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जब राम मंदिर का उदघाटन हुआ था— तब जो माहौल बना था, सोशल मीडिया

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जब राम मंदिर का उदघाटन हुआ था— तब जो माहौल बना था, सोशल मीडिया पर, मेनस्ट्रीम मीडिया पर, आसपास की दुनिया में… आहहहह! अदभुत, टीवी भक्तिमय आस्था चैनल हो चुके थे, सोशल मीडिया पर विरोधी पाले में खड़े सेकुलर भी और कुछ नहीं तो मूर्ति के बहाने ही लहालोट हुए ले रहे थे, हर तरफ़ रामनामी भगवा झंडे छतों पर सजे हुए थे— एकदम रामराज्य वाली फीलिंग आ रही थी। उस टाईम बतौर विपक्षी जो पर्सेप्शन बना कि बस, अब शहंशाह को कुछ और करने की ज़रूरत नहीं— इतना ही काफी है तीसरे कार्यकाल के लिये। साउथ के चार राज्यों को छोड़ बाकी देश की 90% सीटें तो राजा जी के खाते में जाते दिख ही रही थीं— उस तूफ़ान में दस पर्सेंट सीटें बस खास बड़े विपक्षी नेताओं की ही बचनी थी। उस माहौल को देखते, उस कैलकुलेशन के हिसाब से साहब और साहब के नौनिहालों को कहने की जरूरत ही नहीं थी कि अबकी पार— चार सौ पार। हमने ही मान लिया था कि चार सौ पार ही होनी हैं— फिर चाहे संविधान की लंका लगायें या लोकतंत्र की, सब उनके हवाले। फिर थोड़ा समय गुज़रा— चुनावी घोषणा हुई। नेताओं ने अपनी चोंच खोलनी शुरू की, लेकिन जनता का उत्साह गायब था। पहला चरण घोर उदासीनता में

वेस्टइंडीज विश्व क्रिकेट का एकमात्र ऐसा नाम जो एक से ज्यादा देशों को रिप्रेजेंट करता है। वेस्टइंडीज क्रिकेट ने विश्व क्रिकेट को टेस्ट क्रिकेट में अपने

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वेस्टइंडीज विश्व क्रिकेट का एकमात्र ऐसा नाम जो एक से ज्यादा देशों को रिप्रेजेंट करता है। वेस्टइंडीज क्रिकेट ने विश्व क्रिकेट को टेस्ट क्रिकेट में अपने इतिहास का सबसे खूंखार पेस अटैक दिया था साथ ही क्रिकेट के सबसे लंबे फोर्मेट में इसके पास एक से बढ़कर एक शानदार बल्लेबाज भी रहे हैं। टेस्ट क्रिकेट में वर्षों तक अपनी धाक जमाने वाली वेस्टइंडीज क्रिकेट वनडे में अपनी ख्याति के मुताबिक कभी नजर नहीं आई और फिर टी20 क्रिकेट में वेस्टइंडीज क्रिकेट की शाख को एक बार फिर स्थापित करने में बल्लेबाज और गेंदबाजों से ज्यादा आलराउंडर्स की भूमिका ज्यादा रही थी, इस लिस्ट में कुछ ऐसे नाम भी शामिल हैं जिन्होंने अपने देश को फिर से विश्व क्रिकेट के ‌बराबर लाकर खड़ा कर दिया था और एक ऐसे ही चैम्पियन क्रिकेटर का नाम ड्वेन ब्रावो है। DJ Bravo डीजे ब्रावो का शुरुआती जीवन- ड्वेन जोन ब्रावो का जन्म 7 अक्टूबर साल 1983 को त्रिनिदाद एंड टोबैगो के सेंटाक्रूज कस्बे में हुआ था। इनके पिता का नाम जोन ब्रावो और मां का नाम जसलीन ब्रावो है। डेरेन ब्रावो इनके सौतेले भाई है और इसके अलावा ड्वेन ब्रावो की चार बहनें भी है। अरंगुएज सी

