Binod Teli Binod Teli 1890 में हवादार कच्छा संघ की मिल्कियत का घोषणा करने के बाद फ्रीमेसनरी ने अब 2022 में

Binod Teli Binod Teli 1890 में हवादार कच्छा संघ की मिल्कियत का घोषणा करने के बाद फ्रीमेसनरी ने अब 2022 में श्रीलंका के कोरल रीफ को आदम के हवाले कर दिया...
मतलब नुराकुश्ती जारी रहे ताकि अमेरिका के करेंसी और हथियार वाले षड्यंत्र पर किसी का ध्यान नहीं जाए।

फर्जी रामसेतु 30km लंबा है पर सवा कि.मी चौड़े की क्या जरूरत थी 10 मी. बहुत था ।
पत्थर भी डूब गए बिल्कुल वही, फ्रीमेसन को नकली कहानी लिखते हुए शर्म नहीं आती।

दूरी नापने की संस्कृत वालो की इकाई योजन है।
     भारत श्रीलंका के बीच जो पुल हैं जिसे रामसेतु कहा जाता है कि लंबाई मात्र 30 किलो मीटर है।

           #रामायण_मे_यह_दूरी_100_योजन_बताई हैं
  
          एक योजन अग्रेंजो ने 5 मील माना है जो कई डिक्शनरियो मे है जो आठ किलोमीटर के बराबर समझिए।

       सूर्य सिद्धांत या अन्य ग्रंथो मे जायेगे तो यही दूरी बढ़ते बढ़ते 14 मील तक पहुंच जायेगी और उनके अनुसार लंका भारत से दो तीन योजन रह जायेगा।

      इसलिए थाईलैंड की खाड़ी से लंकासुखा तक चले तो यह दूरी आसान और लगभग बराबर हो जाती है।(तस्वीरे संलग्न)
          रेयांग जिसे हम अपने यहां रामेश्वरम के नाम से जपते हैं से लंकासुई(वर्तमान) तक की दूरी सटीक बैठती है।

       आप सोचेगे कि जब थल मार्ग था तो जल मार्ग से क्यो ।
   😀😀अरे भाई जल मार्ग थल के पहाड़ो,नदियो, जंगलो,जानवरो से अधिक सुरक्षित और सीधा होता है।
  
     😁😀😜और फिर अंग्रेजो ने सारी दुनिया जहाजो से ही नापी थी।
      तो तेरहवी सदी (त्रेतायुग) के राजा राम खंमेग पर मुहर पक्की।

    पत्थरो का पुल तुलसी के दिमाग की उपज😜😜

वमुलाहिजा होशियार खबरदार।
भक्तो को बताया जावे की रामसेतु के तैरने वाले पत्थरो की गल्पकथा मे पाखंडी उस ठंडे लावा पर दावा करते हैं।
       
         जो ज्वालामुखी से निकलकर सीधा समुद्र मे जाता है या समुद्री ज्वालामुखी का लावा इतना हल्का हो जाता है कि समुद्री सतह पर तैरने लगता है।

  यह छिद्रित लावा है तो पत्थर ही किन्तु अचानक पानी मे गिरने से शीध्र ठंडा होने के कारण अंदर की गर्म भाप इसे लगभग खोखला बना देती है।

    यही रहस्य है समुद्र मे तैरते पत्थरो कौ और यह सक्रिय ज्वालामुखी वाले क्षेत्रो मे सामान्यतः मिलता है।

    उस मात्रा मे भारत मे मिलता तो एक एक पत्थर एक एक ब्राहमण को करोड़पति बना देता ।
   क्योकि बाकी दिमाग से झंड लोग दम से चढ़ावा देते।

