अमरोहा_की_दूसरी_सब_से_पुरानी_मस्जिद

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मोहल्ला कटकूई (गुल्लू का नीम ) पर आबाद मस्जिद बहलोल खाँ अमरोहा की दूसरी सब से पुरानी मस्जिद है अमरोहा तहसील की इमारत इसी मस्जिद के सामने है.

इस मस्जिद की तामीर शैख़ उमर हुसैन खाँ नियाज़ी ने करवाई थी जो अपने वक़्त के एहम बुज़ुर्ग थे. हज़रत शैख़ उमर हुसैन हज़रत शाह रुकनुद्दीन उर्फ हज़रत शाह पीरक नियाज़ी के बेटे थे. हज़रत शाह पीरक साहब अकबर के ज़माने में जागीर मिलने की वजह से अमरोहा तशरीफ़ लाए. आपके नाम 983 हिजरी मुताबिक़ 1575 में लिखा गया अकबर के एक फरमान का ज़िक्र हज़रत अल्लामा महमूद अहमद अब्बासी ने किया है जिसके मुताबिक़ आपको 85 बीघा ज़मीन मदद ए मआश के तौर पर अता हुई. कांठ रोड पर पिलक सराय गांव आपकी जागीर में था और इसका नाम भी आपके नाम पर पीरक सराय था जो रफ्ता रफ्ता पिलक सराय हो गया. शैख़ उमर हुसैन के नाम भी जहांगीर का एक फरमान है जिसके मुताबिक 102 बीघा ज़मीन आपके दी गयी.

मस्जिद बहलोल खाँ की तामीर उस वक़्त हुई जब मस्जिद कैक़बादी (सददो की मस्जिद) की हालत खस्ता हो गयी. ये अकबर के शुरुआती दौर में तामीर हुई. इसका पुराना नाम जामा मस्जिद पुख्ता था. ये मस्जिद अमरोहा की जामा मस्जिद रही है

शैख़ उमर हुसैन के पर पोते बहलोल खाँ अपने ज़माने के साहिब ए हैसियत ज़मींदार थे. आप मस्जिद के मुतवल्ली थे और इसका इंतज़ाम आपने बा खूबी अदा किया. उनके ज़माने में ही ये मस्जिद बहलोल खाँ वाली मस्जिद कहलाने लगी और अब ये इसी नाम से मशहूर है. मोहतरम बुज़ुर्ग मक़बूल नियाज़ी साहब ने इत्तेला दी कि मुसम्मात राजी बहलोल खाँ के दादा की बहन थीं. ला वलद होने की वजह से उनकी विरासत भी बहलोल खाँ को पहुंची थी. 

मस्जिद का अस्ल हुस्न इस की सादगी में है. इसके बुलंद ओ बाला गुम्बद इसके शान ओ शिकोह में इज़ाफा करते हैं कि देखने वाले पर असर होता है.. ये मस्जिद शाहजहांनी दौर से पहले के तर्ज़ ए तामीर यानी शरक़ी आर्किटेक्चर का बेहतरीन नमूना है. अल्लामा महमूद अहमद अब्बासी ने इसके इन औक़ाफ (वक्फ ) का ज़िक्र किया है
बीस बीघा पिलक सराय गांव में
पच्चीस बीघा नौराहन में
कुछ एहरोई में
और एक अमरूद आड़ू का बाग जिसके मुत्वल्ली हकीम खलील अहमद मरहूम थे. ये बाग अब मस्जिद का हिस्सा है.

मुस्लिम आबादी के दरमियान होने की वजह से मस्जिद शाद आबाद है.

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