लोकतंत्र खतरे में है" कमाल करते हैं, आप लोकतांत्रिक थे ही कब !

"लोकतंत्र खतरे में है" कमाल करते हैं, आप लोकतांत्रिक थे ही कब ! जाति जैसी मानवद्रोही, विभाजनकारी, अनैतिक व्यवस्था को आज तक तो सीने से चिपकाए हुए हैं और लोकतंत्र की चिंता हो रही है। आप परिवार, समाज, राजनीति कहाँ पर लोकतांत्रिक हैं! वोट तक तो जाति और धर्म के अनुसार देते हैं, नेता इस आधार पर चुनते हैं कि उसने कितने लोगों को मारा और आगे किन लोगों को मारने या सताने का इरादा रखता है, फिर ये लोकतंत्र था कहाँ जो खतरे में पड़ गया ! 

कांग्रेस पार्टी के पास ये मौका था कि वो खुद भी लोकतांत्रिक बनती और देश को लोकतांत्रिक चेतना से लैश करती, उसके पास इतना समय था कि तमाम कठिनाइयों के बावजूद देश में किसी हद तक लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास हो सकता था, लेकिन कांग्रेस को ब्राह्मणवादी घुसपैठियों ने तबाह कर दिया, रही सही कसर कुर्सी की सियासत ने पूरी कर दी, सॉफ्ट हिन्दुत्व की सियासत पर चलती हुई कांग्रेस, हार्ड हिन्दुत्व की सियासत से रौंद दी गई। 

अब फिर से देश पूंजीवादी संरक्षण में सामंती मूल्यों को सीने से लगाए पतन की ओर अग्रसर है। 

आज व्यक्तिगत रूप से हिमांशु कुमार, तीस्ता और रूपेश जैसे लोग इस पतनशील सियासत के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं लेकिन एक व्यक्ति को एक पार्टी के बजाय तोड़ना हमेशा आसान होता है साथ ही उस व्यक्ति के बाद वो लड़ाई भी ठहर जाती है। 

आज अगर लोकतंत्र की चिंता करनी है तो पूँजीवाद को निशाने पर लिए बिना ये मुमकिन नहीं है। यही नहीं इस लड़ाई को जीते बिना भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा की ज़रूरत पूरी नहीं होगी, फिलहाल जीवन अभी और दुरूह होना है क्योंकि महासेठ को आपका खून बेचकर दुनिया खरीदनी है ! 

~ Dr. Salman Arshad

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