लगभग 32 सालों तक कुल 28 जगहों पर खुदाई में असफलता मिलने के कारण ही भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा खुदाई को बंद कर प्रोजेक्ट की रिपोर्ट को ठन्डे बसते में डालने का निर्णय लिया गया था | यह खुदाई कांग्रेस के नेताओं के अनुरोध पर ब्रिटिश सरकार ने शुरू की थी और खत्म इंदिरा गाँधी के प्रथम कार्यकाल में हुई थी | इस खुदाई में वो समस्त स्थान शामिल है जिनका नाम रामायण में मेंशन था | खत्म करने के पीछे बताया जात है की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल का परामर्श एक महत्वपूर्ण कारक था | इस खुदाई के दौरान जब ग्रौद जीरो यानि मूलस्थान पर असफलता मिली और रिपोर्ट में बौधिक विवरण लिखा गया तो उस समय के प्रसिद्द पुरातात्विक विशेषज्ञ डॉ. बी.बी. लाल को इसका इन्चार्गे बनाया गया | खुदाई में वोही सामग्री मिलती गयी और तीन लेयर में जीवन के संकेत मिले | इस पर लाल ने एक परिवर्तन कर इसको मोड़ देने की कोशिश की बौधिक सामग्री को उसने जैन धर्म से जुडी बताया | खुदाई में जो जीवन के संकेत मिले वो सबसे प्राचीन ईसा पूर्व पांचवी सदी के आसपास के थे | इससे नीचे खुदाई करने पर कुछ भी वहां से नहीं मिलता | जिससे मेगेस्थेनिस द्वारा लिखित बात की पुष्टि होती है की उनके आने से लगभग 100 साल पहले श्रावस्ती के राजा ने अपने दुसरे पुत्र के लिए नए शहर को बसाया जिसे साकेत नाम दिया गया | (सन्दर्भ: मेग्स्थेनिस फ्रेगमेंट संख्या LVII) 
जहाँ यहाँ पर रामायण से जुड़े संकेत नहीं मिले वंही सियाम की पूर्व राजधानी अयोध्या सहित लाओस के जनकपुर, और सियाम के ही खित्किन और लोपबुरी यानि इन्द्रपुरी, से समस्त निशान मिलते है | और सबसे बड़ी बात थाईलैंड में आज भी राजा को राजा राम कहा जाता है | अभी वर्तमान में राम दशम का शासन है | संजीविनी बूटी भी आपको थाईलैंड में मिलेगी जिसका उपयोग आज भी वहां किया जात अहै | इसी बूटी पर यूनिवर्सिटी ऑफ़ माहिडोल में रिसर्च भी हो चूका है और इससे तैयार औषधियां थाईलैंड एक्सपोर्ट भी करता है |

थाईलैंडी मूरख होने के साथ नार्थ इंडिया में बड़े मज़बूर भी थे ।
इन्हें अपने सारे के सारे राजा या बोलें तो अपने आइकॉन नार्थ इंडिया की किसान जातियों के यहाँ गिरवी रखने पड़े ।जैसे थाईलैंडी मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के ख़ानदान के राजा थाईलैंडी राम को कुर्मियों (ठाकुरों )का वंशज बताना पड़ा ,जबकि इन्डोनेशियाई कृष्ण को उत्तर प्रदेश के अहीरों से जोड़ना पड़ा , महाभारत के कौरव पांडव को पश्चिमी यूपी के जाट गुज्जरों से जोड़ना पड़ा। 
अपने आप को इन तथाकथित देवताओं का पुजारी घोषित कर दिया , पुजारी बोले तो सेवा तथा चौकीदारी करने वाला भगत जैसे अभी मोदी के भगत हैं सिर्फ पूजा करते हैं खाने को मिलती हैं गाली।
यह सभी किसान क़ौमें आज के तथाकथित सभ्य समाज में किसी दूसरे को अपने से बड़ा मानने को तैयार नहीं हैं तो उस वक़्त तो अपने थाईलैंडी गुलामों को कुछ भी नहीं समझती होंगी ।आज का लोकतान्त्रिक अहीर सारे पद अपने परिवार जनों को देता हैं तो उस वक़्त का अहीर कृष्ण क्यों अपने थाईलैंडी गुलामों/पुजारियों को एक नंबर का दर्ज़ा देगा समाज में ।थाईलैंडी अपनी फ्रसट्रेशन में अंत शंट लिखते रहे और कुछ लोगों ने उन्हें सच मान कर प्रचारित करना शुरू कर दिया ।यहाँ यह भी सोचने की बात हैं की पश्चिमी इतिहासविद मैक्स वेबर के अनुसार यह वर्ण व्यवस्था से संभंधित श्लोक ऋग्वेद में काफी बाद जोड़े गए हैं जो की अनुसन्धान से सिद्ध भी हो चूका हैं ।
जबकि हक़ीक़त यह हैं की थाईलैंड , विएतनाम तथा कंबोडिया के राजवंश इन्ही थाईलैंडी जातियों के हैं तथा राज के करीब होने के कारण वहां यह लोग ज़रूर एक नंबर थे ।

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