"ये ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट है, यहां दूसरा मौका किसी को भी नहीं मिलता"। जिस बोर्ड का एक हाई ऑफिशियल अपने प्लेयर्स के चोटिल होने के बाद टीम में वापस नहीं लिए जाने पर ये बोलता हो। उस बोर्ड और मैनेजमेंट

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"ये ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट है, यहां दूसरा मौका किसी को भी नहीं मिलता"। जिस बोर्ड का एक हाई ऑफिशियल अपने प्लेयर्स के चोटिल होने के बाद टीम में वापस नहीं लिए जाने पर ये बोलता हो। उस बोर्ड और मैनेजमेंट से एक प्लेयर को बार-बार चांस देने की कोई ख़ास उम्मीद रह नहीं जाती है। मगर, जब प्लेयर में टैलेंट और ताक़त बेहिसाब हो। तो, ऑस्ट्रेलिया जैसे सख़्त बोर्ड को भी दिल नर्म करना पड़ता है। बिल्कुल वैसे ही, जैसे उन्होंने वर्ल्ड क्रिकेट के 'हल्क' यानी मार्कस स्टोइनिस के केस में किया। वो मार्कस स्टोइनिस जिन्हें कुछ दिन पहले एक ताक़तवर, मगर नासमझ खिलाड़ी कहा जाता था। वो मार्कस स्टोइनिस जिन्हें ऑस्ट्रेलिया ने अपनी फ्यूचर स्कीम से बाहर कर दिया था। वो मार्कस स्टोइनिस जिनका कैरियर सिर्फ़ फ्रैंचाइज़ क्रिकेट में दिख रहा था। मगर, उन्होंने हार नहीं मानी। अपने आप को टीम की ज़रूरत के हिसाब से ढालते हुए ख़ुद को सँवारा और आज वो ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट की रीढ़ बन गए हैं। वो रीढ़ जिसके बिना ऑस्ट्रेलियाई टीम का हाल, बेहाल होने में वक़्त नहीं लगता है। तो चलिये! इस तरह का औरा रखने वाले खिलाड़ी के बारे में डिटेल में जानते

जिन्हें ये गलतफहमी है कि इस बार महँगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और बेतहाशा बढ़ते

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जिन्हें ये गलतफहमी है कि इस बार महँगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और बेतहाशा बढ़ते हुए अपराध 2024 लोकसभा-चुनाव में फैक्टर बनेंगे और भाजपा सत्ता से बेदखल हो जाएगी, वो तुरंत ही किसी अच्छे मनोचिकित्सक से अपना इलाज़ कराएं। बिल्कुल यकीन मानिए भाजपा पहले से बेहतर रिजल्ट ला सकती है, "अबकी बार 400 पार" ये महज जुमला नहीं है. भाजपा के रणनीतिकारों ने वोटर्स की नब्ज़ को टटोला है और अंधभक्ति वाली बीमारी को सबसे चरम स्टेज पर पाया होगा, जो हमें चलते-फिरते नंगी आँखों से भी दिख रहा है। आपको अगर लगता है कि ये "इलेक्टोरल बॉन्ड्स" वाला चंदे का गोरखधंधा भाजपा को कोई नुकसान पहुंचाएगा तो आप बड़े मासूम हैं क्योंकि जब पुलवामा में सैनिकों की शहादत, कोरोना महामारी में ला'शों के अंबार, नोटबन्दी में भूखों म'रते परिवार उनके लिए बंपर वोटबैंक बनकर उभरे थे तो ये इलेक्टोरल बांड तो वैसे भी अंधभक्तों की समझदानी में घुसने से रहा, वो तो साफ बोलते हैं कि इसमें जनता का क्या नुकसान है? आप उन्हें ये भी नहीं समझा सकते कि 60 हजार की बाइक आज सवा लाख की क्यों हो गई या 60 रुपये में मिलने वाला किसी टेबलेट का पत्त