशा ही सवर्ण अमीर मर्दों का कब्ज़ा बना रहे
इसलिए संघ हमेशा बराबरी की बात करने वालों को या तो गोली मार देता है या उन्हें देशद्रोही कम्युनिस्ट कह कर उनका विरोध करता है
कलबुर्गी, दाभोलकर, गौरी लंकेश, पंसरे गांधी जैसे सत्य और न्याय की बात करने वाले लोगों को संघ और उससे जुड़े हिन्दुत्ववादी संगठनों के आतंकवादियों ने मार डाला
सवाल लोकतंत्र की चिंता करने का है
क्या हम बराबरी और सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक न्याय को अपनी सोच में शामिल करेंगे या मेरी जात सबसे बड़ी मेरा धर्म सबसे अच्छा ही कहते रहेंगे
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