#बोल_कि_लब_आजाद_हैं_तेरे

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मैंने बचपन से देखा है कि मेरे अब्बा कहीं भी जाते थे कहीं पर भी होते थे, खेतों में बाजारों में सफर में नमाज का टाईम होता था और अब्बा अपनी साफी बिछा कर नमाज पढ़ लेते थे।

आज नमाज पढ़ना जुर्म हो गया है तुरंत नमाज पढ़ने के जुर्म में गिरफ्तारी हो जाती है गैर तो खैर नमाज की मुखालिफत कर ही रहे हैं मगर अपनी कौम के बुद्धिजीवी भी ज्ञान देने लगते हैं कि वहां नमाज पढ़ने की क्या जरूरत थी, वहां उन्होंने नमाज क्यों पढ़ी?

आज नमाज पढ़ने से उन्हें दिक्कत हो रही है तो बुद्धजीवी कहते हैं नमाज मत पढ़ो। कल सार्वजनिक स्थानों पर टोपी लगाने से दिक्कत होगी फिर कहना कि टोपी लगाना जरूरी है क्या?

फिर सार्वजनिक जगहों में उन्हें मुस्लिम हुलिया में दिखने से उनकी भावनाएं आहत होंगी तो कहना कि मुस्लिम दिखना जरूरी है क्या?

असल में आप जितना पीछे हटेंगे उतना आपको हटाया जाएगा। ये कहानी तब तक चलती रहेगी जब तक आप अपनी जगह पर डटेंगे नहीं।

नमाज के मुद्दे पर सभी मुस्लिम तंजीमें खामोश हैं मतलब उन्हें भी ऐसा लगता है कि सार्वजनिक जगहों में नमाज पढ़ना ग़लत है। अगर मुस्लिम तंजीमों को ऐसा लगता है कि नमाज पढ़ना ग़लत है तो वे एक बयान जारी करके सभी मुसलमानों से इस पर अमल करने के लिए कहें और अगर उन्हें ग़लत नहीं लगता तो सरकार की इस दमनकारी नीति का विरोध करें।

वक्त खामोश रहने का नहीं है। ये खामोशी एक दिन बड़ी परेशानी का सबब बनेगी।


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